ETV Bharat / bharat

बच्चों की तरह 'पितृदंड' का ख्याल रखते हैं पिंडदानी, पूर्वजों के लिए ट्रेनों-बसों में रिजर्व होती है सीट

बिहार के गया जी, लोग पिंड दान (PIND DAAN ) करने के लिए पहुंचते हैं. मान्यता है कि पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दौरान पितृदंड का भी विशेष महत्व होता है. पितृदंड का पिंडदानी बच्चों की तरह ख्याल रखते हैं और माता-पिता की तरह पूजते हैं. घर से निकलने से लेकर गया जी पहुंचने तक इसका खास ध्यान रखा जाता है. पितृदंड के लिए ट्रेनों और बसों में टिकट तक बुक की जाती है. पढ़िए पूरी खबर..

पिंडदान
पिंडदान
author img

By

Published : Sep 30, 2021, 10:35 PM IST

गया: पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के दौरान अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति (Pind Daan in Gayaji) के लिए सनातन धर्मावलंबी गया जी आते हैं. यहां आने वाले पिंडदानी के कंधे पर एक दण्ड में लाल या पीले कपड़े में नारियल बंधा रहता है. उस दण्ड को पितृदंड कहते हैं. पिंडदानी, पितृदंड को एक बच्चे की तरह घर से गया जी लाते हैं. गया जी आने वाले पिंडदानियों की आस्था को इसी बात से समझा जा सकता है कि वे पितृदंड को वाहन या ट्रेन में सीट बुक करके लाते हैं.

यह भी पढ़ें- पितृपक्ष : गया में जीते जी लोग करते हैं खुद का पिंडदान, जानिए क्या है महत्व

पितृदंड का क्या है महत्व
दरअसल पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु गया जी आते हैं. गया जी में मोक्षधाम में पितरों का वास होता है. ऐसी मान्यता है कि जो सनातन धर्म को मानने वाले लोग होते हैं, जिनकों पितरों के प्रति श्रद्धा होती है, वही गया जी मे श्राद्ध करने आते हैं.

पिंडदानी का पूरा कर्मकांड श्रद्धा पर निर्भर होता है. पितृपक्ष के दौरान एक ऐसी परंपरा है जो पिंडदानियों की श्रद्धा को प्रस्तुत करता है. हजारों सालों से चलती आ रही गया जी में पितृदण्ड लाने की परंपरा आज के आधुनिक युग में भी जिंदा है.पितृदण्ड एक ऐसी परंपरा है, जिसमें पितरों का आह्वान करके लाल,सफेद और पीले कपड़े में बांधकर पितरों को नारियल वास कराया जाता है. घर से निकलने से लेकर पिंडदानी की समाप्ति तक उसको स्वच्छता और सुरक्षित रखा जाता है.

गया से स्पेशल रिपोर्ट

पिंडदानियों की मान्यता

गया जी आनेवाले हजारों पिंडदानियों में से एक दो पिंडदानी ही पितृदण्ड परंपरा का निर्वहन करते हैं. गया जी में पितृदंड लेकर उत्तर प्रदेश से आये एक परिवार ने अपने पितरों का पिंडदान किया. पिंडदानी ने बताया कि गया जी आने से पहले घर मे एक ब्राह्मण आकर एक हरा बांस में दण्ड लेकर आते हैं, उसके बाद नारियल, चावल और अन्य साम्रगी के साथ पूजा करते हैं. इस दौरान ब्राह्मण पितरों का आह्वान करते है कि आप आइए आपको गया जी ले जाकर मोक्ष की प्राप्ति करवाते हैं.

एक पिंडदानी ने बताया कि 'नारियल को पीला कपड़ा में बांधकर बांस वाले दण्ड से बांध देते हैं. उसके बाद बाएं कंधे में पितृदंड को लेकर गया जी के लिए निकलते हैं. इस दौरान गया जी आने के क्रम में अगर किसी वाहन का प्रयोग करते हैं तो पितृदंड के लिए जगह सुरक्षित रखते हैं. हमलोग अपने वाहन से गया जी आये हैं. गाड़ी डैशबोर्ड जहां भगवान का स्थान है, वहां पितृदण्ड को स्थान देकर गया जी लाये हैं.'

एक अन्य पिंडदानी का कहना है कि 'यह पितृदंड मेरे माता-पिता की तरह अनुभव देते हैं. इन्हें कोई कष्ट ना हो, पूरी यात्रा के दौरान हम सभी ध्यान रखते हैं. पितृदंड को कंधे में रखना इतना आसान नहीं है, इसके लिए साधना करना पड़ता है. दैनिक दिनचर्या में भी बदलाव करना पड़ता है. गया जी आने के लिए हमलोगों ने निजी वाहन का इस्तेमाल किया. वाहन में अपने पितरों को विशेष स्थान देते हैं.'

बता दें कि गया जी पितृदंड बहुत कम पिंडदानी लाते हैं.सबसे ज्यादा पितृदंड ओडिशा राज्य से आनेवाले पिंडदानी गया जी मे लाते हैं. पितृदंड को लाने के लिए संपन्न लोग ट्रेन में सीट तक बुक करके लाते हैं. हालांकि यह दृश्य बहुत कम ही देखने को मिलता है. वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजाचार्य ने बताया कि गया जी 15 से 17 दिवसीय त्रेपाक्षिक कर्मकांड करनेवाले पिंडदानी पितृदण्ड को लेकर काफी सजग रहते हैं.

पितरों को कराया जाता है भोजन

पिंडदान कराने वाले पंडित का कहना है कि 'पितृपक्ष के दौरान गया जी में पितृदंड को लाने का काफी बड़ा महत्व है. एक दिवसीय पिंडदान करनेवाले पिंडदानी की परंपरा को नहीं निभाते हैं जो पिंडदानी तीन दिवसीय पिंडदान और त्रेपाक्षिक पिंडदान करते हैं, वही इस परंपरा को निभाते हैं. गया जी में आने वाले पिंडदानी, पिंडदान को प्रेतशिला में जाकर छोड़ देते हैं. त्रेपाक्षिक पिंडदान करनेवाले पिंडदानी पूरे 17 दिन पितृदण्ड को अपने साथ रखते हैं. इस दौरान पितृदण्ड की सेवा अपने माता-पिता की तरह करते हैं.'

घर से निकलने से लेकर गया जी आने और पिंडदान के संपन्न होने तक पितृदण्ड की पवित्रता से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती है. उड़ीसा पिंडदानी ट्रेन में यात्रा करने के दौरान पितृदण्ड को कंधे पर नहीं रखते हैं, बल्कि पितृदंड को रखने के लिए ट्रेन में उसका कंफर्म टिकट करवा कर गया जी लाते हैं. गया जी आने के दौरान आवासन स्थल पर उनके लिए एक निर्धारित स्थान होता है. जहां पिंडदानी हर सुबह और शाम उनकी आराधना करते हैं और रतजगा करके उनकी रखवाली भी करते हैं. पितृदंड लेनेवाले पिंडदानी खाने के पहले पितरों को भोजन करवाते हैं और सोने के पहले उन्हें सुलाते हैं.

यह भी पढ़ें- आज के दिन बालू का पिंड बनाकर पिंडदान करने का महत्व, माता सीता ने की थी शुरुआत

यह भी पढ़ें- पितृ पक्ष में बेटियां भी तर्पण कर निभा रही हैं अपना धर्म, चार साल से पूर्वजों को दे रहीं जल

गया: पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के दौरान अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति (Pind Daan in Gayaji) के लिए सनातन धर्मावलंबी गया जी आते हैं. यहां आने वाले पिंडदानी के कंधे पर एक दण्ड में लाल या पीले कपड़े में नारियल बंधा रहता है. उस दण्ड को पितृदंड कहते हैं. पिंडदानी, पितृदंड को एक बच्चे की तरह घर से गया जी लाते हैं. गया जी आने वाले पिंडदानियों की आस्था को इसी बात से समझा जा सकता है कि वे पितृदंड को वाहन या ट्रेन में सीट बुक करके लाते हैं.

यह भी पढ़ें- पितृपक्ष : गया में जीते जी लोग करते हैं खुद का पिंडदान, जानिए क्या है महत्व

पितृदंड का क्या है महत्व
दरअसल पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु गया जी आते हैं. गया जी में मोक्षधाम में पितरों का वास होता है. ऐसी मान्यता है कि जो सनातन धर्म को मानने वाले लोग होते हैं, जिनकों पितरों के प्रति श्रद्धा होती है, वही गया जी मे श्राद्ध करने आते हैं.

पिंडदानी का पूरा कर्मकांड श्रद्धा पर निर्भर होता है. पितृपक्ष के दौरान एक ऐसी परंपरा है जो पिंडदानियों की श्रद्धा को प्रस्तुत करता है. हजारों सालों से चलती आ रही गया जी में पितृदण्ड लाने की परंपरा आज के आधुनिक युग में भी जिंदा है.पितृदण्ड एक ऐसी परंपरा है, जिसमें पितरों का आह्वान करके लाल,सफेद और पीले कपड़े में बांधकर पितरों को नारियल वास कराया जाता है. घर से निकलने से लेकर पिंडदानी की समाप्ति तक उसको स्वच्छता और सुरक्षित रखा जाता है.

गया से स्पेशल रिपोर्ट

पिंडदानियों की मान्यता

गया जी आनेवाले हजारों पिंडदानियों में से एक दो पिंडदानी ही पितृदण्ड परंपरा का निर्वहन करते हैं. गया जी में पितृदंड लेकर उत्तर प्रदेश से आये एक परिवार ने अपने पितरों का पिंडदान किया. पिंडदानी ने बताया कि गया जी आने से पहले घर मे एक ब्राह्मण आकर एक हरा बांस में दण्ड लेकर आते हैं, उसके बाद नारियल, चावल और अन्य साम्रगी के साथ पूजा करते हैं. इस दौरान ब्राह्मण पितरों का आह्वान करते है कि आप आइए आपको गया जी ले जाकर मोक्ष की प्राप्ति करवाते हैं.

एक पिंडदानी ने बताया कि 'नारियल को पीला कपड़ा में बांधकर बांस वाले दण्ड से बांध देते हैं. उसके बाद बाएं कंधे में पितृदंड को लेकर गया जी के लिए निकलते हैं. इस दौरान गया जी आने के क्रम में अगर किसी वाहन का प्रयोग करते हैं तो पितृदंड के लिए जगह सुरक्षित रखते हैं. हमलोग अपने वाहन से गया जी आये हैं. गाड़ी डैशबोर्ड जहां भगवान का स्थान है, वहां पितृदण्ड को स्थान देकर गया जी लाये हैं.'

एक अन्य पिंडदानी का कहना है कि 'यह पितृदंड मेरे माता-पिता की तरह अनुभव देते हैं. इन्हें कोई कष्ट ना हो, पूरी यात्रा के दौरान हम सभी ध्यान रखते हैं. पितृदंड को कंधे में रखना इतना आसान नहीं है, इसके लिए साधना करना पड़ता है. दैनिक दिनचर्या में भी बदलाव करना पड़ता है. गया जी आने के लिए हमलोगों ने निजी वाहन का इस्तेमाल किया. वाहन में अपने पितरों को विशेष स्थान देते हैं.'

बता दें कि गया जी पितृदंड बहुत कम पिंडदानी लाते हैं.सबसे ज्यादा पितृदंड ओडिशा राज्य से आनेवाले पिंडदानी गया जी मे लाते हैं. पितृदंड को लाने के लिए संपन्न लोग ट्रेन में सीट तक बुक करके लाते हैं. हालांकि यह दृश्य बहुत कम ही देखने को मिलता है. वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजाचार्य ने बताया कि गया जी 15 से 17 दिवसीय त्रेपाक्षिक कर्मकांड करनेवाले पिंडदानी पितृदण्ड को लेकर काफी सजग रहते हैं.

पितरों को कराया जाता है भोजन

पिंडदान कराने वाले पंडित का कहना है कि 'पितृपक्ष के दौरान गया जी में पितृदंड को लाने का काफी बड़ा महत्व है. एक दिवसीय पिंडदान करनेवाले पिंडदानी की परंपरा को नहीं निभाते हैं जो पिंडदानी तीन दिवसीय पिंडदान और त्रेपाक्षिक पिंडदान करते हैं, वही इस परंपरा को निभाते हैं. गया जी में आने वाले पिंडदानी, पिंडदान को प्रेतशिला में जाकर छोड़ देते हैं. त्रेपाक्षिक पिंडदान करनेवाले पिंडदानी पूरे 17 दिन पितृदण्ड को अपने साथ रखते हैं. इस दौरान पितृदण्ड की सेवा अपने माता-पिता की तरह करते हैं.'

घर से निकलने से लेकर गया जी आने और पिंडदान के संपन्न होने तक पितृदण्ड की पवित्रता से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती है. उड़ीसा पिंडदानी ट्रेन में यात्रा करने के दौरान पितृदण्ड को कंधे पर नहीं रखते हैं, बल्कि पितृदंड को रखने के लिए ट्रेन में उसका कंफर्म टिकट करवा कर गया जी लाते हैं. गया जी आने के दौरान आवासन स्थल पर उनके लिए एक निर्धारित स्थान होता है. जहां पिंडदानी हर सुबह और शाम उनकी आराधना करते हैं और रतजगा करके उनकी रखवाली भी करते हैं. पितृदंड लेनेवाले पिंडदानी खाने के पहले पितरों को भोजन करवाते हैं और सोने के पहले उन्हें सुलाते हैं.

यह भी पढ़ें- आज के दिन बालू का पिंड बनाकर पिंडदान करने का महत्व, माता सीता ने की थी शुरुआत

यह भी पढ़ें- पितृ पक्ष में बेटियां भी तर्पण कर निभा रही हैं अपना धर्म, चार साल से पूर्वजों को दे रहीं जल

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.