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ख्वाजा के दरबार में दिखती है गंगा जमुनी तहजीब की झलक, यहां अलग हैं मजहब के मायने....

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Published : Apr 17, 2022, 10:21 AM IST

अजेमर में गंगा जमुनी तहजीब का एक और उदाहरण है (Dargah of Sufi saint Khwaja Garib Nawaz in ajmer) सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह. यहां रमजान के मुबारक मौके पर हर धर्म, जाति के लोग कतार में इफ्तारी करते हैं. भाइचारे और साम्प्रदायिक सद्भाव की नगरी अजमेर में स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में मज़हब के अलग मायने हैं....

Ganga Jamuni tehzeeb in Ajmer
अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह

अजमेर. साम्प्रदायिक सद्भाव की नगरी अजमेर में विश्व विख्यात सूफी संत (Ramdaan 2022) ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में रमजान की इबादत का दौर जारी है. रमजान के पाक मौके पर रोजे रखकर लोग खुदा के सामने सिर झुकाते हैं, वहीं दरगाह परिसर में हर रोज इफ्तारी में साम्प्रदायिक सद्भाव की झलक भी देखने को मिल रही है. यहां की खास बात है हर जाति, धर्म, मजहब के लोग एक कतार में इफ्तारी करते हैं. रमजान में इबादत के साथ भाईचारे और मोहब्बत की हर रोज गंगा जमुनी तहजीब साकार होती नजर आती है.

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में मजहब के मायने बदल जाते हैं. यहां आने वाले हर शख्स को इंसानियत, भाईचारा और मोहब्बत की शिक्षा मिलती है और यही वजह है कि देश और दुनिया में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव के रूप में पहचानी जाती है. रमजान के पवित्र महीने में जहां रोजेदार भूख-प्यास पर नियंत्रण कर खुद को इबादत के जरिए खुदा से जोड़ते हैं, वहीं ख्वाजा गरीब नवाज के अनुयायी उनकी शिक्षाओं पर अमल कर गंगा जमुनी तहजीब को साकार कर रहे हैं. दरगाह के खादिम सैयद पीर फख्र काजमी चिश्ती बताते हैं कि मंझला रोजा शुरू हो गया है यानी रमजान आधे हो गए हैं. रमजान का मुबारक महीना साल में एक मर्तबा आता है. रमजान का महीना बरकत और रहमतों का महीना है.

अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह

केवल भूख-प्यास नहीं, रूह पर भी काबू: काज़मी बताते है कि रोजा रखना मतलब खुद पर नियंत्रण करना होता है. रोजेदार की नीयत एक ताले की तरह है. सहरी के बाद बड़ी से बड़ी नियामत आने पर भी हलक से नीचे कुछ भी जाने नहीं दिया जाता. रोजे में केवल भूख प्यास को मारा नहीं जाता बल्कि रूह को भी नियंत्रण में किया जाता है. लालच, हसरत, बुराई, बदला लेने की भावना, किसी को तकलीफ देने की भावना न आए, ये ही रोजा है. यानी बुरा न बोलो, बुरा न देखो और बुरा न सुनो. काज़मी ने बताया कि दरगाह में खादिम समुदाय के अलावा अकीदतमंद सहरी और इफ्तारी की व्यवस्था करते हैं. रमजान में मस्जिदों में इफ्तारी के बाद विशेष नमाज तराहवी होती है. मस्जिदों में हाफिज कुरान सुनाते हैं. माना जाता है कि जिसने जिंदगी में कभी कुरान नही पढ़ी है, वो भी कुरान सुन सकते हैं.

पढ़ें-Ramadan 2022 : देश के कई हिस्सों में नजर आया रमजान का चांद, रविवार को पहला रोजा

इस पाक महीने में विशेषकर कुरान पढ़ने को ही अहम माना जाता है. नमाज और तरावही पढ़ना (Dargah of Sufi saint Khwaja Garib Nawaz in ajmer) जरूरी है लेकिन कुरान पढ़ना ज्यादा विशेष है. दरगाह में 4 वक्त खिदमत होती है. वहीं आस्ताने में 4 वक़्त रोजेदारों और अकीदतमंदों के लिए दुआ की जाती है. इसके साथ ही कोरोना के खात्मे और यूक्रेन रूस के बीच चल रही जंग खत्म होने और देश की तरक्की, खुशहाली एवं भाईचारे की दुआ मांगते हैं.

42 मीटर की चादर होती है पेश: काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज ने अपनी जिंदगी में फटे हुए कपड़े पहने हैं. अपने पीर से मिले एक झब्बे को पैबंद लगाकर पहना करते थे. उनके कपड़े में इतने पैबंद लग गए कि उसका वजन भी 40 सेर हो गया था. ख्वाजा गरीब नवाज जौ को कूटकर दलिया बनाकर खाते थे. ख्वाजा गरीब नवाज की मजार पर आकर अकीदतमंद मन्नत मांगता है. उसकी मुराद पूरी होने पर वो फूल और चादर पेश करता है. उन्होंने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज की मजार बड़ी है, जबकि अन्य दरगाहों में मजार छोटे हैं. यहां 42 मीटर की चादर यानी 7 मीटर लंबी और 6 मीटर चौड़ी चादर पेश होती है. उन्होंने बताया कि चादर पेश करने की परंपरा यहीं से शुरू हुई है. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में जायरीन ज्यादा आते हैं, इसलिए चादर भी यहां ज्यादा पेश होती है. ये लोगों की अकीदत है. वो अपनी आस्था के अनुसार चादर पेश करते हैं.

अजमेर. साम्प्रदायिक सद्भाव की नगरी अजमेर में विश्व विख्यात सूफी संत (Ramdaan 2022) ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में रमजान की इबादत का दौर जारी है. रमजान के पाक मौके पर रोजे रखकर लोग खुदा के सामने सिर झुकाते हैं, वहीं दरगाह परिसर में हर रोज इफ्तारी में साम्प्रदायिक सद्भाव की झलक भी देखने को मिल रही है. यहां की खास बात है हर जाति, धर्म, मजहब के लोग एक कतार में इफ्तारी करते हैं. रमजान में इबादत के साथ भाईचारे और मोहब्बत की हर रोज गंगा जमुनी तहजीब साकार होती नजर आती है.

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में मजहब के मायने बदल जाते हैं. यहां आने वाले हर शख्स को इंसानियत, भाईचारा और मोहब्बत की शिक्षा मिलती है और यही वजह है कि देश और दुनिया में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव के रूप में पहचानी जाती है. रमजान के पवित्र महीने में जहां रोजेदार भूख-प्यास पर नियंत्रण कर खुद को इबादत के जरिए खुदा से जोड़ते हैं, वहीं ख्वाजा गरीब नवाज के अनुयायी उनकी शिक्षाओं पर अमल कर गंगा जमुनी तहजीब को साकार कर रहे हैं. दरगाह के खादिम सैयद पीर फख्र काजमी चिश्ती बताते हैं कि मंझला रोजा शुरू हो गया है यानी रमजान आधे हो गए हैं. रमजान का मुबारक महीना साल में एक मर्तबा आता है. रमजान का महीना बरकत और रहमतों का महीना है.

अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह

केवल भूख-प्यास नहीं, रूह पर भी काबू: काज़मी बताते है कि रोजा रखना मतलब खुद पर नियंत्रण करना होता है. रोजेदार की नीयत एक ताले की तरह है. सहरी के बाद बड़ी से बड़ी नियामत आने पर भी हलक से नीचे कुछ भी जाने नहीं दिया जाता. रोजे में केवल भूख प्यास को मारा नहीं जाता बल्कि रूह को भी नियंत्रण में किया जाता है. लालच, हसरत, बुराई, बदला लेने की भावना, किसी को तकलीफ देने की भावना न आए, ये ही रोजा है. यानी बुरा न बोलो, बुरा न देखो और बुरा न सुनो. काज़मी ने बताया कि दरगाह में खादिम समुदाय के अलावा अकीदतमंद सहरी और इफ्तारी की व्यवस्था करते हैं. रमजान में मस्जिदों में इफ्तारी के बाद विशेष नमाज तराहवी होती है. मस्जिदों में हाफिज कुरान सुनाते हैं. माना जाता है कि जिसने जिंदगी में कभी कुरान नही पढ़ी है, वो भी कुरान सुन सकते हैं.

पढ़ें-Ramadan 2022 : देश के कई हिस्सों में नजर आया रमजान का चांद, रविवार को पहला रोजा

इस पाक महीने में विशेषकर कुरान पढ़ने को ही अहम माना जाता है. नमाज और तरावही पढ़ना (Dargah of Sufi saint Khwaja Garib Nawaz in ajmer) जरूरी है लेकिन कुरान पढ़ना ज्यादा विशेष है. दरगाह में 4 वक्त खिदमत होती है. वहीं आस्ताने में 4 वक़्त रोजेदारों और अकीदतमंदों के लिए दुआ की जाती है. इसके साथ ही कोरोना के खात्मे और यूक्रेन रूस के बीच चल रही जंग खत्म होने और देश की तरक्की, खुशहाली एवं भाईचारे की दुआ मांगते हैं.

42 मीटर की चादर होती है पेश: काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज ने अपनी जिंदगी में फटे हुए कपड़े पहने हैं. अपने पीर से मिले एक झब्बे को पैबंद लगाकर पहना करते थे. उनके कपड़े में इतने पैबंद लग गए कि उसका वजन भी 40 सेर हो गया था. ख्वाजा गरीब नवाज जौ को कूटकर दलिया बनाकर खाते थे. ख्वाजा गरीब नवाज की मजार पर आकर अकीदतमंद मन्नत मांगता है. उसकी मुराद पूरी होने पर वो फूल और चादर पेश करता है. उन्होंने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज की मजार बड़ी है, जबकि अन्य दरगाहों में मजार छोटे हैं. यहां 42 मीटर की चादर यानी 7 मीटर लंबी और 6 मीटर चौड़ी चादर पेश होती है. उन्होंने बताया कि चादर पेश करने की परंपरा यहीं से शुरू हुई है. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में जायरीन ज्यादा आते हैं, इसलिए चादर भी यहां ज्यादा पेश होती है. ये लोगों की अकीदत है. वो अपनी आस्था के अनुसार चादर पेश करते हैं.

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