अलवर. राजस्थान में सबसे ज्यादा वाहन चोरी की घटनाएं अलवर और भरतपुर क्षेत्र में होती है. हर साल अकेले अलवर जिले में ढाई से तीन हजार वाहन चोरी होते हैं. चोर बाइक चोरी करने के बाद अलवर और भरतपुर के सीमावर्ती क्षेत्र सिकरी पहाड़ी के गांव एक कुएं बावड़ी घरों में बने टुडे के बारे में छुपा देते हैं, उसके बाद डिमांड के अनुसार सस्ते दामों में बाइक दी जाती है. चोर इतने शातिर हो चुके हैं कि बाइक की फर्जी आरसी फर्जी नंबर प्लेट के साथ इंजन पर फर्जी नंबर भी डाल देते हैं. बड़ी प्रोफेशनल तरह से यह पूरा खेल चल रहा है.
पुलिस ने कई ऐसे गुटों को पकड़ा है, जो फर्जी आरसी तैयार करके इंजन पर पुरानी नंबरों को मिटाकर नए नंबर डाल देते हैं. अब तक करीब 8 गैंग और 20 चोरों को गिरफ्तार किया गया है. इनके पास से 50 से अधिक बाइक बरामद की गई है. पुलिस जांच पड़ताल के दौरान सामने आया है कि लोगों की थोड़ी सी लापरवाही चोरों को निमंत्रण देती है. दरअसल लोग पार्किंग का पैसा बचाने के चक्कर में अपनी बाइक को आसपास सुनसान जगह पर खड़ा कर देते हैं. जिसका फायदा चोर उठाते है.
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अलवर पुलिस के आंकड़ों पर नजर डालें तो अलवर जिला पुलिस क्षेत्र में साल 2020 के दौरान 1090 वाहन चोरी हुई, इनमें से 1032 बाइक थी. केवल 58 अन्य वाहन थे. इसी तरह से साल 2021 अब तक 494 वाहन चोरी हो चुके हैं. इसमें भी ज्यादातर बाइक है. इसी तरह से भिवाड़ी पुलिस क्षेत्र में साल 2020 के दौरान 1600 वाहन चोरी हुए. इसमें 1500 से अधिक बाइक वालों ने दोपहिया वाहन थे. साल 2021 में अब तक 700 से अधिक वाहन चोरी हो चुके हैं. इस हिसाब से अलवर जिले भर में हर साल ढाई से तीन हजार के आसपास वाहन चोरी होते हैं. लगातार यह आंकड़ा बढ़ रहा है. पुलिस आए दिन बाइक चोरी करने वाले चोरों को पकड़ती है, लेकिन उसके बाद भी लगातार चोरी का सिलसिला जारी है.
चोरी करने में होती है आसानी
बाइक चोर मास्टर चाबी से ताला तोड़कर आसानी से बाइक चोरी करते हैं. चोर ज्यादातर नई बाइकों को निशाना बनाते हैं. 60 से 70 हजार की बाइक 5 से 10 हजार रुपए के बीच बिकती है. इन वाहनों को ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र के लोग खरीदते हैं. इसके अलावा वाहन ठीक करने वाले मैकेनिक भी इन वाहनों को खरीदते हैं. मैकेनिक चोरी के वाहन से सामान निकाल कर दूसरे वाहनों में लगा देते हैं. ऐसी स्थिति में चोरी के वाहन का पता नहीं चलता है.
क्या रहता है चोरी का तरीका
पुलिस की जांच पड़ताल में सामने आया है कि वाहन चोर वाहन को चोरी करने के बाद किसी सुरक्षित पार्किंग या ऐसे स्थान पर खड़ा करते हैं. जहां किसी का ध्यान न जाए. कुछ दिन बाद मौका मिलने पर उस वाहन को वहां से निकाल लेते हैं. कुछ गैंग ऐसी भी सामने आई, जो किराए का कमरा लेकर अलवर के आसपास क्षेत्र में रहते हैं. चोरी के दौरान वो लोग अलवर आते और चोरी करने के बाद वापस अपने क्षेत्र में चले जाते थे, जिससे पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल पाता था.
शहर को किया जा रहा कैमरे से लैस
पुलिस अधीक्षक तेजस्विनी गौतम ने कहा की वाहन चोरी की घटनाओं को रोकने के लिए शहर के चप्पे-चप्पे पर कैमरे लगाए जा रहे हैं. उन जगहों को आईडेंटिफाई किया गया है. जिन जगहों पर वाहन चोरी की घटनाएं ज्यादा होती है. शहर में पहले से अभय कमांड कंट्रोल रूम से जुड़े हुए ढाई सौ से अधिक केंद्र हैं. इसके अलावा एमएलए फंड मुख्यालय से मिले कैमरे बजट के तहत जिले को मिले कैमरे लगाने की प्रक्रिया चल रही है. सभी कैमरे को अभय कमाल कंट्रोल रूम से जोड़ा जाएगा.
कई घटनाओं को खोलने में भी लिख मदद
पुलिस ने कहा कि कैमरे पुलिस के लिए खासी मददगार साबित हो रहे हैं. अलवर में कई वाहन चोरी की घटनाओं को खोलने में पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगी है. कई बार कैमरों में वाहन चोरी करते हुए चोर कैद होते हैं, जिनको आसानी से पहचाना जा सकता है, और उनको पकड़ा गया है. इसके अलावा भी कैमरों की मदद से कई बड़ी लूट और अन्य घटनाओं का भी खुलासा हुआ है. ऐसे में कैमरे लगने के बाद वाहन चोरी की घटनाओं में कमी होने की उम्मीद है.