भीलवाड़ा. भीलवाड़ा जिले के गुलाबपुरा उपखंड क्षेत्र स्थित हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को खनन के दौरान पर्यावरण नियमों का उल्लंघन का जिम्मेदार माना गया. इस नुकसान की भरपाई के लिए ही HZL को 25 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति के निर्देश नेशनल ग्रीन ट्राइब्युनल (NGT Slaps Compensation On HZL) ने दिए. इस बीच चर्चा उस रिपोर्ट और कमेटी की होनी भी जरूरी है जिसके आधार पर ही HZL के लिए निर्देश जारी किए गए.
इस कमेटी में जिले के गुलाबपुरा उपखंड अधिकारी विकास मोहन भाटी भी थे. ईटीवी भारत से खास बातचीत में एसडीएम भाटी ने बताया कि कैसे धरातल पर जाकर रिपोर्ट तैयार की गई. अब भविष्य में NGT के निर्देश के मुताबिक ही आगे की कार्रवाई करेंगे.
25 करोड़ की क्षतिपूर्ति (Compensation On HZL Row) राशि भीलवाड़ा जिला कलेक्टर को जमा करवानी होगी. हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के खनन से लगातार पर्यावरण नियमों की अवहेलना (Environmental Norms Violation By HZL) की गई. जिसके कारण क्षेत्र में जल, जमीन बंजर हो रही है यहां तक की किसानों की जमीन बंजर हो गई. इससे क्षेत्र की विभिन्न पैदावार को नुकसान हुआ और न के बराबर उत्पादन हो रहा है. प्रदूषित हवा और पानी के कारण बीमारियां भी फैल रही हैं.
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एप्लीकेशन संख्या 226!: SDM ने बताया कि हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (Vedanata Group HZL) के परिधि क्षेत्र में रहने वाले ओमपुरी ने ही एनजीटी में मामला दर्ज करवाया. उसी आधार पर दिल्ली से आई टीम और क्षेत्र के उपखंड अधिकारी विकास मोहन भाटी ने जांच की थी. भाटी ने बताया कि आखिर हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के खिलाफ मामला क्या है? दरअसल, ओमपुरी ने 226 नम्बर एप्लीकेशन लगाई थी. जिसे गंभीरता से लेते हुए एनजीटी ने एक कमेटी बनाई.
कमेटी के अध्यक्ष भीलवाड़ा जिला कलेक्टर थे. फिर जिला कलेक्टर ने अफसर भाटी को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया था. ग्राउंड पर अन्य कमेटी सदस्यों के साथ गया. एनजीटी को रिपोर्ट सबमिट की. इसमें जिंक से होने वाले नुकसान, फसल, हेल्थ , खनन के दौरान ब्लास्टिंग से क्षेत्र के मकानों में दरार ,जमीन सहित कई मुद्दों पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर सौंपी. उसी आधार पर NGT ने HZL पर 25 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति राशि जमा करवाने का निर्देश जारी किया.
पानी रिसाव पर चुप रहे अफसर: इस इलाके में पानी का रिसाव एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है. ईटीवी ने ग्राउंड जीरो पर किसानों से बात की, स्थानीय लोगों से सूरत ए हाल पर चर्चा की तो सबने एक सुर में कहा इससे नुकसान हो रहा है. इस मामले पर जब हमने एसडीएम साहब का जवाब चाहा तो वो टाल गए. अधिकारी ने वही जवाब दिया जो अकसर दिया जाता है. बोले-पानी के रिसाव की अगर बात सामने आती है तो एनजीटी हमें जैसा निर्देशित करेगी या पुनः जांच करने की कहेगी तो हम पुनः क्षेत्र में जाकर जांच करेंगे.
किसानों के आरोप पर रखा प्रशासन का पक्ष: किसान लगातार कह रहे हैं कि स्थानीय प्रशासन जिंक का सहयोग करता है जबकि हमारा सहयोग नहीं कर रहा है. किसानों के ये सवाल सिस्टम पर है. इस सवाल पर भी अफसर सधा जवाब देते हैं. कहते हैं - ऐसा नहीं है. हम प्रतिदिन उपखंड के किसानों की सुनवाई करते हैं, वह हमारे पास जो भी समस्या लेकर आते हैं उनकी जांच भी करते हैं और हल भी निकालते हैं.
यही कारण था कि एक कमेटी गठित की. उस कमेटी में इंडिया के टॉप लेवल के विशेषज्ञ शामिल थे. उन्होंने और हमने धरातल पर जाकर एक-एक बिंदु को बारीकी से देखा और उसे जांच रिपोर्ट में शामिल किया. अगर आप भी जांच रिपोर्ट देखेंगे तो सत्यता का पता चल जाएगा.