अजमेर. कोरोना संक्रमण के चलते लोग केवल जरूरी काम से ही घर से बाहर निकल रहे हैं. इस कारण छोटे कामगारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. इन कामगारों में बड़ी संख्या धोबी का काम करने वालों की भी है. लॉकडाउन के बाद से ही इनकी दुकानें बंद हैं. लोगों ने कपड़े धोने और प्रेस करने लिए कपड़े देने भी बंद कर दिए हैं. जिले में 350 से ज्यादा परिवार धोबी का काम करते हैं लेकिन इन दिनों उनके लिए घर चलाना भी मुश्किल हो गया है.
कपड़ों की सिलवटें सीधा करने वाले धोबी कोरोना संक्रमण काल में खुद के जीवन में आई आर्थिक सिलवटों को दूर नहीं कर पा रहे हैं. कोरोना ने इनके रोजगार पर ऐसा ब्रेक लगाया कि घर चलाना भी मुश्किल हो गया है. अजमेर में तोपदड़ा इलाके में मौजूद अंग्रेजों के जमाने मे बने धोबी घाट पर चारों तरफ रंग-बिरंगे कपड़े फैले दिखते थे. शादी-ब्याह, त्यौहार आदि के चलते धोबियों का रोजगार अच्छा चल रहा था. लेकिन आज हालात यह है कि धोबी घाट सूना हो गया है.
बताते हैं कि अंग्रेजों के जमाने का बना धोबी घाट खस्ताहाल हो गया है. वर्षों से यहां मरम्मत, पेयजल एवं सफाई की समुचित व्यवस्था नहीं कराई गई है. सैकड़ों बार मांग की जा चुकी है लेकिन आज तक एक ढेला भी धोबी घाट के सुधार में नहीं लगाया गया.
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धोबियों का कहना है कि होटल, रेस्टोरेन्ट, सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं से उन्हें काम नहीं मिल रहा है. कोरोना संक्रमण के डर से लोगों ने भी कपड़े देना बंद कर दिया है. यही वजह है कि हमेशा आबाद रहने वाले धोबी घाट पर सन्नाटा पसरा रहता है. सरकार की ओर से कोरोना संक्रमण काल में कोई मदद नहीं मिली. समाज के लोगों ने ही गरीब परिवारों में खाद्य सामग्री के पैकेट बांटे थे.
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धोबी घाट के नजदीक धोबी संघ का कार्यालय है जहां 22 मार्च से ताला लटका हुआ है. पास ही समाज की धर्मशाला है जहां कपड़े रखने की व्यवस्था रहती है लेकिन यह भी बंद ही है. उन्होंने बताया कि होटल, रेस्टोरेंट में अभी कोई नहीं जाता. यही हाल दरगाह चित्र के सभी होटल और गेस्ट हाउस का भी है. यहां कोई नहीं आता जिससे उन्हें काम नहीं मिल रहा है. उन्होंने बताया कि कोरोना की दहशत में लोग कपड़े धुलवाने या प्रेस करवाने को भी नहीं दे रहे हैं.
अजमेर जिले में 350 से अधिक धोबी की दुकाने हैं. कई धोबियों ने काम नहीं मिलने से दुकाने बंद कर दूसरा काम शुरू कर दिया है. कुछ पर तो हजारों रुपये कर्ज भी हो गया है. दुकान का किराया, बिजली का बिल देना तो दूर पेट भरना भी मुश्किल हो गया है. उन्होंने बताया कि ड्राई क्लीन, धुलाई के लिए आए पहले के कपड़े भी लोग लेने नहीं आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि कुछ राज्यों में धोबी समाज के लोगों की सरकार ने आर्थिक मदद की है लेकिन यहां किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है.