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इंसानी जिंदगी पर कोविड और मिलावटी खाद्य पदार्थ का दोहरा प्रहार - ग्लोबल फूड सिक्योरिटी इंडेक्स

कोरोना महामारी और मिलावटी खाद्य पदार्थ आज के दौर में लोगों को मौत के मुंह में ढकेल रहा है. बाजार में उपलब्ध खाद्य उत्पादों के स्रोत, गुणवत्ता और शुद्धता को गहराई से देखने पर हम सब के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी. ऐसे में खाद्य पदार्थों में मिलावट के खतरे पर लगाम लगाने के लिए उपभोक्ता को जागरूक होना पड़ेगा और कड़े कानून इसे रोकने में कारगर होंगे.

मिलावटी खाद्य पदार्थ
मिलावटी खाद्य पदार्थ
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Published : Dec 22, 2020, 6:16 PM IST

स्वस्थ जीवन जीने के लिए हमें पौष्टिक और संतुलित आहार की जरूरत होती है. कोविड-19 महामारी ने पूरी तरह से तंदुरुस्ती को लेकर नए सिरे से रुचि पैदा की. इसने स्वास्थ्यवर्धक भोजन के महत्व पर जोर दिया. दूसरी ओर दुनियाभर में मिलावटी और बहुत अधिक प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद खाया जा रहा है. अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ (जंक फ़ूड) हमारे शरीर को जल्दी खराब करते हैं, जबकि पोषक तत्वों से भरे खाद्य पदार्थ हमारी प्रतिरक्षा को बढ़ाने में मदद करते हैं.

कोविड-19 के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने उपभोक्ता के भरोसे एवं विश्वास को बनाए रखने के लिए खाद्य उद्योगों को पालन करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. खाद्य उद्योग को खाद्य प्रसंस्करण, निर्माण और विपणन श्रृंखला के प्रत्येक चरण में अच्छी स्वच्छता और सफाई से जुड़े तरीकों का पालन करना चाहिए, लेकिन कोई घरेलू उद्योग इन मानदंडों का पालन कर रहा है इसमें संदेह है.

भारत की खराब परिस्थिति

वर्ष 2019 के वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूची यानी ग्लोबल फूड सिक्योरिटी इंडेक्स (जीएफएसआई) में 87.4 अंक के साथ सिंगापुर शीर्ष पर था. आयरलैंड (84) और अमेरिका (83) अंकों के साथ क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर थे. भारत महज 58.9 अंक के साथ 72वें स्थान पर था जो, देश की खराब परिस्थिति को दर्शाता है. बाजार में उपलब्ध खाद्य उत्पादों के स्रोत, गुणवत्ता और शुद्धता को गहराई से देखने पर हमें कुछ चौंकाने वाले खुलासे होते दिखते हैं.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की ओर से शहद में मिलावट जांचने के लिए किए गए परीक्षण में लगभग सभी शीर्ष ब्रांड नाकाम रहे. हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के परीक्षणों को बायपास करने के लिए कई उत्पाद विकसित हुए हैं. हल्दी, मिर्च पाउडर, चीनी, गुड़, काली मिर्च और खाना पकाने के तेल में खतरनाक दूषित पदार्थों की मौजूदगी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का कारण बन रही है.

10 करोड़ भारतीय प्रभावित

डब्ल्यूएचओ ने भारत को आर्थिक विकास के एक साधन के रूप में पौष्टिक भोजन के लिए सरकारी धन में बढ़ोतरी करने के लिए कहा है. खाद्य जनित रोग महामारी विज्ञान संदर्भ समूह यानी फूडबोर्न डिजीज बर्डन एपिडेमियोलॉजी रेफरेंस ग्रुप के एक अध्ययन के अनुसार 2011 में मिलावटी खाद्य पदार्थों की वजह से 10 करोड़ भारतीय प्रभावित हुए. अध्ययन में यह भी पाया गया कि यह संख्या वर्ष 2030 तक 17 करोड़ तक पहुंच जाने की संभावना है. इसका मतलब है कि प्रदूषित खाद्य पदार्थ से हर 9 में से एक व्यक्ति बीमार पड़ रहा है. इसमें गरीब और वंचित तबके के लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं.

माना जाता है कि हाल ही में रहस्यमयी बीमारी का मुख्य कारण खाद्य और पानी की मिलावट है, जिसने आंध्र प्रदेश के एलुरु के सैकड़ों लोगों को हिलाकर रख दिया. कोविड-19 संकट के दौरान सरकारों और स्वच्छता विशेषज्ञों की ओर से शुरू किए गए जागरूकता अभियानों के बावजूद कई होटल और टिफिन केंद्र अभी भी असुरक्षित मानदंडों का पालन कर रहे हैं. बहुत सारे अध्ययनों से पता चला है कि डॉक्टर या किसी क्लिनिक में जाने वाले 20 फीसद से अधिक मरीज ऐसे होते हैं, जिन्होंने मिलावटी भोजन किया होता है.

हर साल 5 लाख लोगों की मौत

मिलावटी उत्पाद बेचने का मुख्य मकसद जल्दी लाभ कमाना है. दूध को गाढ़ा करने के लिए खतरनाक रसायनों का उपयोग किया जाता है. कृत्रिम हार्मोन के जरिए फलों को समय से पहले पका दिया जाता है. दुनिया भर में हर साल 5 लाख लोग दूषित खाद्य पदार्थों की वजह से मर जाते हैं.

राजनेता हालांकि, खाद्य पदार्थ में मिलावट पर कड़े कदम उठाने की घोषणा करते हैं लेकिन, वास्तविकता बिल्कुल अलग है. केंद्र ने उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा और खाद्य क्षेत्र को नियमों के दायरे में लाने के लिए वर्ष 2006 में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम लागू किया था लेकिन, इसे जिस तरह से लागू किया गया है वह संतोषजनक नहीं है.

खाद्य सुरक्षा से जुड़े आपराधिक मामलों के दोषी लोगों में से केवल 16 फीसद को सजा मिल रही है. इस बीच देश में मिलावटी खाद्य का आधिपत्य बढ़ा गया है. भोजन की गुणवत्ता के महत्व को केंद्र और राज्य सरकारों को समझना चाहिए. देश में खाद्य मानकों को बढ़ाने के लिए जरूरी प्रणालियों और नियामक संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिए. खाद्य पदार्थों में मिलावट के खतरे पर लगाम लगाने में उपभोक्ता जागरूकता और कड़े कानून बहुत कारगर होते है.

स्वस्थ जीवन जीने के लिए हमें पौष्टिक और संतुलित आहार की जरूरत होती है. कोविड-19 महामारी ने पूरी तरह से तंदुरुस्ती को लेकर नए सिरे से रुचि पैदा की. इसने स्वास्थ्यवर्धक भोजन के महत्व पर जोर दिया. दूसरी ओर दुनियाभर में मिलावटी और बहुत अधिक प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद खाया जा रहा है. अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ (जंक फ़ूड) हमारे शरीर को जल्दी खराब करते हैं, जबकि पोषक तत्वों से भरे खाद्य पदार्थ हमारी प्रतिरक्षा को बढ़ाने में मदद करते हैं.

कोविड-19 के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने उपभोक्ता के भरोसे एवं विश्वास को बनाए रखने के लिए खाद्य उद्योगों को पालन करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. खाद्य उद्योग को खाद्य प्रसंस्करण, निर्माण और विपणन श्रृंखला के प्रत्येक चरण में अच्छी स्वच्छता और सफाई से जुड़े तरीकों का पालन करना चाहिए, लेकिन कोई घरेलू उद्योग इन मानदंडों का पालन कर रहा है इसमें संदेह है.

भारत की खराब परिस्थिति

वर्ष 2019 के वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूची यानी ग्लोबल फूड सिक्योरिटी इंडेक्स (जीएफएसआई) में 87.4 अंक के साथ सिंगापुर शीर्ष पर था. आयरलैंड (84) और अमेरिका (83) अंकों के साथ क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर थे. भारत महज 58.9 अंक के साथ 72वें स्थान पर था जो, देश की खराब परिस्थिति को दर्शाता है. बाजार में उपलब्ध खाद्य उत्पादों के स्रोत, गुणवत्ता और शुद्धता को गहराई से देखने पर हमें कुछ चौंकाने वाले खुलासे होते दिखते हैं.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की ओर से शहद में मिलावट जांचने के लिए किए गए परीक्षण में लगभग सभी शीर्ष ब्रांड नाकाम रहे. हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के परीक्षणों को बायपास करने के लिए कई उत्पाद विकसित हुए हैं. हल्दी, मिर्च पाउडर, चीनी, गुड़, काली मिर्च और खाना पकाने के तेल में खतरनाक दूषित पदार्थों की मौजूदगी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का कारण बन रही है.

10 करोड़ भारतीय प्रभावित

डब्ल्यूएचओ ने भारत को आर्थिक विकास के एक साधन के रूप में पौष्टिक भोजन के लिए सरकारी धन में बढ़ोतरी करने के लिए कहा है. खाद्य जनित रोग महामारी विज्ञान संदर्भ समूह यानी फूडबोर्न डिजीज बर्डन एपिडेमियोलॉजी रेफरेंस ग्रुप के एक अध्ययन के अनुसार 2011 में मिलावटी खाद्य पदार्थों की वजह से 10 करोड़ भारतीय प्रभावित हुए. अध्ययन में यह भी पाया गया कि यह संख्या वर्ष 2030 तक 17 करोड़ तक पहुंच जाने की संभावना है. इसका मतलब है कि प्रदूषित खाद्य पदार्थ से हर 9 में से एक व्यक्ति बीमार पड़ रहा है. इसमें गरीब और वंचित तबके के लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं.

माना जाता है कि हाल ही में रहस्यमयी बीमारी का मुख्य कारण खाद्य और पानी की मिलावट है, जिसने आंध्र प्रदेश के एलुरु के सैकड़ों लोगों को हिलाकर रख दिया. कोविड-19 संकट के दौरान सरकारों और स्वच्छता विशेषज्ञों की ओर से शुरू किए गए जागरूकता अभियानों के बावजूद कई होटल और टिफिन केंद्र अभी भी असुरक्षित मानदंडों का पालन कर रहे हैं. बहुत सारे अध्ययनों से पता चला है कि डॉक्टर या किसी क्लिनिक में जाने वाले 20 फीसद से अधिक मरीज ऐसे होते हैं, जिन्होंने मिलावटी भोजन किया होता है.

हर साल 5 लाख लोगों की मौत

मिलावटी उत्पाद बेचने का मुख्य मकसद जल्दी लाभ कमाना है. दूध को गाढ़ा करने के लिए खतरनाक रसायनों का उपयोग किया जाता है. कृत्रिम हार्मोन के जरिए फलों को समय से पहले पका दिया जाता है. दुनिया भर में हर साल 5 लाख लोग दूषित खाद्य पदार्थों की वजह से मर जाते हैं.

राजनेता हालांकि, खाद्य पदार्थ में मिलावट पर कड़े कदम उठाने की घोषणा करते हैं लेकिन, वास्तविकता बिल्कुल अलग है. केंद्र ने उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा और खाद्य क्षेत्र को नियमों के दायरे में लाने के लिए वर्ष 2006 में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम लागू किया था लेकिन, इसे जिस तरह से लागू किया गया है वह संतोषजनक नहीं है.

खाद्य सुरक्षा से जुड़े आपराधिक मामलों के दोषी लोगों में से केवल 16 फीसद को सजा मिल रही है. इस बीच देश में मिलावटी खाद्य का आधिपत्य बढ़ा गया है. भोजन की गुणवत्ता के महत्व को केंद्र और राज्य सरकारों को समझना चाहिए. देश में खाद्य मानकों को बढ़ाने के लिए जरूरी प्रणालियों और नियामक संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिए. खाद्य पदार्थों में मिलावट के खतरे पर लगाम लगाने में उपभोक्ता जागरूकता और कड़े कानून बहुत कारगर होते है.

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