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कोड़ामार होलीः भाभी के कोड़ों की मार, देवर के रंगों की बौछार - Procession of Char Bhujanath Temple

अजमेर के ब्यावर में बुधवार को खेली गई कोड़ामार होली के दौरान भाभियों ने देवरों पर कोड़े बरसाएं, तो देवरों ने भी परंपरानुसार भाभियों को रंग लगाया. उसके बाद चार भुजानाथ मंदिर से शोभायात्रा निकाली गई. वहीं शोभायात्रा में भगवान के होली खेलने के बाद परंपरानुसार भाभी और देवरों ने करीब पौन घंटे तक कोड़ामार होली खेली.

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ब्यावर में भाभियों ने देवरों पर बरसाए सतरंगी कोड़े
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Published : Mar 12, 2020, 2:14 AM IST

Updated : Mar 12, 2020, 2:26 AM IST

अजमेर. शहर की धार्मिक नगरी ब्यावर शहर में परंपराओं के नाम पर कई तरह के तीज-त्यौहार व पर्व मनाए जाते है. इन्हीं तीज-त्यौहारों व पर्वों में शामिल है. धुलंडी के दूसरे दिन खेली जाने वाली जीनगर समाज की कोड़ामार होली जो कि बुधवार को खेली गई.

ब्यावर में भाभियों ने देवरों पर बरसाए सतरंगी कोड़े

कोड़ामार होली के दौरान भाभियों ने देवरों पर कोड़े बरसाए तो देवरों ने भी परंपरानुसार भाभियों पर रंग डाला. कोड़ामार होली के आयोजन से पूर्व दोपहर साढ़े बारह बजे चार भुजानाथ मंदिर से शोभायात्रा निकाली गई. शोभायात्रा पाली बाजार के मुख्य बाजार से होते हुए मंगल मार्केट के सामने पहुंची.

इसके बाद समाज के पदाधिकारियों द्वारा ठाकुरजी को कड़ाहों में स्नान करवाया गया. भगवान के होली खेलने के बाद परंपरानुसार भाभी और देवरों ने करीब पौन घंटे तक कोड़ामार होली खेली. इस अवसर पर जनप्रतिनिधी, पार्षदगणों सहित जीनगर समाज के गणमान्य व्यक्तियों सहित युवा उपस्थित रहें. ब्यावर में खेली जाने वाली कोड़ामार होली की परंपरा डेढ़ सौ साल पुरानी है. समाज द्वारा मुख्य बाजार में विभिन्न साइज के 9 बड़े कड़ाहों में पानी भरकर उनमें रंग घोला जाता है.

पढ़ें: अजमेर पुलिस की रंगारंग होली, गले मिलकर एक दूसरे को दी बधाई

ठाकुरजी को कड़ाहों में स्नान करवाकर उन्हें होली खिलाई जाती है. देवरों पर बरसाया जाने वाला कोड़ा होली के चार दिन पहले लहरिया रंग के सूती कपड़े से तैयार किया जाता है. उसे बट देकर दो दिन तक भिगोया जाता है, भाभियां देवरों पर कोड़े बरसाती है तो देवर उन पर रंग डालते है. जब देवरों द्वारा रंग डाला जाता है तो बचाव के लिये भाभियां उन पर कोड़े बरसाती है जो उनके अटूट स्नेह का प्रतीक माना जाता है.

समाज की महिलाओं का कहना है कि, ये परंपरा अतिप्राचीन है. यही कारण है कि आज भी ब्यावर में अच्छे स्तर पर कोड़ामार होली का आयोजन किया जाता है. देवरों द्वारा भाभियों पर फेंका गया रंग और बदले में मिलने वाले प्यार के कोड़े खाने के लिए सभी पुरुष इस होली में भाग लेते है. विभिन्न 9 कड़ाहों में भरा गया रंग खत्म होने के बाद ही होली का समापन किया जाता है और उसके पश्चात पुनः शोभायात्रा के साथ भगवान चारभुजा नाथजी को मंदिर तक विदाई दी जाती है.

अजमेर. शहर की धार्मिक नगरी ब्यावर शहर में परंपराओं के नाम पर कई तरह के तीज-त्यौहार व पर्व मनाए जाते है. इन्हीं तीज-त्यौहारों व पर्वों में शामिल है. धुलंडी के दूसरे दिन खेली जाने वाली जीनगर समाज की कोड़ामार होली जो कि बुधवार को खेली गई.

ब्यावर में भाभियों ने देवरों पर बरसाए सतरंगी कोड़े

कोड़ामार होली के दौरान भाभियों ने देवरों पर कोड़े बरसाए तो देवरों ने भी परंपरानुसार भाभियों पर रंग डाला. कोड़ामार होली के आयोजन से पूर्व दोपहर साढ़े बारह बजे चार भुजानाथ मंदिर से शोभायात्रा निकाली गई. शोभायात्रा पाली बाजार के मुख्य बाजार से होते हुए मंगल मार्केट के सामने पहुंची.

इसके बाद समाज के पदाधिकारियों द्वारा ठाकुरजी को कड़ाहों में स्नान करवाया गया. भगवान के होली खेलने के बाद परंपरानुसार भाभी और देवरों ने करीब पौन घंटे तक कोड़ामार होली खेली. इस अवसर पर जनप्रतिनिधी, पार्षदगणों सहित जीनगर समाज के गणमान्य व्यक्तियों सहित युवा उपस्थित रहें. ब्यावर में खेली जाने वाली कोड़ामार होली की परंपरा डेढ़ सौ साल पुरानी है. समाज द्वारा मुख्य बाजार में विभिन्न साइज के 9 बड़े कड़ाहों में पानी भरकर उनमें रंग घोला जाता है.

पढ़ें: अजमेर पुलिस की रंगारंग होली, गले मिलकर एक दूसरे को दी बधाई

ठाकुरजी को कड़ाहों में स्नान करवाकर उन्हें होली खिलाई जाती है. देवरों पर बरसाया जाने वाला कोड़ा होली के चार दिन पहले लहरिया रंग के सूती कपड़े से तैयार किया जाता है. उसे बट देकर दो दिन तक भिगोया जाता है, भाभियां देवरों पर कोड़े बरसाती है तो देवर उन पर रंग डालते है. जब देवरों द्वारा रंग डाला जाता है तो बचाव के लिये भाभियां उन पर कोड़े बरसाती है जो उनके अटूट स्नेह का प्रतीक माना जाता है.

समाज की महिलाओं का कहना है कि, ये परंपरा अतिप्राचीन है. यही कारण है कि आज भी ब्यावर में अच्छे स्तर पर कोड़ामार होली का आयोजन किया जाता है. देवरों द्वारा भाभियों पर फेंका गया रंग और बदले में मिलने वाले प्यार के कोड़े खाने के लिए सभी पुरुष इस होली में भाग लेते है. विभिन्न 9 कड़ाहों में भरा गया रंग खत्म होने के बाद ही होली का समापन किया जाता है और उसके पश्चात पुनः शोभायात्रा के साथ भगवान चारभुजा नाथजी को मंदिर तक विदाई दी जाती है.

Last Updated : Mar 12, 2020, 2:26 AM IST
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