अजमेर. राजस्थान की ह्रदय स्थली अजमेर मुगलों के बाद अंग्रेजों की भी पसंदीदा जगह रही है. शहर की बीच स्थित अजमेर का किला, जो कभी अकबर का किला के नाम से विख्यात था. यह ऐतिहासिक इमारत अपने अतीत में कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह रही है. ये किला भारत में अंग्रेजों के दासता के प्रथम अध्याय की गवाह भी बनी.
15 अगस्त को देश 74वां आजादी का जश्न मनाने जा रहा है. ऐसे में ईटीवी भारत इतिहास की महत्वपूर्ण घटना को बताने जा रहा है. यह अजमेर का वही किला है, जहां ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने की संधि का फरमान मुगल बादशाह जहांगीर ने जारी किया था. इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत के हिंदुस्तान में ऐसे पैर जमे कि उन्हें उखाड़ने में कई कुर्बानियां देनी पड़ी.
बता दें कि बादशाह जहांगीर तीन साल तक अजमेर में रहे. इस बीच सन 1616 में इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम के निर्देशों के तहत सर थॉमस रो ने इस किले में मुगल बादशाह जहांगीर से मुलाकात की. थॉमस रो का मकसद था व्यवसायिक संधि की अनुमति लेना. ईस्ट इंडिया कंपनी को सूरत और भारत के अन्य क्षेत्रों में निवास करने और कारखानों को स्थापित करने के लिए विशेष अधिकार देना था. सर थॉमस रो के साथ कई बैठकों के बाद बादशाह जहांगीर ने प्रस्ताव पर इसी किले में अपनी सहमति दी थी. इस प्रकार अंग्रेजों को भारत में पैर जमाने का अधिकार अजमेर के किले से मिला था.
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फिरंगियों ने अजमेर और ब्यावर में बनाई थी छावनी...
पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के वृत अधीक्षक नीरज त्रिपाठी बताते हैं कि देश में अंग्रेजों की दासता और जुल्म का पहला अध्याय अजमेर से शुरू हुआ था. देश में पैर जमाने के साथ अंग्रेजों ने अजमेर और ब्यावर को अपनी छावनी बनाया. यहां रेल कारखाने स्थापित किए और कई महत्वपूर्ण कार्यालय यहां खोले गए. मुगलों के बाद अजमेर के किले में कुछ समय तक मराठों का राज रहा, लेकिन मराठों के बाद से अजमेर का किला अंग्रेजी हुकूमत के अधीन होकर शस्त्रागार (मैगजीन) बन गया.
क्रांति का केंद्र भी रहा अजमेर...
आजादी के दीवानों के लिए भी अजमेर क्रांति का केंद्र रहा. महात्मा गांधी, भगत सिंह, अर्जुन लाल सेठी जैसे कई महापुरुष कई बार अजमेर आए. खास बात यह कि देश में गुलामी की दास्तां का गवाह बनने वाला अजमेर का किला आजादी के ऐलान के बाद की उस सुखद घटना का गवाह भी बना.
आजादी का पहला तिरंगा जिले में किले पर लहराया...
सन 14 अगस्त 1947 को रात्रि 12 बजे देश के आजाद होने का ऐलान हुआ. इस दौरान हजारों लोग अजमेर के किले के बाहर एकत्रित हो गए. उस दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जीतमल लुणीया ने आजादी की घोषणा कर अजमेर के किले से अंग्रेजी हुकूमत के प्रतीक झंडा उतार कर वहां तिरंगा फहराया. गुलामी से लेकर आजादी तक की घटनाओं को अजमेर का किला अपने इतिहास के पन्नों में समेटे हुए है.