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Shardiya Navratri 2023 : राजस्थान में रेत के टीलों और पहाड़ियों के बीच स्थित हैं मां वांकल, जानिए क्या है मंदिर का इतिहास

शारदीय नवरात्रि का आज तीसरा दिन है. नवरात्रि को लेकर विभिन्न मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जा रही है. शारदीय नवरात्र के इस मौके पर आज हम आपको पश्चिमी राजस्थान के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो रेत के टीलों और पहाड़ियों के बीच में स्थापित है. मान्यता है कि यहां भक्तों की मुराद पूरी होती है. जानिए क्या है इस मंदिर का इतिहास...

Shardiya Navratri 2023
Maa Vankal Temple In Rajasthan
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 17, 2023, 6:32 AM IST

मां वांकल का मंदिर

बाड़मेर. राजस्थान के बाड़मेर जिला मुख्यालय से करीबन 60 किलोमीटर दूर रेतीले धोरों और पहाड़ियों के बीच वांकल धाम विरात्रा माता मंदिर स्थापित है. मान्यता है कि इस मंदिर का ऐसा चमत्कार है कि यहां हर भक्त की मन्नत पूरी होती है. यही वजह है कि राजस्थान सहित पूरे देश से बड़ी संख्या में भक्त मां के दरबार में आते हैं. खास कर नवरात्रि के 9 दिनों तक मेले जैसा माहौल रहता है और भक्तों का तांता लगा रहता है.

ऐसे हुई पहाड़ी पर देवी की मूर्ति स्थापित : विरात्रा धाम ट्रस्ट के सचिव भैरसिंह सोढा बताते हैं कि लगभग 2 हजार साल पहले उज्जैन के राजा विक्रमादित्य हिंगलाज शक्तिपीठ (बलूचिस्तान) से मूर्ति उज्जैन ले जा रहे थे. माता ने राजा विक्रमादित्य से वचन लिया था कि यहां से उज्जैन जाते समय वो पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे. चौहटन के ढोक गांव के पास पहाड़ियों पर रात्रि विश्राम के बाद सुबह उठे और किन्ही कारणों से राजा दिशा भूलकर पीछे मुड़ गए, जिससे मां हिंगलाज को दिया वचन टूट गया. इसके बाद मां वांकल की मूर्ति यहीं पहाड़ी पर स्थापित हो गई.

पढे़ं. Rajasthan : यहां बाल स्वरूप में विराजमान हैं काली मां, बदलती हैं भाव भंगिमा

एक पहाड़ी पर तो दूसरा नीचे है मंदिर : एक किस्सा यह भी है कि देवी के दर्शन के लिए पहाड़ियों पर चढ़ते वक्त परेशान हो रही एक बुजुर्ग महिला ने देवी मां से प्रार्थना करते हुए कहा कि अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए आप नीचे विराजमान हो जाएं. कहा जाता है कि इसके बाद ऊपर पहाड़ी से एक पत्थर नीचे की तरफ लुढक कर आ गया. इसी पत्थर के ऊपर मां वांकल की मूर्ति स्थापित है. 12 वर्ष पहले विरात्रा ट्रस्ट की ओर से विधि विधान के साथ नवनिर्मित मंदिर का निर्माण कर प्रतिष्ठा करवाई गई थी. भैरसिंह सोढा ने बताया कि मंदिर के प्रति लोगों में गहरी आस्था है. नवरात्रि के दिनों में यहां बड़ी संख्या में लोग दूर दराज से पहुंचते हैं. ट्रस्ट की ओर से मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए तमाम तरह की व्यवस्थाएं की गईं हैं.

पढे़ं. Shardiya Navratri 2023 : ऋषि मार्कण्डेय को यहां मां गौरी ने दिए थे दर्शन, मंदिर की महिमा अपरंपार

साल में 3 बार लगता है मेला : विरात्रा मंदिर के आसपास अन्य 12 देवी मंदिर स्थित हैं, जिसमें गोराना माता मंदिर, तोरणिया माता मंदिर, रोहिणी माता मंदिर, वैर माता मंदिर, बाण माता मंदिर सहित कई देवस्थान शामिल हैं. यहां भक्त आकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए हाजिरी लगाते हैं. हर साल माघ, चैत्र और भादवा माह यानी तीन बार मेलों का आयोजन किया जाता है.

श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र: वांकल विरात्रा माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है. यहां आने वाले श्रद्धालु ने बताया कि विरात्रा मंदिर में हर दिन श्रद्धालुओं की रेलम-पेल लगी ही रहती है, लेकिन नवरात्रि के दिन विरात्रा मंदिर में 9 दिन तक लगातार मेले सा माहौल देखने को मिलता है. हर दिन मां वांकल की पूजा अर्चना, हवन सहित महायज्ञ का आयोजन और महाआरती का भी आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया कि बचपन से ही उनका परिवार मंदिर से जुड़ा हुआ है. भक्तों की आस्था है कि जो जिस मनोकामना के साथ यहां आता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.

मां वांकल का मंदिर

बाड़मेर. राजस्थान के बाड़मेर जिला मुख्यालय से करीबन 60 किलोमीटर दूर रेतीले धोरों और पहाड़ियों के बीच वांकल धाम विरात्रा माता मंदिर स्थापित है. मान्यता है कि इस मंदिर का ऐसा चमत्कार है कि यहां हर भक्त की मन्नत पूरी होती है. यही वजह है कि राजस्थान सहित पूरे देश से बड़ी संख्या में भक्त मां के दरबार में आते हैं. खास कर नवरात्रि के 9 दिनों तक मेले जैसा माहौल रहता है और भक्तों का तांता लगा रहता है.

ऐसे हुई पहाड़ी पर देवी की मूर्ति स्थापित : विरात्रा धाम ट्रस्ट के सचिव भैरसिंह सोढा बताते हैं कि लगभग 2 हजार साल पहले उज्जैन के राजा विक्रमादित्य हिंगलाज शक्तिपीठ (बलूचिस्तान) से मूर्ति उज्जैन ले जा रहे थे. माता ने राजा विक्रमादित्य से वचन लिया था कि यहां से उज्जैन जाते समय वो पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे. चौहटन के ढोक गांव के पास पहाड़ियों पर रात्रि विश्राम के बाद सुबह उठे और किन्ही कारणों से राजा दिशा भूलकर पीछे मुड़ गए, जिससे मां हिंगलाज को दिया वचन टूट गया. इसके बाद मां वांकल की मूर्ति यहीं पहाड़ी पर स्थापित हो गई.

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एक पहाड़ी पर तो दूसरा नीचे है मंदिर : एक किस्सा यह भी है कि देवी के दर्शन के लिए पहाड़ियों पर चढ़ते वक्त परेशान हो रही एक बुजुर्ग महिला ने देवी मां से प्रार्थना करते हुए कहा कि अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए आप नीचे विराजमान हो जाएं. कहा जाता है कि इसके बाद ऊपर पहाड़ी से एक पत्थर नीचे की तरफ लुढक कर आ गया. इसी पत्थर के ऊपर मां वांकल की मूर्ति स्थापित है. 12 वर्ष पहले विरात्रा ट्रस्ट की ओर से विधि विधान के साथ नवनिर्मित मंदिर का निर्माण कर प्रतिष्ठा करवाई गई थी. भैरसिंह सोढा ने बताया कि मंदिर के प्रति लोगों में गहरी आस्था है. नवरात्रि के दिनों में यहां बड़ी संख्या में लोग दूर दराज से पहुंचते हैं. ट्रस्ट की ओर से मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए तमाम तरह की व्यवस्थाएं की गईं हैं.

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साल में 3 बार लगता है मेला : विरात्रा मंदिर के आसपास अन्य 12 देवी मंदिर स्थित हैं, जिसमें गोराना माता मंदिर, तोरणिया माता मंदिर, रोहिणी माता मंदिर, वैर माता मंदिर, बाण माता मंदिर सहित कई देवस्थान शामिल हैं. यहां भक्त आकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए हाजिरी लगाते हैं. हर साल माघ, चैत्र और भादवा माह यानी तीन बार मेलों का आयोजन किया जाता है.

श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र: वांकल विरात्रा माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है. यहां आने वाले श्रद्धालु ने बताया कि विरात्रा मंदिर में हर दिन श्रद्धालुओं की रेलम-पेल लगी ही रहती है, लेकिन नवरात्रि के दिन विरात्रा मंदिर में 9 दिन तक लगातार मेले सा माहौल देखने को मिलता है. हर दिन मां वांकल की पूजा अर्चना, हवन सहित महायज्ञ का आयोजन और महाआरती का भी आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया कि बचपन से ही उनका परिवार मंदिर से जुड़ा हुआ है. भक्तों की आस्था है कि जो जिस मनोकामना के साथ यहां आता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.

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