जयपुर. रॉबर्ट वाड्रा जमीन खरीद फरोख्त मामले में एक निजी न्यूज़ चैनल पर उनके करीबी महेश नागर और ललित नागर ने स्वीकार किया है कि बीकानेर सहित अन्य जमीनी मामले में गड़बड़ी हुई है. इसको लेकर शुक्रवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मीडिया ने जब सवाल पूछा तो उन्होंने ज्यादा कुछ बोलने से इनकार कर दिया.
हालांकि जब उनस यह सवाल किया गया तो सबसे पहले उनका जवाब आया 'मैं वाड्रा हूं क्या'. बाद में उन्होंने इस मसले पर बात करते हुए कहा कि 2009 में जब मैं मुख्यमंत्री था तब कलेक्टर के हस्ताक्षर से लिखा है कि हमारे यहां कोई गड़बड़ी नहीं हुई है. उसके बाद अब ये मामला सबजूडिस है और विचाराधीन मामले में अब कहां क्या कार्रवाई हो रही है इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है. मामला हाईकोर्ट और ईडी में चल रहा है जो विचाराधीन है.
जानें क्या है पूरा मामला
दरअसल, साल 2014 अपने प्रदेश की भाजपा सरकार बनने के बाद बीकानेर में जमीनों के फर्जी आवंटन के 16 केस गजनेर और 2 केस कोलायत पुलिस थाने में वर्ष 2014 में दर्ज हुए. इनमें 4 केस वाड्रा की कंपनी से जुड़े हैं. पुलिस ने अभियुक्तों के खिलाफ कोर्ट में चालान तो पेश कर दिया, लेकिन जांच 173 (8) में पेंडिंग रखी गई है. आरोप है कि वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी ने सरकार के अधिकारियों की मिलीभगत से महज 79 लाख रुपये में बीकानेर में 275 बीघा जमीन खरीदी.
बाद में इस मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय ने भी की और इस मामले में चार अभियुक्तों जयप्रकाश बगरवा, पूर्व पटवारी उमाचरण शर्मा, पूर्व नायब तहसीलदार फकीर मोहम्मद और पूर्व पटवारी महावीर स्वामी की 1.18 करोड़ की चल अचल संपत्तियों को कुर्क कर चुका है. इन सभी ऐसे लोगों के नाम से दस्तावेज बनाकर जमीन का फर्जी आवंटन करवाने के आरोप हैं जो मौजूद ही नहीं थे.
मामला बीकानेर के कोलायत में महाजन फील्ड फायरिंग रेंज के विस्थापितों के नाम पर जमीनों के फर्जी आवंटन से जुड़ा है. आरोप है यहां जिन लोगों के नाम पर जमीन आवंटित करवाई वे असल में थे ही नहीं. ऐसे में आरोपियों ने तत्कालीन पटवारी, गिरदावर, नायब तहसीलदारों से मिलकर जमीनों का फर्जी तरीके से साल 2006-7 में नामांतरण करवा लिया. जमीने आगे से आगे बिकती गयी, इनमें वाड्रा से जुड़ी कंपनी 150 बीघा और 125 बीघा जमीन खरीदी थी.
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 2014 में अपने कार्यकाल के दौरान इस मामले की जांच के लिए एक कमिटी बनायी और उसके बाद साल अगस्त 2017 में ये मामला सीबीआई को सौंप दिया. कमिटी की रिपोर्ट में आरोप लगाए गए थे कि मामले का खुलासा 2010 में हुआ, लेकिन उस समय राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कुछ नहीं किया. बता दें कि 2 महीने पहले ही फरवरी में जयपुर के ईडी मुख्यालय में हाईकोर्ट के आदेशों पर रॉबर्ट वाड्रा और उनकी मां मौरीन वाड्रा से दो दिन तक जांच की गई थी.