अलवर. देशभर में लगातार कोरोना का प्रभाव जारी है. कोरोना के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए प्रशासन की तरफ से सख्ती बरती जा रही है. अलवर सहित कुछ जिलों में धारा 144 लगी हुई है. साथ ही प्रदेश सरकार की तरफ से अभी मंदिरों को नहीं खोला गया है. जिन मंदिरों में भीड़भाड़ रहती है, उन जगहों पर विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं. ऐसे में अलवर के करणी माता मंदिर में कोरोना के चलते दूसरी बार मेला नहीं लगेगा.
इसके साथ ही प्रशासन की तरफ से मेले को स्थगित कर दिया गया है. हर साल शारदीय नवरात्रों में अलवर में करणी माता का मेला भरता है. मेले से करीब दस हजार लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार मिलता है. इसमें प्रसाद बेचने, खिलौने बेचने वाले, आइसक्रीम और श्रृंगार सामग्री के लिए स्टॉल लगाई जाती हैं. इसके साथ ही यहां फोटोग्राफर और वाहन पार्किंग स्टैंड की अलग व्यवस्था रहती है. मंदिर में करणी माता के दर्शन के लिए सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं की कतार लगती है. इस दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं. अलवर सहित प्रदेश के कुछ जिलों में 19 मार्च से धारा 144 लगी हुई है. ऐसे में मार्च से अप्रैल माह तक चलने वाला मेला भी पहली बार कोरोना वायरस के चलते स्थगित हुआ था.
किस दिन किस की पूजा
17 अक्टूबर से नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. 17 अक्टूबर शनिवार को मां शैलपुत्री के रूप की घटस्थापना के साथ पूजा होगी. दूसरे दिन 18 अक्टूबर को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी. तीसरे दिन 19 अक्टूबर को मां चंद्रघंटा की पूजा होगी. चौथे दिन 20 अक्टूबर को मां कुष्मांडा की पूजा होगी. पांचवे दिन 21 अक्टूबर को मां स्कंदमाता की पूजा होगी. 22 अक्टूबर को मां कात्यायनी की पूजा होगी. सप्तमी 23 अक्टूबर को मां कालरात्रि की पूजा होगी. अष्टमी 24 अक्टूबर को मां महागौरी की पूजा होगी. 9 मई 25 अक्टूबर को मां दुर्गा के रूप की पूजा अर्चना समाप्त होगी. इस दिन लोग मां की ज्योत देखते हैं और छोटी बच्चियों को खाना खिलाते हैं. इसके साथ ही बंगाली समाज की तरफ से नवरात्रि पर विशेष पूजा-अर्चना होती है. ऐसे में दशमी को दुर्गा का विसर्जन होगा.
मंदिर का क्या है इतिहास
इस मंदिर का निर्माण को लेकर मान्यता है कि सन 1791 से 1815 तक अलवर के शासक रहे महाराज बख्तावर सिंह के पेट में एक दिन काफी तेज दर्द उठा था. हकीमों और वेदों के इलाज के बाद भी महाराज के पेट का दर्द सही नहीं हुआ. उनकी सेना में शामिल चारण के कहने पर महाराज ने करणी माता का ध्यान किया. इस पर उन्हें महल के कंगूरे पर एक सफेद चील बैठी हुई दिखाई दी. सफेद चील करणी माता का प्रतीक मानी जाती है. सफेद चीर के दर्शन करने के बाद महाराज बख्तावर सिंह के पेट का दर्द सही हो गया.
इसके बाद महाराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया महाराज बख्तावर सिंह ने देशनोक बीकानेर स्थित करणी माता के मंदिर में चांदी का दरवाजा बनवाकर भेंट किया था. 1985 में रामबाग सैनी आरतियां की ओर से मंदिर जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण कराया गया था. इससे पहले मंदिर जाने के लिए बाला किला मार्ग से केवल कच्चा रास्ता था. मंदिर तक पहुंचने के लिए बाला किला मार्ग के अलावा किशन कुंड मार्ग से भी एक रास्ता है किशन कुंड मार्ग से करणी माता मंदिर जाने वाला केवल पैदल मार्ग है.
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मंदिर के पुजारी ने कहा वैसे भी साल भर हजारों लाखों लोग माता के दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन हाल ही में प्रशासन और वन विभाग की तरफ से सख्ती बरती जा रही है. जिसके चलते लोगों की आवाजाही कम हो गई है. ऐसे में मंदिर की व्यवस्थाएं गड़बड़ा रही हैं. हालांकि नवरात्रों में 9 दिन लगातार माता की पूजा होती है. उनका अभिषेक किया जाता है. हवन होता है इसके अलावा विधि विधान से उनकी पूजा होती है. उन्होंने कहा कि इस बार माता की पूजा का विशेष सहयोग और मुहूर्त बन रहा है. इसमें पूजा करने पर लोगों को खास मनोकामना पूरी होगी.
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58 वर्षों के बाद शनि मकर में और गुरु धनु राशि में रहेगा. इससे पहले यह योग सन 1962 में बना था. इस संयोग में नवरात्र की पूजा कल्याणकारी रहेगी. वैसे तो अलग-अलग मुहूर्त के समय पूजा का खास महत्व है. लेकिन शुक्रवार 16 अक्टूबर की रात 1 बजकर 50 से 17 अक्टूबर शनिवार को रात 11 बजकर 26 मिनट तक विशेष समय रहेगा. घट स्थापना का शुभ मुहूर्त सूर्य उदय से सुबह 9 बजकर 45 मिनट तक रहेगा. इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त 10 बजकर 30 मिनट से 12.20 बजे तक रहेगा. शेष दिन में किसी भी समय स्थापना पूजन किया जा सकता है.