विदिशा। आमतौर पर सालभर के मौसम का पूर्वानुमान भारत सरकार के मौसम विभाग और प्राइवेट एजेंसी स्काइमेट के द्वारा दिया जाता है. इनके पूर्वानुमान करीब-करीब सटीक होते हैं. मौसम के पूर्वानुमान को लेकर कई तरह की वैज्ञानिक थ्योरीज अपनाई जाती हैं जिसके बाद साल भर के मौसम चक्र के बारे में जानकारी दी जाती है. पिछले कई सालों से इसी तरह सालभर के मौसम की जानकारी दी जाती है, लेकिन इन वैज्ञानिक पद्धियों के प्रचलन में आने से पहले मौसम का पूर्वानुमान, सालभर के मौसम चक्र और फसल चक्र को लेकर जानकारी कैसे जुटाई जाती थी. आखिर कौन इस बात की घोषणा करता था कि सालभर का मौसम कैसा रहेगा, क्या उतार चढ़ाव आएंगे. इसका जवाब जानने के लिए हम आपको विदिशा ले चलते हैं..देखिए ये रिपोर्ट
100 साल से भी ज्यादा पुराना है परीक्षण का यह तरीका: ईटीवी भारत की टीम ने बृह्त या बराह मिहिर संहिता के सूत्रों के मुताबिक वायु परीक्षण करने वाले धर्माधिकारी गिरधर शास्त्री से बातचीत की. उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज पिछले लगभग 115 साल से यह वायु परीक्षण कर रहे हैं. उनसे पहले उनके पिता गोविंद प्रसाद शास्त्री करते थे. धर्माधिकारी बताते हैं कि ज्योतिष शास्त्र के आचार्य श्री वराह मिहिर का जो ग्रंथ है वराह संहिता उसके सूत्रों के अनुसार फलादेश किया जाता है. गिरधर शास्त्री कहते हैं कि आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की गुरु पूर्णिमा को गोधूलि बेला में लोहंगी पहाड़ी पर जहां भारत की राजकीय मुद्रा तीन मुंह वाला शेर का स्मृति चिन्ह मौजूद है उसी स्थान पर खड़े होकर मौसम संबंधित भविष्यवाणी की जाती है जो सटीक होती है. इस तरीके में मौसम के साथ ही देश में किस प्रकार सुख और शांति रहेगी कैसी समृद्धि की प्राप्ति होगी इन सब बातों का वराह संहिता के अनुसार भविष्यफलन किया जाता है.
![Method of forecasting weather hundreds of years ago](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/15805409_vid.jpg)
सैकड़ों साल पुरानी पद्धति से आज भी तय होता है मौसम का पूर्वानुमान: विदिशा शहर के बीचोबीच स्थित राजेन्द्र गिरी पहाड़ी को स्थानीय लोग लुहाँगी पहाड़ी भी कहते हैं. इसी पहाड़ी से बराह मिहिर या वृह्त संहिता के मुताबिक गुरुपूर्णिमा के दिन गोधूलि बेला में विद्वान धर्माधिकारी साल भर के मौसम का पूर्वानुमान देते हैं. इस विधि में विदिशा के धर्माधिकारी गिरधर प्रसाद शास्त्री अन्य विद्वानों के साथ वहां जाते हैं और एक बड़ी लकड़ी के सिरे पर धागे से रुई के फाहे को बांधकर फहराया जाता है. रुई का फाहा जिस तरफ की हवा होती है उस और लहराने लगता है. धागे और रुई के फाहे के लहराने की दिशा के हिसाब से तय होता है वर्षभर का मौसम. दरअसल हवा की दिशा और रुई के फाहे के लहराने के संबंध में बृह्त सहिंता में जो सूत्र लिखे गए है उनके आधार पर गणना की जाती है. यह गणना वर्षभर के मौसम पूर्वानुमान को लेकर सटीक बैठती है. विदिशा में सैंकड़ों वर्ष पुरानी वराह मिहिर संहिता के हिसाब से आज भी सालभर का मौसम चक्र तय होता है. जिसमें इस बात का अनुमान दिया जाता है कि वर्ष भर का मौसम कैसा रहेगा, बारिश कैसी होगी और कैसी फसल होगी इसे लेकर जानकारी जुटाई जाती है.
संहिता में वर्णित श्लोकों के अध्य्यन से तय होता है पूर्वानुमान: धर्माधिकारी बताते हैं कि वराह संहिता ज्योतिष का सर्वमान्य ग्रंथ है. इसमें जो भी भविष्यवाणियां की गई हैं वह सब पूर्णता सत्य होती हैं. गिरधर शास्त्री का कहना था कि इस वर्ष गुरु पूर्णिमा के दिन जब हम वायु परीक्षण करने के लिए जा रहे थे तो सभी लोग यह कह रहे थे कि इस बार वर्षा बहुत कम हो रही है, फसलें सूख रही हैं. जब हमने वहां वायु परीक्षण किया तो उस समय वायु पूर्व दिशा की ओर तीव्र गति से प्रभाहित हो रही थी. इस समय एक लंबे बांस में धागे से कपास को बांधकर उड़ाया जाता है जिस दिशा में वह कपास जाता है उस दिशा का बोध करके हम वराह मिहिर द्वारा जो कथन ज्योतिष शास्त्र के श्लोकों में वर्णित किए गए हैं उनका ध्यान और अध्य्यन करते हैं. जिसके बाद पहाड़ी पर खड़े होकर ही इसकी भविष्यवाणी की जाती है कि इस साल मौसम कैसा रहेगा. इस वर्ष की भविष्यवाणी में हमने वायु की दिशा पूर्व की ओर देखी जिसके आधार पर संहिता के सूत्रों और श्लोकों से मिलान कर हमने अच्छी वर्षा और अच्छी फसल होने की भविष्यवाणी की थी जिसकी सटीकता दिखाई भी दे रही है. मध्य प्रदेश में पर्याप्त वर्षा भी हुई है और फसलें भी अच्छी तैयार हो रही हैं. यह वराह मिहिर ग्रंथ का ही चमत्कार है.