भरतपुर. जब पति-पत्नी उच्च रक्तचाप, थायराइड और अन्य बीमारियों से घिरने लगे तो उन्होंने बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टरों से उपचार कराने के बजाय जैविक खेती को अपनाने का रास्ता चुना. इसी प्रयास में भरतपुर जिले के उज्जैन कस्बे के पास स्थित गांव पना निवासी विरमा देवी को प्रगतिशील खेती की राह पर मोड़ दिया. यही वजह है कि आज विरमा देवी जिले की प्रगतिशील महिला किसान के रूप में पहचानी जाने लगी हैं.
बता दें कि विरमा देवी अपनी 16 बीघा जमीन में ना केवल जैविक और औषधीय खेती करती हैं बल्कि इन्होंने लीक से हटकर काले गेहूं की फसल भी बोई है. जैविक खेती अपनाने के बाद सिर्फ 2 साल में ही विरमा देवी और उनके पति कमल मीणा को कई बीमारियों से छुटकारा भी मिल चुका है.
पढ़ें- भरतपुर में विवाहिता की मौत, ससुराल पक्ष पर दहेज के लिए हत्या का आरोप
काले गेहूं की फसल
किसान विरमा देवी ने बताया कि करीब दो- ढाई साल पहले उन्हें थायराइड और उच्च रक्तचाप की बीमारी हुई. काफी जांच पड़ताल के बाद पता चला कि यूरिया और अन्य उर्वरकों के इस्तेमाल से पैदा किए जा रहे खाद्यान्न से विभिन्न बीमारियां फैल रहीं हैं. ऐसे में उन्होंने प्रगतिशील तरीके से जैविक खेती को अपनाया. इसी के तहत उन्होंने सामान्य गेहूं के बजाय इस बार काले गेहूं की फसल भी की है. जिसे सामान्य गेहूं की तुलना में ज्यादा पौष्टिक और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला माना जाता है.
पति प्रशिक्षण लेता है और पत्नी खेती करती है
विरमा देवी ने बताया कि उनके पति कमल मीणा कृषि विभाग की ओर से दिए जाने वाले विभिन्न प्रशिक्षण ले चुके हैं. कमल मीणा प्रशिक्षण लेकर आते हैं और अपनी पत्नी विरमा देवी को सारी जानकारी उपलब्ध कराते हैं. उसके बाद उसी के आधार पर विरमा देवी पूरी खेती संभालती है.
पढ़ें- भरतपुर में बदमाशों के हौसले बुलंद, युवक के सिर में मारी गोली, इलाज के दौरान मौत
गाय के गोबर का खाद और गौमूत्र का कीटनाशक
किसान विरमा देवी ने बताया कि वह खेत में कभी भी यूरिया या अन्य कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करती है. उसके स्थान पर गाय के गोबर से बने खाद्य, जीवामृत और गौमूत्र से बने कीटनाशक जीवामृत का इस्तेमाल करते है. इससे हानिरहित उन्नत खेती होती है. बूंद बूंद सिंचाई अन्य तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए इनके खेत में विभिन्न सब्जी, सतावर, गन्ना, अमरूद, बेर, गुलाब आदि की पैदावार भी ली जा रही है.