जयपुर. राजस्थान भाजपा में लगातार बदलती हुई सियासी तस्वीर देखने को मिल रही है. एक समय था जब राजस्थान भाजपा की राजनीति कुछ एक नेताओं के इर्द-गिर्द ही सिमटी रहती थी. उसमें भी प्रमुख शक्ति केंद्र 2-3 ही हुआ करते थे लेकिन पार्टी नेतृत्व ने यह परिपाटी तोड़ी और राजस्थान में ही कई सियासी शक्ति केंद्र खड़े कर दिए ( BJP Power Shift Politics ). उपराष्ट्रपति बने जगदीप धनखड़ और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बनाए गए सुनील बंसल (Dhankhar Bansal in Rajasthan) अब एक नए शक्ति केंद्र बनकर उभरे हैं तो वहीं अगले चुनाव तक पार्टी कुछ और नेताओं को नए शक्ति केंद्र के रूप में स्थापित कर सकती है.
एक दशक वसुंधरा 'राज': राजस्थान भाजपा की राजनीति (Rajasthan BJP Politics) करीब एक दशक तक पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी की मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द घूमी. खुद वसुंधरा राजे दो बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. पार्टी की प्रमुख शक्ति केंद्र के रूप में राजे का स्थापित होना लाजिमी भी था लेकिन समय बदला और पिछले 4 साल के दौरान राजस्थान भाजपा में कई नए शक्ति केंद्र पार्टी ने खड़े कर दिए. उनमें वो नेता भी शामिल थे जिनकी बुलंदियों के बारे में पार्टी का आम कार्यकर्ता शायद सोच भी नहीं सकता था लेकिन पार्टी आलाकमान ने ऐसे चौंकानेवाले निर्णय लिए जिसके बाद ये संभव हुआ.
राजस्थान भाजपा के शक्ति केंद्र!
डॉ सतीश पूनिया: सितंबर 2019 में राजस्थान भाजपा की कमान जब सतीश पूनिया के हाथ में आए तो वह निर्णय चौंकाने वाला था लेकिन पार्टी ने राजस्थान में पूनिया के रूप में एक नया सियासी शक्ति केंद्र स्थापित कर दिया जो अब भी कायम है. पूनिया के प्रदेश के अलग-अलग जिलों में न केवल फॉलोअर हैं बल्कि अच्छी खासी टीम भी खड़ी कर ली है.
गजेंद्र सिंह शेखावत: भाजपा आलाकमान ने राजस्थान में गजेंद्र सिंह शेखावत के रूप में एक और बड़ा सियासी शक्ति केंद्र स्थापित किया है. शेखावत उस समय चर्चाओं में आए जब पार्टी आलाकमान उन्हें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाना चाहता था लेकिन वसुंधरा राजे व अन्य समर्थकों के अंदरुनी विरोध के चलते ऐसा नहीं हुआ. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय जैसा अहम विभाग शेखावत को सौंपा और कैबिनेट मंत्री भी बनाया जिसके बाद राजस्थान में अब शेखावत भाजपा के प्रमुख सियासी शक्ति केंद्रों में स्थापित है.
ओम बिरला: कोटा सांसद और पूर्व संसदीय सचिव रहे ओम बिरला के बारे में शायद किसी ने सोचा भी नहीं था कि उन्हें लोकसभा अध्यक्ष पद पर बैठा दिया जाएगा. पार्टी आलाकमान का निर्णय चौंकाने वाला था लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने ऐसा कर दिखाया. वैश्य समाज से आने वाले बिरला भी अब राजस्थान भाजपा के ताकतवर नेताओं में से एक माने जाते हैं.
जगदीप धनखड़: ये वो नाम है जो 2019 में एकाएक उभर के सामने आया जब धनकड़ को पश्चिम बंगाल में राज्यपाल बनाकर भेजा गया. उससे भी बड़ा चौंकाने वाला फैसला भाजपा नेतृत्व ने धनखड़ को उपराष्ट्रपति बना कर लिया और राजस्थान में एक और सियासी शक्ति का केंद्र स्थापित कर दिया.
सुनील बंसल: सुनील बंसल राजस्थान से ही आते हैं और शुरुआत में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे. संघ पृष्ठभूमि के सुनील बंसल को पार्टी में उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों की अहम जिम्मेदारी भी मिली है जिसमें उन्होंने अपने संगठनात्मक कौशल को दिखाया. हाल ही में पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री का दायित्व दिया है. साथ ही पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और तेलंगाना का प्रदेश प्रभारी भी बनाया है. हालांकि राजस्थान की राजनीति में बंसल दखल नहीं रखते हैं लेकिन राजस्थान से ही होने के चलते यहां के भाजपा नेता व कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग उनका फॉलोअर है.
अर्जुनराम मेघवाल: भाजपा ने राजस्थान में दलित नेता के रूप में बीकानेर सांसद और केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को भी एक बड़े सियासी शक्ति केंद्र के रूप में स्थापित कर दिया हैं. मेघवाल कभी पूर्व उपमुख्यमंत्री हरिशंकर भावना के ओएसडी हुआ करते थे आईएएस अधिकारी रहे मेघवाल 2009 में पहली बार सांसद बने और मोदी सरकार में दूसरी बार उन्हें मंत्री पद मिला है.
कैलाश चौधरी : पिछले विधानसभा चुनाव में करिश्मा न करने वाले कैलाश चौधरी को पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सोनाराम का टिकट काटकर बाड़मेर से प्रत्याशी बनाया और जीतने के बाद सीधे मोदी मंत्रिमंडल में मंत्री भी बनाया. कैलाश चौधरी को लेकर पार्टी नेतृत्व का ये फैसला चौंकाने वाला था लेकिन मंत्री बनते ही चौधरी राजस्थान में एक नए सियासी शक्ति केंद्र के रूप में स्थापित हो गए. चौधरी की गिनती भी उन्हीं ताकतवर लोगों में होती है जिनकी केंद्र की राजनीति में दखल है.
भूपेंद्र यादव: राजस्थान से राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव आज केंद्र में मंत्री हैं. अजमेर से आने वाले यादव की पार्टी संगठन में भी लंबे समय तक तूती बोली और अब केंद्र सरकार में अपना लोहा मनवा रहे हैं. पार्टी ने यादव के रूप में राजस्थान में एक नया सियासी शक्ति केंद्र स्थापित कर दिया जबकि यादव एक समय वसुंधरा राजे के चुनावी सारथी हुआ करते थे.
घनश्याम तिवाड़ी को राज्यसभा भेजकर चौंकाया: घनश्याम तिवाड़ी के लिए कहा जा सकता है कि वो अदावत और बगावत की तासीर हैं. पहले वसुंधरा से भिड़े फिर सियासी बयानबाजी के बाद पार्टी से अलग हुए लेकिन फिर घर वापसी कर पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजकर सबको चौंका दिया.
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जारी रहेगा चौंकाने का ये सिलसिला: इसके अलावा राजस्थान से पूर्व विधायक अलका सिंह गुर्जर को राष्ट्रीय मंत्री बनाना भी इसी कड़ी का एक हिस्सा था. अलका गुर्जर पार्टी के लिए ज्यादा बड़ा नाम नहीं था लेकिन शीर्ष नेतृत्व में उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में मौका देकर आगे बढ़ाया. राजस्थान से दिग्गज राजनेता गुलाबचंद कटारिया या फिर राजेंद्र राठौड़ सरीखे नेता माने जाते हैं. इनकी राजस्थान में आज भी तूती बोलती है लेकिन पार्टी शीर्ष नेतृत्व में इन दिग्गज नेताओं से छोटे कद के कई नेताओं को इतना बड़ा बना दिया गया है कि राजस्थान में शक्ति केंद्रों की भरमार हो गई है. भाजपा शीर्ष नेतृत्व राजस्थान के परिपेक्ष्य में लगातार कई चौंकाने वाले निर्णय करता आया है और ये तमाम नेता इसके उदाहरण भी हैं. अब पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं में चर्चा इस बात की ही है कि अगला चौंकाने वाला निर्णय क्या हो सकता है. हालांकि पार्टी स्तर पर चुनावी वर्ष में बड़े स्तर पर बदलाव होना तय माना जा रहा है लेकिन बदलाव की बयार में राजस्थान में कौन सा नया सियासी शक्ति का केंद्र खड़ा होगा यह देखना दिलचस्प होगा.
शक्ति केन्द्रों का मकसद?: राजस्थान में जितने बदलाव और प्रयोग किए गए उनमें से अधिकतर चौंकाने वाले थे. पार्टी इस बात को पूर्व के अनुभवों से समझ चुकी है कि किसी भी राज्य में भाजपा का पूरा दारोमदार इक्का-दुक्का नेताओं तक सीमित न रहे क्योंकि यदि ऐसा रहा तो राज्य में पार्टी से ज्यादा बड़े नेता होने लगते हैं. पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह हो या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को कतई स्वीकार नहीं करते की पार्टी से बड़ा कोई नेता हो. यही कारण है कि राजस्थान के कार्यकर्ताओं को अलग-अलग सियासी शक्ति केंद्रों में बांटा गया है ताकि कोई एक नेता खुद को ज्यादा बढ़ा न समझे.