डूंगरपुर. पूर्व राजघराने के महारावल महिपाल सिंह का निधन हो गय है. शुक्रवार रात को उन्होंने डूंगरपुर उदय विलास पैलेस में अंतिम सांस ली. पूर्व महारावल के निधन की खबर सुनकर राजपूत समाज, डूंगरपुर शहर ओर तमाम लोगों में शौक की लहर छा गई. शनिवार दोपहर 2 बजे पैलेस में रस्में पूरी करने के बाद अंतिम यात्रा सुरपुर राजघाट के लिए निकाली जाएगी, जहां उनकी अंतिम क्रिया की जाएगी.
पूर्व राजपरिवार के महारावल महिपाल सिंह को पिछले कई दिनों से बीमार होने के कारण गुजरात के बड़ौदा अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. उनकी सेहत में मामूली सुधार होने के बाद शुक्रवार को वापस डूंगरपुर उदय विलास पैलेस लाया गया था. शुक्रवार देर रात में महिपाल सिंह ने पैलेस में आखिरी सांस ली. सूचना पाकर पूर्व रियासत के ठाकुर और राजपूत समाज के लोग समेत शहर के कई प्रबुद्धजन और उनसे जुड़े लोग पैलेस पहुंचना शुरू हो गए और निधन पर शोक जताया.
महारावल महिपाल सिंह के एक पुत्र पूर्व राज्यसभा सांसद हर्षवर्धन सिंह हैं. शनिवार दोपहर 2 बजे पैलेस में ही राज परिवार की ओर से सभी अंतिम संस्कार की क्रियाएं पूरी की जाएंगी. इसके बाद उनकी अंतिम यात्रा पैलेस से रवाना होगी, जिसमें राजपरिवार की सदस्यों के साथ ही राजपूत समाज और बड़ी संख्या में लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचेंगे. अंतिम सवारी सुरपुर राजघाट पहुंचेगी, जहां अंतिम संस्कार (भुलामणि) होगा.
अंतर्मुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व : राजस्थान के दक्षिणी भाग में गुजरात और पर्यटन नगरी उदयपुर से सटे डूंगरपुर राजघराने का इतिहास बहुत रोचक और गौरवपूर्ण है. बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि डूंगरपुर स्टेट उदयपुर के सिसोदिया वंश के राजाओं के बड़े भाइयों की गद्दी है. जबकि मेवाड़ के महाराणा की सीट छोटे भाइयों की है. डूंगरपुर (सम्पूर्ण वागड़) के रावल उदय सिंह ने 1527 में राणा सांगा के साथ बाबर के खिलाफ लड़ाई करते हुए खानवा की लड़ाई में वीर गति प्राप्त की थी. महारावल उदय सिंह की युद्ध में मृत्यु के बाद, डूंगरपुर और बांसवाड़ा दो अलग-अलग राज्यों में विभाजित हो गए थे. वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप के गौरवशाली वंश से ताल्लुक रखने वाले डूंगरपुर राजवंश के 34वें महारावल महिपाल सिंह थे.
महिपाल सिंह राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और देश की आजादी से पहले राजपूताना की सबसे पुरानी डूंगरपुर रियासत के अन्तिम शासक महारावल लक्ष्मण सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे. महिपाल सिंह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों के जबर्दस्त जानकार थे. 14 अगस्त 1931 को जन्मे महिपाल सिंह ने मेयो कॉलेज अजमेर से प्रारंभिक पढ़ाई करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के विख्यात सेंट स्टीफंस कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन किया. उन्होंने बीकानेर राजघराने की राजकुमारी देव कुंवर से शादी की. वे विवाह के पश्चात कुछ समय मुंबई में रहे, लेकिन महानगर की जिंदगी रास नहीं आने के कारण वे वापस डूंगरपुर लौट आए.
महारावल महिपाल सिंह के एक पुत्र हर्षवर्धन सिंह हैं : उनकी इकलौती पुत्री कीर्ति कुमारी ने सिरोही के महाराज कुमार दैवत सिंह से शादी की है. महिपाल सिंह की तीन पोतियां और एक पौत्र हैं. इनमें में से एक पोती शिवात्मिका कुमारी (हर्षवर्धन सिंह -महश्री कुमारी) ने राजकोट के टिक्का साहब जयदीप सिंह मंधाता सिंह जडेजा के राजघराने में शादी की है. इसी प्रकार दूसरी पोती त्रिशिखा कुमारी का विवाह मैसूर राजघराने में यदुवीर कृष्णदत्त राजा वाडियार से हुआ है. तीसरी पोती शिवांजलि कुमारी और पोता तविशमान सिंह (हर्षवर्धन सिंह - प्रियदर्शिनी कुंवर) अभी पढ़ाई कर रहे हैं. महिपाल सिंह की रूचि सदैव स्वध्याय और खेलकूद में रही. विशेष कर वे क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी और राज क्रिकेट क्लब डूंगरपुर के अध्यक्ष भी रहे. अध्ययन के साथ-साथ शोध कार्य में लगे छात्रों को ज्ञान बांटना और आध्यात्मिक विचारों का आदान-प्रदान करने के साथ ही विरासत में मिली राजनीति में भी उनकी गहरी रूचि रही. हालांकि, वे राजनीति में अधिक सक्रिय नहीं रहे, लेकिन सत्तर से अस्सी के दशक में देश में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले सम्पूर्ण क्रान्ति, जन आन्दोलन और कांग्रेस के विरुद्ध एकजुट होने से विभिन्न दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी के डूंगरपुर जिला अध्यक्ष रहे.
इसके अलावा वे देश के प्रथम गवर्नर जनरल राजाजी राजगोपालाचारी द्वारा गठित स्वतन्त्र पार्टी के वरिष्ठ नेता और अपने पिता महारावल लक्ष्मण सिंह के हर चुनाव में अपने अन्य भाई-बहनों और परिजनों के साथ चुनाव प्रचार में सक्रिय रूप से भाग लेते थे. महिपाल सिंह अपने पिता की तरह ही एक कृषि और वन्य जीवन के अध्ययन, पर्यटन व्यवसाय आदि में रूचि रखते थे. उनका अध्ययन-अध्यापन खेलकूद, राजनीति के अलावा पशुपालन और डेयरी आदि से भी काफी लगाव था.