बीकानेर. कहते हैं कि सड़क और रेल, विकास के वह आधारभूत स्तंभ हैं जिनके सहारे कोई भी शहर आगे रफ्तार पकड़ सकता है. सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन बीकानेर में रेल फाटक ऐसी समस्या बना हुआ है जो पिछले 40 सालों से भी ज्यादा समय से अवरोध का काम कर रहा है. 40 सालों से इसलिए कि जिस वक्त रेल लाइन डाली गई, वह शहर की जरूरत थी. लेकिन धीरे-धीरे शहर का विस्तार हुआ और अब वह रेल लाइन शहर के बीचोंबीच हो गई है. 40 साल पहले इसके समाधान को लेकर चर्चा शुरू हुई, लेकिन आज भी यह चर्चा तक ही सीमित है. शहर के परकोटे से बाहर कोटगेट से निकलते ही दो रेलवे लाइन हैं, जो शहर को दो भागों में बांटती है. दिन में करीब 56 बार यह रेलवे फाटक मालगाड़ी तो कभी रेलगाड़ी गुजरने के चलते बंद होता है. इसके चलते शहर दो भागों में बंटकर रुक सा (Bikaner railway level crossing problem) जाता है.
दरअसल कोटगेट टी एम रोड बीकानेर का प्रमुख व्यवसायिक केंद्र है. शहर के प्रमुख बाजार के रूप में बीकानेर का यह एक किलोमीटर क्षेत्र खरीदारी का केंद्र है. शहर के अंदरूनी क्षेत्र से मुख्य बाजार से होते हुए कलेक्ट्रेट सहित तमाम सरकारी कार्यालय इस फाटक को पार करने के बाद ही आते हैं. हर नौकरीपेशा को घर से काम और फिर घर पहुंचने के लिए दिन में कम से कम दो बार इस समस्या का सामना करना पड़ता है. कई बार स्थिति यह हो जाती है कि आधे-आधे घंटे तक फाटक नहीं खुलता है. दोनों और लंबा जाम लग जाता है और जाम में फंस कर व्यक्ति को अपने गंतव्य की ओर पहुंचने में बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है.
पढ़ें: Bikaner Nagar Nigam Budget 2022: बजट बैठक में हंगामा, 362 करोड़ 33 लाख का बजट पारित
पहली बार जगी उम्मीद लेकिन अभी तक परिणाम शून्य: दरअसल इस रेलवे फाटक की समस्या का समाधान राज्य और केंद्र दोनों के स्तर पर होना है. पहली बार बीकानेर से केंद्र में अर्जुन मेघवाल मंत्री हैं और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार में बीडी कल्ला कद्दावर मंत्री है. कुल मिलाकर इस समस्या के समाधान के लिहाज से राजनीतिक प्रतिनिधित्व में बीकानेर अब तक के इतिहास में सबसे मजबूत है. ऐसे में लोगों को उम्मीद है कि शायद इस बार इस समस्या का समाधान हो जाए, लेकिन पिछले 3 सालों में इस समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ है.
हर चुनाव में रेल फाटक रहता है मुद्दा: बीकानेर के हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इस रेल फाटक की समस्या से निजात दिलाने के नाम पर वोट मांगे जाते हैं, लेकिन चुनाव निकलते ही नेता और पार्टियां इस मुद्दे को भूल जाती हैं. स्थानीय लोग कहते हैं कि इस समस्या का समाधान अगर राजनीतिक पार्टी और सरकार चाहे, तो हो सकता है, लेकिन हर चुनाव में इस मुद्दे को लेकर जनता को भ्रमित किया जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. बीकानेर के केईएम रोड व्यापार मंडल के सचिव जतिन यादव कहते हैं कि पहली बार बीकानेर को ऐसा मौका मिला है जब केंद्र और राज्य में बीकानेर के प्रतिनिधि मजबूत स्थिति में हैं. यदि इस बार भी इस समस्या का समाधान नहीं हुआ तो भविष्य में इसकी उम्मीद नहीं है.
पढ़ें: तीन मंत्रियों के बाद 4 राजनीतिक नियुक्तियों के साथ बीकानेर का पलड़ा भारी
रेल मंत्री से मिले कल्ला और मेघवाल: इस समस्या के समाधान के लिए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से केंद्रीय मंत्री और बीकानेर सांसद अर्जुन मेघवाल और राजस्थान सरकार के मंत्री और बीकानेर से विधायक बीडी कल्ला ने एक साथ मुलाकात करीब 5 महीने पहले हुई. इस मुलाकात के बाद यहां के लोगों को उम्मीद थी कि शायद राजनीतिक मतभेद भुलाकर दोनों पार्टियों के नेता एक मंच पर आकर इस समस्या का समाधान करेंगे. लेकिन 5 महीने बाद भी इस बैठक का कोई परिणाम सामने नहीं आया है. खुद कल्ला ने भी कहा कि हमने रेल मंत्री से मुलाकात की है और अब उनका क्या जवाब आता है, उसके बाद ही आगे का निर्णय किया जाएगा.
1990 में किया था रेल मंत्री ने दौरा: 90 के दशक में तत्कालीन रेल मंत्री सीके जाफर शरीफ ने रेलवे फाटक का मुआयना किया था और इस समस्या को नजदीक से जाना था. तब इस बात की उम्मीद जगी थी कि शायद अब इसका हल निकलेगा, लेकिन वह दौरा कागजी साबित हुआ.
हर रोज करीब 3 लाख लोग प्रभावित: एक अनुमान के मुताबिक दिन में औसतन 1 घंटे में दो बार से भी ज्यादा बंद होने वाले इस रेल फाटक से हर रोज करीब 3 लाख लोग प्रभावित होते हैं.
बाइपास और अंडरब्रिज समाधान पर एकराय नहीं: इस समस्या के समाधान को लेकर भी लोग एक राय नहीं है और यही कारण है कि इसका समाधान नहीं हो पाया है. दरअसल मंत्री बीडी कल्ला शुरू से ही बाइपास के पक्ष में रहे हैं. वहीं पिछली भाजपा सरकार के समय यहां एलिवेटेड रोड बनाने की घोषणा की गई थी, लेकिन उसके बाद बाजार का स्वरूप खत्म होने के डर से कुछ स्थानीय व्यापारी और रेल फाटक संघर्ष समिति से जुड़े लोग कोर्ट चले गए और एलिवेटेड रोड बनाने का मामला ठंडा पड़ गया. कल्ला लगातार शहर के विकास का हवाला देते हुए बाईपास की बात कहते हैं. ऐसे में समाधान पर एक राय नहीं होने के चलते यह समस्या जस की तस बनी हुई है.