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स्थापना दिवस स्पेशलः 533 साल का हुआ बीकानेर - Bikaner Foundation Day

विक्रम संवत 1545 में राव बीका का बसाया बीकानेर आज 533 साल का हो गया. बता दें कि अक्षय द्वितीया को बीकानेर का स्थापना दिवस होता है. दो दिन तक स्थापना दिवस को लेकर विभिन्न आयोजन भी किए जाते हैं, लेकिन इस बार उन सभी आयोजनों पर कोरोना के चलते रोक लग गई है. बीकानेर स्थापना दिवस पर ईटीवी भारत की स्पेशल स्टोरी...

533 साल का बीकानेर, 533 years old Bikaner,  Bikaner Foundation Day
533 साल का हो गया बीकानेर
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Published : Apr 25, 2020, 7:24 PM IST

बीकानेर. देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अपने रसगुल्ला और नमकीन के चलते खट्टी-मीठी पहचान रखने वाला बीकानेर आज 533 साल का हो गया. विक्रम संवत 1545 में राव बीका का बसाया बीकानेर आज महानगरों की तर्ज पर आगे बढ़ रहा है.

533 साल का हो गया बीकानेर

बता दें कि अक्षय द्वितीया को बीकानेर का स्थापना दिवस होता है. दो दिन तक स्थापना दिवस को लेकर विभिन्न आयोजन भी किए जाते हैं, लेकिन इस बार उन सभी आयोजनों पर कोरोना के चलते रोक लग गई है. बीकानेर के स्थापना दिवस के मौके पर इस शहर की स्थापना को लेकर लोगों में बड़ा उत्साह देखा जाता है और दो दिनों तक बीकानेर में जमकर पतंगबाजी भी होती है. लेकिन कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए जिला प्रशासन की ओर से पतंगबाजी पर पूरी तरह से रोक के चलते असर देखने को मिल रहा है.

पढ़ें- कोरोना की जंग जिताने वाले डूंगरपुर के यह 4 हीरो, बताई जीत की प्रमुख वजह....

बीकानेर के बसावट के पीछे की कहानी

हालांकि, बीकानेर के बसावट के पीछे की कहानी यह है कि जोधपुर दरबार में अपने चाचा कांधल से चर्चा करते वक्त राव बीका को ताना मारा गया कि क्या कोई नया नगर बसा रहे हो, जो इतनी चर्चा कर रहे हो. इतनी सी बात पर राव बीका ने इस चुनौती को स्वीकार किया और नए नगर की खोज में बीकानेर की ओर निकल पड़े. इसके बाद बीकानेर की स्थापना की कहानी शुरू हुई.

रियासत काल से है चंदा उड़ाने की परंपरा

बीकानेर में स्थापना दिवस को लेकर रियासत काल से ही चंदा उड़ाने की भी परंपरा है. दरअसल, बीकानेर स्थापना दिवस पर पतंगबाजी करने का एक कारण यह भी है कि बीकानेर को बसाने वाले राव बीका ने एक चंदा उड़ाया था और चन्दा जिस दिशा में जितना दूर उड़ा वो बीकानेर की सीमा हो गई. यही कारण है कि बीकानेर में इन 2 दिनों में जमकर पतंगबाजी होती है.

533 साल का बीकानेर, 533 years old Bikaner,  Bikaner Foundation Day
इस बार नहीं उड़ा चंदा

इस बार नहीं उड़ा चंदा

बीकानेर में चंदा उड़ाने वाले कुछ लोगों में शुमार गणेश व्यास हर साल चंदा बनाते हैं और उड़ाते हैं. लेकिन इस बार इस चंदा को प्रशासन की पतंगबाजी पर रोक के चलते नहीं उड़ाया गया. इन चंदों पर बीकानेर का इतिहास से जुड़ा तथ्य होता है. मोटा बांस और कागज से बनने वाले इस चंदे को मोटी कॉटन की डोरी से उड़ाया जाता है और फिर संभालकर रखा जाता है. हर बार विधि विधान से पूजा करने के बाद चंदा उड़ाने की रस्म इस बार नहीं होगी और केवल पूजा करने के बाद चंदे को अगले साल स्थापना दिवस से एक दिन पहले उड़ाया जाएगा.

स्थापना दिवस पर नहीं हुआ कोई आयोजन

गणेश व्यास कहते हैं कि पतंग को उड़ाना और उड़ा कर छोड़ने का ज्योतिषीय महत्व भी है. उन्होंने कहा कि रामायण काल में भी इसका जिक्र है. स्थापना दिवस पर बीकानेर में घरों में बाजरे का खिचड़ा इमली का पानी और बड़ी की सब्जी बनाई जाती है. साथ ही घर में पानी के लिए नई मटकी भी रखी जाती है. हालांकि घरों में बनने वाले रसोई तो बनी लेकिन इसके अलावा शहर में अन्य आयोजन नहीं हुए.

पूरे देश और दुनिया के साथ ही बीकानेर में भी कोरोना का असर है और आम दिनों के मुकाबले जनजीवन प्रभावित हैं. ऐसे में इस बार पतंगबाजी के साथ ही बीकानेर स्थापना दिवस के आयोजन भी आयोजित नहीं हो रहे हैं. अक्षय तृतीया और अक्षय द्वितीया को मांगलिक कार्यों के लिए अबूझ सावा माना जाता है, लेकिन इस बार कोरोना के प्रकोप ने इस पर भी असर डाला और इस बार शादियों का आयोजन नहीं हो रहा है.

बीकानेर. देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अपने रसगुल्ला और नमकीन के चलते खट्टी-मीठी पहचान रखने वाला बीकानेर आज 533 साल का हो गया. विक्रम संवत 1545 में राव बीका का बसाया बीकानेर आज महानगरों की तर्ज पर आगे बढ़ रहा है.

533 साल का हो गया बीकानेर

बता दें कि अक्षय द्वितीया को बीकानेर का स्थापना दिवस होता है. दो दिन तक स्थापना दिवस को लेकर विभिन्न आयोजन भी किए जाते हैं, लेकिन इस बार उन सभी आयोजनों पर कोरोना के चलते रोक लग गई है. बीकानेर के स्थापना दिवस के मौके पर इस शहर की स्थापना को लेकर लोगों में बड़ा उत्साह देखा जाता है और दो दिनों तक बीकानेर में जमकर पतंगबाजी भी होती है. लेकिन कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए जिला प्रशासन की ओर से पतंगबाजी पर पूरी तरह से रोक के चलते असर देखने को मिल रहा है.

पढ़ें- कोरोना की जंग जिताने वाले डूंगरपुर के यह 4 हीरो, बताई जीत की प्रमुख वजह....

बीकानेर के बसावट के पीछे की कहानी

हालांकि, बीकानेर के बसावट के पीछे की कहानी यह है कि जोधपुर दरबार में अपने चाचा कांधल से चर्चा करते वक्त राव बीका को ताना मारा गया कि क्या कोई नया नगर बसा रहे हो, जो इतनी चर्चा कर रहे हो. इतनी सी बात पर राव बीका ने इस चुनौती को स्वीकार किया और नए नगर की खोज में बीकानेर की ओर निकल पड़े. इसके बाद बीकानेर की स्थापना की कहानी शुरू हुई.

रियासत काल से है चंदा उड़ाने की परंपरा

बीकानेर में स्थापना दिवस को लेकर रियासत काल से ही चंदा उड़ाने की भी परंपरा है. दरअसल, बीकानेर स्थापना दिवस पर पतंगबाजी करने का एक कारण यह भी है कि बीकानेर को बसाने वाले राव बीका ने एक चंदा उड़ाया था और चन्दा जिस दिशा में जितना दूर उड़ा वो बीकानेर की सीमा हो गई. यही कारण है कि बीकानेर में इन 2 दिनों में जमकर पतंगबाजी होती है.

533 साल का बीकानेर, 533 years old Bikaner,  Bikaner Foundation Day
इस बार नहीं उड़ा चंदा

इस बार नहीं उड़ा चंदा

बीकानेर में चंदा उड़ाने वाले कुछ लोगों में शुमार गणेश व्यास हर साल चंदा बनाते हैं और उड़ाते हैं. लेकिन इस बार इस चंदा को प्रशासन की पतंगबाजी पर रोक के चलते नहीं उड़ाया गया. इन चंदों पर बीकानेर का इतिहास से जुड़ा तथ्य होता है. मोटा बांस और कागज से बनने वाले इस चंदे को मोटी कॉटन की डोरी से उड़ाया जाता है और फिर संभालकर रखा जाता है. हर बार विधि विधान से पूजा करने के बाद चंदा उड़ाने की रस्म इस बार नहीं होगी और केवल पूजा करने के बाद चंदे को अगले साल स्थापना दिवस से एक दिन पहले उड़ाया जाएगा.

स्थापना दिवस पर नहीं हुआ कोई आयोजन

गणेश व्यास कहते हैं कि पतंग को उड़ाना और उड़ा कर छोड़ने का ज्योतिषीय महत्व भी है. उन्होंने कहा कि रामायण काल में भी इसका जिक्र है. स्थापना दिवस पर बीकानेर में घरों में बाजरे का खिचड़ा इमली का पानी और बड़ी की सब्जी बनाई जाती है. साथ ही घर में पानी के लिए नई मटकी भी रखी जाती है. हालांकि घरों में बनने वाले रसोई तो बनी लेकिन इसके अलावा शहर में अन्य आयोजन नहीं हुए.

पूरे देश और दुनिया के साथ ही बीकानेर में भी कोरोना का असर है और आम दिनों के मुकाबले जनजीवन प्रभावित हैं. ऐसे में इस बार पतंगबाजी के साथ ही बीकानेर स्थापना दिवस के आयोजन भी आयोजित नहीं हो रहे हैं. अक्षय तृतीया और अक्षय द्वितीया को मांगलिक कार्यों के लिए अबूझ सावा माना जाता है, लेकिन इस बार कोरोना के प्रकोप ने इस पर भी असर डाला और इस बार शादियों का आयोजन नहीं हो रहा है.

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