जोधपुर: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने मधुमेह (डायबिटीज) रोगियों के लिए एक नई आयुर्वेदिक औषधि बनाई है. यह औधधि चूर्ण के रूप में है. इस चूर्ण का अब तक सैकड़ों डायबिटीज रोगियों पर सफलता पूर्वक परीक्षण हो चुका है. चिकित्सकों का दावा है कि मरीजों के लिए यह दवा लाभदायक साबित हो रही है.
विश्वविद्यालय के चिकित्सकों का दावा है कि यदि किसी मरीज का एचबीए-1सी (ग्लाइसाइटेड हीमोग्लोबिन) का पैमाना 8 यूनिट तक है तो ऐसे मरीजों के लिए यह चूर्ण काफी कारगर है. तीन महीने तक लगातार लेने पर मरीजों का एचबीए-1सी का लेवल 6 तक आ जाता है. हालांकि, इसके साथ-साथ जीवन शैली में भी थोड़ा बदलाव जरूरी है.
विश्वविद्यालय की ओर से संचालित संजीवनी अस्पताल के सहायक अधीक्षक एवं प्रोफेसर डॉ. हरीश कुमार सिंघल ने बताया कि विश्वविद्यालय की रसायनशाला में 'मधुमेहारियोग' चूर्ण बनाया गया है. इसे विश्वविद्यालय के संजीवनी अस्पताल में लंबे समय से निशुल्क दिया जा रहा है. अब तक के परीक्षण में यह बात सामने आई है कि इस चूर्ण का उपयोग करने से मधुमेह रोगियों को फायदा हो रहा है.
बच्चों को भी हो रहा लाभ: उन्होंने बताया कि यह दवा मधुमेह के टाइप वन लेवल के रोग से पीड़ित बच्चों के लिए भी लाभदायक है. इसे यहां आने वाले टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित बच्चों को दिया जा रहा है, जिससे उन्हें फायदा हो रहा है.
21 औषधियों को मिलाकर बनाया है चूर्ण: डॉ. सिंघल ने बताया कि मधुमेहारियोग चूर्ण विश्वविद्यालय की रसायन शाला में 21 एंटी डायबिटिक ड्रग्स को मिलाकर तैयार किया है. इसमें मैथी, करेला, नीम, सनाय जैसी चीजें शामिल हैं. इसे खाली पेट सुबह 3 ग्राम और शाम को 3 ग्राम लेना होता है. जिन मरीजों का फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल 140 से 150 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर और खाना खाने के दो घंटे बाद शुगर लेवल 200 तक रहता है. ऐसे मरीजों पर मधुमेहारियोग चूर्ण सर्वाधिक असर करता है. जिन मरीजों का शुगर लेवल 400 से 500 तक है, ऐसे मरीजों पर असर तो होता है, लेकिन वे पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते.
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बदलनी होती है जीवन शैली: विश्वविद्यालय के फिजिशियन डॉ. बह्मानंद शर्मा के अनुसार मधुमेहारियोग चूर्ण से 150 से 200 शुगर लेवल तक डायबिटीज आसानी से ठीक हो रही है, लेकिन इसके साथ जीवनचर्या के नियम भी बदलने पड़ते हैं. जैसे जल्दी सोना, जल्दी उठना, घूमना, अधिक कार्बोहाईड्रेट्स की चीजों का सेवन नहीं करना, मीठे पेय नहीं पीना आदि शामिल है. तीन से चार महीने में ठीक होने के बाद अगर जीवनचर्या को नियमों में लाकर जीवनयापन करते हैं तो दोबारा डायबिटीज नहीं होगी.