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Special: गहलोत सरकार के पूरे हुए 2 साल, लेकिन अलवर में अभी तक अधूरी हैं योजनाएं - योजनाएं अधूरी

कांग्रेस सरकार के 2 साल के कार्यकाल के दौरान अलवर जिले में कोई नई योजना और बड़ा काम शुरू नहीं हुआ है, जबकि अलवर में काफी संभावनाएं हैं. अलवर में कई योजनाएं फाइलों तक ही सिमट कर रह गई हैं. चुनाव के समय इन मुद्दों पर चर्चा होती है, लेकिन उसके बाद ये मुद्दे चुनावी मुद्दे बनकर गुम हो जाते हैं.

Alwar News, योजनाएं अधूरी, Gehlot government
अलवर में अधूरी हैं कई योजनाएं
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Published : Dec 19, 2020, 2:21 PM IST

अलवर. राजस्थान में प्रदेश सरकार के दो साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन, अब भी अलवर की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं. 2 साल के दौरान अलवर में कोई बड़ी योजना शुरू नहीं हुई. मूलभूत जरूरतों के लिए लोग अब भी परेशान हो रहे हैं. एनसीआर का हिस्सा होने के बाद भी सरकार का अलवर पर कोई ध्यान नहीं है, जबकि अलवर में हजारों की संख्या में औद्योगिक इकाई है. पर्यटन की दृष्टि से अलवर लोगों के लिए बेहतर विकल्प है, लेकिन उसके बाद भी यहां के हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ. ऐसे में अलवर की जनता अपने आपको ठगा सा महसूस कर रही है.

पढ़ें: SPECIAL: जेके लोन अस्पताल को जीवन रक्षक उपकरणों के लिए मिले थे करोड़ों रुपए...समय रहते नहीं हुई खरीद

गौरतलब है कि राजस्थान सरकार को सबसे ज्यादा टैक्स अलवर से मिलता है. सेल टैक्स, आबकारी विभाग, खनन विभाग और आरटीओ सहित अन्य सरकारी विभाग प्रदेश सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व टैक्स के रूप में देते हैं. अलवर को राजस्थान की औद्योगिक राजधानी कहा जाता है. यहां 20 हजार के आस-पास औद्योगिक इकाइयां हैं. एनसीआर का हिस्सा होने के बाद भी लोगों को एनसीआर का लाभ नहीं मिल रहा है.

अलवर में अधूरी हैं कई योजनाएं

पीने के पानी के लिए भी जिले में कोई इंतजाम नहीं है. सतही पर तौर पर पानी की व्यवस्था नहीं है. पूरा जिला डार्क जोन में आ चुका है. पूरा जिला ट्यूबवेल के भरोसे चल रहा है. वसुंधरा सरकार ने ईस्टर्न कैनाल योजना की घोषणा की थी, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ. कई साल से अलवर में चंबल का पानी लाने की योजना पर बात हो रही है, लेकिन उसके बाद भी लोगों को कोई लाभ नहीं मिला. इसी तरह अलवर का मेडिकल कॉलेज भी कई साल से फाइलों में लटका हुआ है. अलवर में एयरपोर्ट जैसी तमाम योजनाएं हैं, जो केवल फाइलों तक ही सिमटी रह गई हैं. चुनाव के समय इन मुद्दों पर चर्चा होती है, लेकिन उसके बाद ये मुद्दे चुनावी मुद्दे बनकर गुम हो जाते हैं.

पढ़ें: SPECIAL : कभी कहलाते थे राज परिवारों के उमरयार...आज रूप बदलकर भी तकदीर नहीं बदल पा रहे बहरूरिये

अलवर में कई औद्योगिक क्षेत्र बन सकते हैं. कई योजनाओं पर काम हो सकता है, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.गांव में लोगों को बिजली नहीं मिल रही है. सड़के टूटी हुई हैं. इस तरह जिले में अब भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. लोग अब भी मूलभूत सुविधाओं के लिए खासे परेशान हो रहे हैं.

ईस्टर्न कैनाल योजना
अलवर सहित प्रदेश के 7 जिलों को जोड़ने वाली पानी सप्लाई करने वाली ईस्टर्न कैनाल योजना वसुंधरा सरकार के द्वारा शुरू की गई. इस योजना में अलवर को बाद में शामिल किया गया. इस योजना के तहत अलवर में पानी लाने की योजना थी. करोड़ों की ये योजना केवल फाइलों तक सिमटी रह गई है.

चंबल का पानी
कई साल से अलवर में चंबल का पानी लाने की योजना चल रही है, लेकिन इस पर आज तक कोई काम नहीं हुआ है. दो बार इस योजना की डीपीआर बन चुकी है. 5 हजार करोड़ रुपये की इस योजना पर शुरुआत से अलवर में पानी लाने की बात हो रही है. बाद में भरतपुर जिले के क्षेत्र को भी इस योजना में जोड़ा गया. न्यायालय में मामला चला, लेकिन उसके बाद भी आज तक 15 साल में इस योजना मैं कोई काम नहीं हुआ.

मेडिकल कॉलेज
10 साल से अलवर का मेडिकल कॉलेज भाजपा की सरकार या कांग्रेस की दोनों के लिए प्राथमिकता रहा. लेकिन, अलवर को अब तक मेडिकल कॉलेज नहीं मिला, जबकि राजस्थान के कई छोटे जिलों में मेडिकल कॉलेज शुरू भी हो चुका है. लेकिन, अलवर में मेडिकल कॉलेज को लेकर अब भी अटकलें चल रही हैं. अलवर के लोगों को इलाज के लिए आस-पास के दूसरे जिलों में जाना पड़ता है. यहां मरीजों का अस्पताल पर खासा दबाव रहता है.

मिनी सचिवालय
अलवर में 7 साल से मिनी सचिवालय का काम चल रहा है, लेकिन आज भी ये काम पूरा नहीं हुआ. कई बार काम शुरू हुआ और बजट की कमी के चलते काम बीच में रोक दिया गया. पहले मिनी सचिवालय 7 मंजिल का बनना था, लेकिन उसकी दो मंजिलें कम कर दी गई. अब 5 मंजिल का मिनी सचिवालय भवन बना है, लेकिन बजट की कमी के चलते अभी यह काम अधूरा पड़ा हुआ है.

कोटकासिम हवाई अड्डा
अलवर के कोटकासिम में देश का पहला ग्रीन फील्ड इंटरनेशनल हवाई अड्डा बना था. इसमें कार्गो के साथ यात्री जहाज भी उतरने थे. इसके लिए जमीन का अधिग्रहण की प्रक्रिया तक शुरू हो गई, लेकिन फिर अचानक काम बीच में रुक गया. इसके बाद शुरू हुए उत्तर प्रदेश के जेवर एयरपोर्ट पर जल्द काम शुरू होने वाला है. कोटकासिम एयरपोर्ट के लिए उस क्षेत्र के निर्माण पर भी रोक लगा दी गई है, लेकिन आज तक अलवर में एयरपोर्ट नहीं बना.

पर्यटन के लिए नहीं बनी कोई योजना
अलवर पर्यटन के लिहाज से समृद्ध जिला है. अलवर में सरिस्का टाइगर रिजर्व पार्क, सिटी पैलेस, पांडुपोल हनुमान मंदिर, भरतरी धाम, अजबगढ़ भानगढ़, नीलकंठ महादेव मंदिर, जैन मंदिर, सिलीसेढ़ झील जयसमंद बांध सहित बड़ी संख्या में दर्शनीय स्थल है. लेकिन, आज तक अलवर के लिए कोई बड़ी योजना नहीं बनी, जिससे यहां के पर्यटन स्थल को बढ़ावा मिल सके और उनकी हालत में सुधार हो सके.

अलवर में 52 किले
अलवर राजस्थान का पहला ऐसा जिला है, जहां 52 किले हैं. पर्यटन की दृष्टि से अलवर अन्य जिलों से अलग है. लेकिन, सरकार की तरफ से आज तक अलवर के लिए कोई योजना तैयार नहीं की गई. यहां के हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ.

बजट की है कमी
सरकार के पास बजट का अभाव है. पीडब्ल्यूडी यूआईडी की सभी योजनाएं रुकी हुई है. पीडब्ल्यूडी विभाग में करीब 200 करोड़ की पेंडेंसी चल रही है. इसी तरह अन्य सरकारी विभागों के हालात हैं. बजट की कमी के चलते युवाओं को समय पर बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलता. कोरोना के बाद से लगातार हालात ज्यादा खराब हो गए हैं.

अलवर. राजस्थान में प्रदेश सरकार के दो साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन, अब भी अलवर की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं. 2 साल के दौरान अलवर में कोई बड़ी योजना शुरू नहीं हुई. मूलभूत जरूरतों के लिए लोग अब भी परेशान हो रहे हैं. एनसीआर का हिस्सा होने के बाद भी सरकार का अलवर पर कोई ध्यान नहीं है, जबकि अलवर में हजारों की संख्या में औद्योगिक इकाई है. पर्यटन की दृष्टि से अलवर लोगों के लिए बेहतर विकल्प है, लेकिन उसके बाद भी यहां के हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ. ऐसे में अलवर की जनता अपने आपको ठगा सा महसूस कर रही है.

पढ़ें: SPECIAL: जेके लोन अस्पताल को जीवन रक्षक उपकरणों के लिए मिले थे करोड़ों रुपए...समय रहते नहीं हुई खरीद

गौरतलब है कि राजस्थान सरकार को सबसे ज्यादा टैक्स अलवर से मिलता है. सेल टैक्स, आबकारी विभाग, खनन विभाग और आरटीओ सहित अन्य सरकारी विभाग प्रदेश सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व टैक्स के रूप में देते हैं. अलवर को राजस्थान की औद्योगिक राजधानी कहा जाता है. यहां 20 हजार के आस-पास औद्योगिक इकाइयां हैं. एनसीआर का हिस्सा होने के बाद भी लोगों को एनसीआर का लाभ नहीं मिल रहा है.

अलवर में अधूरी हैं कई योजनाएं

पीने के पानी के लिए भी जिले में कोई इंतजाम नहीं है. सतही पर तौर पर पानी की व्यवस्था नहीं है. पूरा जिला डार्क जोन में आ चुका है. पूरा जिला ट्यूबवेल के भरोसे चल रहा है. वसुंधरा सरकार ने ईस्टर्न कैनाल योजना की घोषणा की थी, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ. कई साल से अलवर में चंबल का पानी लाने की योजना पर बात हो रही है, लेकिन उसके बाद भी लोगों को कोई लाभ नहीं मिला. इसी तरह अलवर का मेडिकल कॉलेज भी कई साल से फाइलों में लटका हुआ है. अलवर में एयरपोर्ट जैसी तमाम योजनाएं हैं, जो केवल फाइलों तक ही सिमटी रह गई हैं. चुनाव के समय इन मुद्दों पर चर्चा होती है, लेकिन उसके बाद ये मुद्दे चुनावी मुद्दे बनकर गुम हो जाते हैं.

पढ़ें: SPECIAL : कभी कहलाते थे राज परिवारों के उमरयार...आज रूप बदलकर भी तकदीर नहीं बदल पा रहे बहरूरिये

अलवर में कई औद्योगिक क्षेत्र बन सकते हैं. कई योजनाओं पर काम हो सकता है, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.गांव में लोगों को बिजली नहीं मिल रही है. सड़के टूटी हुई हैं. इस तरह जिले में अब भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. लोग अब भी मूलभूत सुविधाओं के लिए खासे परेशान हो रहे हैं.

ईस्टर्न कैनाल योजना
अलवर सहित प्रदेश के 7 जिलों को जोड़ने वाली पानी सप्लाई करने वाली ईस्टर्न कैनाल योजना वसुंधरा सरकार के द्वारा शुरू की गई. इस योजना में अलवर को बाद में शामिल किया गया. इस योजना के तहत अलवर में पानी लाने की योजना थी. करोड़ों की ये योजना केवल फाइलों तक सिमटी रह गई है.

चंबल का पानी
कई साल से अलवर में चंबल का पानी लाने की योजना चल रही है, लेकिन इस पर आज तक कोई काम नहीं हुआ है. दो बार इस योजना की डीपीआर बन चुकी है. 5 हजार करोड़ रुपये की इस योजना पर शुरुआत से अलवर में पानी लाने की बात हो रही है. बाद में भरतपुर जिले के क्षेत्र को भी इस योजना में जोड़ा गया. न्यायालय में मामला चला, लेकिन उसके बाद भी आज तक 15 साल में इस योजना मैं कोई काम नहीं हुआ.

मेडिकल कॉलेज
10 साल से अलवर का मेडिकल कॉलेज भाजपा की सरकार या कांग्रेस की दोनों के लिए प्राथमिकता रहा. लेकिन, अलवर को अब तक मेडिकल कॉलेज नहीं मिला, जबकि राजस्थान के कई छोटे जिलों में मेडिकल कॉलेज शुरू भी हो चुका है. लेकिन, अलवर में मेडिकल कॉलेज को लेकर अब भी अटकलें चल रही हैं. अलवर के लोगों को इलाज के लिए आस-पास के दूसरे जिलों में जाना पड़ता है. यहां मरीजों का अस्पताल पर खासा दबाव रहता है.

मिनी सचिवालय
अलवर में 7 साल से मिनी सचिवालय का काम चल रहा है, लेकिन आज भी ये काम पूरा नहीं हुआ. कई बार काम शुरू हुआ और बजट की कमी के चलते काम बीच में रोक दिया गया. पहले मिनी सचिवालय 7 मंजिल का बनना था, लेकिन उसकी दो मंजिलें कम कर दी गई. अब 5 मंजिल का मिनी सचिवालय भवन बना है, लेकिन बजट की कमी के चलते अभी यह काम अधूरा पड़ा हुआ है.

कोटकासिम हवाई अड्डा
अलवर के कोटकासिम में देश का पहला ग्रीन फील्ड इंटरनेशनल हवाई अड्डा बना था. इसमें कार्गो के साथ यात्री जहाज भी उतरने थे. इसके लिए जमीन का अधिग्रहण की प्रक्रिया तक शुरू हो गई, लेकिन फिर अचानक काम बीच में रुक गया. इसके बाद शुरू हुए उत्तर प्रदेश के जेवर एयरपोर्ट पर जल्द काम शुरू होने वाला है. कोटकासिम एयरपोर्ट के लिए उस क्षेत्र के निर्माण पर भी रोक लगा दी गई है, लेकिन आज तक अलवर में एयरपोर्ट नहीं बना.

पर्यटन के लिए नहीं बनी कोई योजना
अलवर पर्यटन के लिहाज से समृद्ध जिला है. अलवर में सरिस्का टाइगर रिजर्व पार्क, सिटी पैलेस, पांडुपोल हनुमान मंदिर, भरतरी धाम, अजबगढ़ भानगढ़, नीलकंठ महादेव मंदिर, जैन मंदिर, सिलीसेढ़ झील जयसमंद बांध सहित बड़ी संख्या में दर्शनीय स्थल है. लेकिन, आज तक अलवर के लिए कोई बड़ी योजना नहीं बनी, जिससे यहां के पर्यटन स्थल को बढ़ावा मिल सके और उनकी हालत में सुधार हो सके.

अलवर में 52 किले
अलवर राजस्थान का पहला ऐसा जिला है, जहां 52 किले हैं. पर्यटन की दृष्टि से अलवर अन्य जिलों से अलग है. लेकिन, सरकार की तरफ से आज तक अलवर के लिए कोई योजना तैयार नहीं की गई. यहां के हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ.

बजट की है कमी
सरकार के पास बजट का अभाव है. पीडब्ल्यूडी यूआईडी की सभी योजनाएं रुकी हुई है. पीडब्ल्यूडी विभाग में करीब 200 करोड़ की पेंडेंसी चल रही है. इसी तरह अन्य सरकारी विभागों के हालात हैं. बजट की कमी के चलते युवाओं को समय पर बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलता. कोरोना के बाद से लगातार हालात ज्यादा खराब हो गए हैं.

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