अजमेर. वर्ष 2020 कोरोना काल में गुजरा. मार्च 2020 में लगे लॉकडाउन के दौरान तमाम गतिविधियां बंद रही. इस दौरान स्कूल, कॉलेज और कोचिंग इंस्टीट्यूट्स भी बंद रहे, जिसके चलते बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई. इसी बीच सरकार ने ऑनलाइन एजुकेशन पर जोर दिया. बच्चों ने ऑनलाइन के जरिए घर पर ही पढ़ाई की. लेकिन, अब कोरोना काल का लंबा वक्त गुजर चुका है. सरकार ने 9वीं से 12वीं कक्षा तक के लिए स्कूल भी खोल दी है. बच्चे अब स्कूल जा रहे हैं. शिक्षा विभाग ने पाठ्यक्रम में 60 फीसदी कटौती कर बच्चों को राहत भी दी, लेकिन इसका फायदा ना ही बच्चों, ना ही शिक्षकों को मिल पा रहा है. देखें ये खास रिपोर्ट...
समय अवधि कम, पाठ्यक्रम ज्यादा...
प्रदेश में 18 जनवरी से कक्षा 9वीं से 12वीं तक के लिए स्कूल खोल दी गई. स्कूल सत्र का लंबा समय निकलने के बाद स्कूल खोलने की घोषणा हुई. ऐसे में सिलेबस को पूरा कराने की बड़ी चुनौती थी, तो सरकार ने पाठ्यक्रम में 60 फीसदी कटौती कर राहत दी. लेकिन, खास बात है कि संशोधित पाठ्यक्रम और ऑनलाइन हुई पढ़ाई में कोई समानता दिखाई नहीं दी. 9वीं और 11वीं के लिए शिक्षा विभाग और 10वीं और 12वीं कक्षा के लिए कुल पाठ्यक्रम का 40 फीसदी संशोधित पाठ्यक्रम स्कूल खुलने के बाद पढ़ाया जा रहा है. विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए संशोधित 40 फीसदी पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए समय अवधि कम है.
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कोर्स में 60 फीसदी की कटौती...
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड 10वीं और 12वीं की परीक्षा मई माह के अंतिम सप्ताह में होगी. इसी बीच प्रदेश के हर जिले की बड़ी सरकारी स्कूलों के भवन में एसटीसी की परीक्षाएं आयोजित हो रही थी. इन सभी बड़ी स्कूलों को 3 फरवरी से खोला गया है. शिक्षा विभाग ने पाठ्यक्रम में 60 फीसदी कटौती तो कर दी, लेकिन गणित, विज्ञान सहित कई विषयों में एक चैप्टर से कई अंश कम कर दिए. इससे विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए परेशानी खड़ी हो गई है. शिक्षकों और विद्यार्थियों का कहना है कि हटाए गए अंश के बिना शेष रहे पाठ को समझना और समझाना भारी पड़ रहा है.
विद्यार्थियों पर ज्यादा बोझ...
भौतिकी विषय के व्याख्याता सुरेंद्र पाल सिंह बताते हैं कि निर्धारित पाठ्यक्रम और ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर विद्यार्थियों पर ज्यादा बोझ पड़ा है. उन्होंने बताया कि पाठ्यक्रम में उन कोर्स को हटाया गया है, जिसको पढ़े बिना आगे के कोर्स को पढ़ना संभव नहीं है. उस कोर्स को हटाने की बजाय वो टॉपिक्स हटाये जाने चाहिए थे, जो विद्यार्थियों को दोबारा कॉलेज में पढ़ने है. सही मायने में तब ही विद्यार्थियों के लिए कोर्स कम कहा जा सकता था. उन्होंने कहा कि ऑनलाइन पढ़ाई में विद्यार्थी नियमित नहीं रह पाए, जो छूट गया वो छूट गया. इस कारण आगे का भी उन्हें समझ नहीं आया. ऐसे में स्कूल खुलने के बाद बच्चों की पढ़ाई को जीरो से शुरुआत करनी पड़ी. यही वजह है कि पाठ्यक्रम पूरा करवाने का दबाव पड़ रहा है.
शिक्षकों पर कोर्स का दबाव...
शिक्षकों पर समय अवधि में पाठ्यक्रम पूरा करवाने का दबाव है, इसका असर विद्यार्थियों की परफॉर्मेंस पर भी पड़ेगा. इधर, कोर्स को लेकर विद्यार्थी भी मुश्किल में है. विद्यार्थियों ने बताया कि ऑनलाइन ने उन्हें पढ़ाई से जोड़े रखा, लेकिन सही मायने में प्रश्नों को समझने का अवसर स्कूल खुलने के बाद शिक्षकों से ही मिला. स्कूल खुलने के बाद पढ़ाई में सुधार आया है. लेकिन, समय कम होने से पाठ्यक्रम पूरा कर पाएंगे, संभव नहीं है. चार माह से भी कम समय अब रह गया है, इस बीच कई अवकाश भी है. कोरोना के चलते अजमेर में सरकारी स्कूलों में विद्यार्थी की उपस्थिति 40 से 50 फीसदी ही है. अजमेर की सबसे पुरानी और बड़ी राजकीय तोपदड़ा उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रचार्य शम्भू सिंह लांबा बताते हैं कि परीक्षा को 3 माह समय शेष रह गया है और पाठ्यक्रम ज्यादा है. विद्यार्थियों में परीक्षा को लेकर डर है. उन्होंने बताया कि विद्यार्थी के सामने पाठ्यक्रम को पूरा करने की बड़ी चुनौती है.
परिणाम में दिखेगा असर
पाठ्यक्रम को लेकर शिक्षकों और विद्यार्थी के समक्ष बड़ी चुनौती है. बोर्ड ने भी विद्यार्थियों को राहत देने के लिए परीक्षा में प्रश्न पत्रों का पैटर्न बदला है. प्रश्न पत्रों में प्रश्नों के विकल्प बढ़ाए गए. इससे प्रश्न को हल करने के लिए विद्यार्थी को पहले से ज्यादा विकल्प मिलेंगे. ऑनलाइन पढ़ाई, स्कूल खुलने पर 40 फीसदी पाठ्यक्रम और परीक्षा में प्रश्न पत्रों में प्रश्नों के विकल्प में बढ़ोत्तरी से विद्यार्थियों को राहत मिली. लेकिन, विद्यार्थियों को दी गई इन राहत में तारतम्य नहीं होने से इसका विपरीत असर परीक्षा परिणामों में भी देखने को मिल सकता है.