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ब्रिटिश काल में पोस्टकार्ड के जरिए होती थी टिड्डी हमले की सूचना का आदान-प्रदान

भारत में टिड्डी का प्रकोप बहुत पहले से है. ब्रिटिश काल में टिड्डी का हमला होने पर संबंधित पटवारी और स्टाफ पोस्टकार्ड से टिड्डियों की सूचनाओं को आदान-प्रदान किया करते थे.

Locust information from postcards, Grasshopper attack from the British period
पोस्टकार्ड से टिड्डियों की सूचना
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Published : Jun 30, 2020, 11:08 PM IST

अजमेर. शहर में इन दिनों टिड्डियों का प्रकोप अधिक दिखाई दे रहा है. राजस्थान सहित दिल्ली, हरियाणा और अन्य राज्य भी टिड्डियों के प्रकोप से प्रभावित हो रहे हैं. लाखों की तादाद में टिड्डियां इधर से उधर ग्रामीण इलाकों में पहुंच रही है. बताया जा रहा है पाकिस्तान के सिंध से टिड्डियों की भारी संख्या में ब्रीडिंग हो रही है, जिसके चलते करोड़ों की तादात में टिड्डियां अलग-अलग राज्यों में प्रवेश कर रही है.

अजमेर में टिड्डी हमला

बता दें कि हिंदुस्तान में स्थापित टिड्डी नियंत्रण कंट्रोल रुम दुनिया में सबसे पुराना है. इसके संगठन के स्थापना को भी अनुमानित तौर पर 81 साल हो चुके हैं. भारत में ब्रिटिश काल में भी टिड्डी दल का आतंक था, जिसके बाद तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की ओर से 1940 टिड्डी चेतावनी संगठन स्थापित किया गया था. इसका निदेशालय दिल्ली में स्थापित किया गया था, जबकि सब स्टेशन कराची, पाकिस्तान में स्थापित किया गया था. इसके अलावा इस संगठन का काम थार रेगिस्तान में टिड्डी की निगरानी और गतिविधियों की सूचना देना मात्र था.

ब्रिटिश काल से भारत में टिड्डी का प्रकोप

आधुनिक समय में Whatsapp और फोन के जरिए दी जाती है सूचना

कृषि विभाग उप निदेशक वीके शर्मा ने बताया कि आधुनिक समय में विभाग की ओर से व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है. व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से ही सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है. उन्होंने बताया कि जिस तरह से नागौर में अगर टिड्डी प्रवेश करती है तो नागौर की ओर से टिड्डी प्रवेश की सूचना ग्रुप में दी जाती है, जिसके बाद आसपास के जिले को अलर्ट कर दिया जाता है. इसके अलावा फोन पर भी सूचना का आदान-प्रदान किया जाता है.

Locust information from postcards, Grasshopper attack from the British period
ब्रिटिश कार्ड का पोस्टकार्ड

पोस्टकार्ड के जरिए आदान-प्रदान होती थी सूचनाएं

महेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि भारत में टिड्डी का प्रकोप बहुत पहले से है. उन्होंने कहा कि देश में टिड्डियां लगातार प्रवेश करती रही है, लेकिन इस बार कई सालों बाद टिड्डियों का प्रवेश देशभर में देखा गया है. 2020 में बड़ी संख्या में टिड्डियां ग्रामीण इलाकों में अपना असर दिखा रही है, जिनको भगाने को लिए कृषि विभाग और सरकार की ओर से कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं.

Locust information from postcards, Grasshopper attack from the British period
पोस्टकार्ड से टिड्डियों की सूचना

पढ़ें- टिड्डी हमलाः किसान पसोपेश की स्थिति में...खरीफ फसल की बुवाई करें या नहीं!

उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल में संचार के आधुनिक साधन नहीं थे, लेकिन तत्कालीन सरकार और इलाके के पटवारी को दो अलग-अलग पते वाले पोस्टकार्ड दिए जाते थे जिनमें दिल्ली और कराची का पता अंकित होता था. टिड्डी का हमला होने पर संबंधित पटवारी और स्टाफ पोस्टकार्ड से टिड्डियों की सूचनाओं को आदान-प्रदान किया करते थे.

बता दें कि टिड्डी चेतावनी संगठन में कर्मचारी भी तैनात किए जाते थे, जिनका कार्य टिड्डियों के प्रवेश से पहले सूचनाओं का आदान-प्रदान करना था. इसमें करीब 250 कार्मिक कार्यरत थे. इसके अलावा दोनों देशों में टिड्डी नियंत्रण और चेतावनी को लेकर परस्पर बैठक का आयोजन भी होता था. साथ ही टिड्डियों के नियंत्रण और रोकथाम को लेकर दोनों ही देशों की ओर से प्रयास किए जाते थे.

कब-कब हुआ टिड्डी हमला...

महेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि टिड्डियों ने देश में कई बार नुकसान भी पहुंचाया है. साल 1812, 1821, 1876,1889,1907,1912, 1926, 1931, 1941, 1946, 1955, 1959, 1962, 1978, 1993, 1997, 2002, 2005, 2010, 2011 और साल 2020 में टिड्डियों ने हमला किया है.

साल 2020 से पहले टिड्डियों की ओर से इन सालों में ज्यादा प्रभाव रहा और टिड्डियों के हमले से किसानों का काफी नुकसान झेलना पड़ा. वर्तमान समय में टिड्डियां हरी सब्जियां, पेड़-पौधे और फसलों को चौपट कर रही है, तो वहीं ग्रामीण इलाकों में टिड्डियों को भगाने के लिए ढोल-ढमाके, डीजे और बर्तन या थाली का उपयोग किया जाता है.

अजमेर. शहर में इन दिनों टिड्डियों का प्रकोप अधिक दिखाई दे रहा है. राजस्थान सहित दिल्ली, हरियाणा और अन्य राज्य भी टिड्डियों के प्रकोप से प्रभावित हो रहे हैं. लाखों की तादाद में टिड्डियां इधर से उधर ग्रामीण इलाकों में पहुंच रही है. बताया जा रहा है पाकिस्तान के सिंध से टिड्डियों की भारी संख्या में ब्रीडिंग हो रही है, जिसके चलते करोड़ों की तादात में टिड्डियां अलग-अलग राज्यों में प्रवेश कर रही है.

अजमेर में टिड्डी हमला

बता दें कि हिंदुस्तान में स्थापित टिड्डी नियंत्रण कंट्रोल रुम दुनिया में सबसे पुराना है. इसके संगठन के स्थापना को भी अनुमानित तौर पर 81 साल हो चुके हैं. भारत में ब्रिटिश काल में भी टिड्डी दल का आतंक था, जिसके बाद तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की ओर से 1940 टिड्डी चेतावनी संगठन स्थापित किया गया था. इसका निदेशालय दिल्ली में स्थापित किया गया था, जबकि सब स्टेशन कराची, पाकिस्तान में स्थापित किया गया था. इसके अलावा इस संगठन का काम थार रेगिस्तान में टिड्डी की निगरानी और गतिविधियों की सूचना देना मात्र था.

ब्रिटिश काल से भारत में टिड्डी का प्रकोप

आधुनिक समय में Whatsapp और फोन के जरिए दी जाती है सूचना

कृषि विभाग उप निदेशक वीके शर्मा ने बताया कि आधुनिक समय में विभाग की ओर से व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है. व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से ही सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है. उन्होंने बताया कि जिस तरह से नागौर में अगर टिड्डी प्रवेश करती है तो नागौर की ओर से टिड्डी प्रवेश की सूचना ग्रुप में दी जाती है, जिसके बाद आसपास के जिले को अलर्ट कर दिया जाता है. इसके अलावा फोन पर भी सूचना का आदान-प्रदान किया जाता है.

Locust information from postcards, Grasshopper attack from the British period
ब्रिटिश कार्ड का पोस्टकार्ड

पोस्टकार्ड के जरिए आदान-प्रदान होती थी सूचनाएं

महेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि भारत में टिड्डी का प्रकोप बहुत पहले से है. उन्होंने कहा कि देश में टिड्डियां लगातार प्रवेश करती रही है, लेकिन इस बार कई सालों बाद टिड्डियों का प्रवेश देशभर में देखा गया है. 2020 में बड़ी संख्या में टिड्डियां ग्रामीण इलाकों में अपना असर दिखा रही है, जिनको भगाने को लिए कृषि विभाग और सरकार की ओर से कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं.

Locust information from postcards, Grasshopper attack from the British period
पोस्टकार्ड से टिड्डियों की सूचना

पढ़ें- टिड्डी हमलाः किसान पसोपेश की स्थिति में...खरीफ फसल की बुवाई करें या नहीं!

उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल में संचार के आधुनिक साधन नहीं थे, लेकिन तत्कालीन सरकार और इलाके के पटवारी को दो अलग-अलग पते वाले पोस्टकार्ड दिए जाते थे जिनमें दिल्ली और कराची का पता अंकित होता था. टिड्डी का हमला होने पर संबंधित पटवारी और स्टाफ पोस्टकार्ड से टिड्डियों की सूचनाओं को आदान-प्रदान किया करते थे.

बता दें कि टिड्डी चेतावनी संगठन में कर्मचारी भी तैनात किए जाते थे, जिनका कार्य टिड्डियों के प्रवेश से पहले सूचनाओं का आदान-प्रदान करना था. इसमें करीब 250 कार्मिक कार्यरत थे. इसके अलावा दोनों देशों में टिड्डी नियंत्रण और चेतावनी को लेकर परस्पर बैठक का आयोजन भी होता था. साथ ही टिड्डियों के नियंत्रण और रोकथाम को लेकर दोनों ही देशों की ओर से प्रयास किए जाते थे.

कब-कब हुआ टिड्डी हमला...

महेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि टिड्डियों ने देश में कई बार नुकसान भी पहुंचाया है. साल 1812, 1821, 1876,1889,1907,1912, 1926, 1931, 1941, 1946, 1955, 1959, 1962, 1978, 1993, 1997, 2002, 2005, 2010, 2011 और साल 2020 में टिड्डियों ने हमला किया है.

साल 2020 से पहले टिड्डियों की ओर से इन सालों में ज्यादा प्रभाव रहा और टिड्डियों के हमले से किसानों का काफी नुकसान झेलना पड़ा. वर्तमान समय में टिड्डियां हरी सब्जियां, पेड़-पौधे और फसलों को चौपट कर रही है, तो वहीं ग्रामीण इलाकों में टिड्डियों को भगाने के लिए ढोल-ढमाके, डीजे और बर्तन या थाली का उपयोग किया जाता है.

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