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भगवान भोलेनाथ का नीलकंठेश्वर मंदिर, सूर्य की पहली किरण से होता है अभिषेक - विदिशा न्यूज

विदिशा जिले के उदयपुरा में स्थित भगवान भोलेनाथ का नीलकंठेश्वर मंदिर जहां रोज होता है महादेव का सूर्य किरणाभिषेक.

भगवान भोलेनाथ का नीलकंठेश्वर मंदिर
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Published : Nov 15, 2019, 10:28 AM IST

Updated : Nov 15, 2019, 3:52 PM IST

विदिशा। उदयपुरा स्थित नीलकंठेश्वर मंदिर में हर रोज सूर्य की किरणों से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक होता है. जहां सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है. वहीं मंदिर का वास्तु कुछ इस प्रकार है कि सुबह की पहली किरण वेधशाला, मंडप और गर्भगृह को चीरती हुई सीधी भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर पड़ती है. वहीं मुख्य शिवलिंग पर पीतल का आवरण चढ़ाया गया है, जिसे विशेष मौकों पर जल अर्पित करने और दर्शन के लिए अलग भी रख दिया जाता है.

भगवान भोलेनाथ का नीलकंठेश्वर मंदिर


परमार राजा उदयादित्त ने कराया था मंदिर का निर्माण

मंदिर का निर्माण परमार राजा उदयादित्त ने 1116 ई. में शुरु कराया गया था जो 1137 ई. में बनकर तैयार हुआ.मंदिर लाल बलुआ पत्थर से भूमिज शैली में निर्मित है और मंदिर के चारों ओर पत्थर की दीवार बनाई गई है. मुख्य मंदिर और अन्य मंदिर जगती (पत्थर निर्मित चबूतरा) पर बने हुए हैं. सम्पूर्ण मंदिर निर्माण स्थल पत्थर की दीवाल से चारों ओर से घिरा हुआ है. वर्तमान में सभी छोटे मंदिर मूल स्वरूप में उपलब्ध नहीं है, केवल उनके भग्नावेश उपलब्ध है.

मंदिर का निर्माण खुजराहों के मंदिरों के निर्माण से समरूप और पंचायत शैली के समरूप है. मंदिर के शिखर पर एक मानव मूर्ति निर्मित है. मुख्य मंदिर के पृष्ठ भाग पर निर्मित छोटे मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया है, जो वर्तमान में मंदिर प्रांगण में स्थित है.


सूरज की पहली किरण से होता है महादेव का अभिषेक

सूर्य की पहली किरण गर्भ गृह पर में महादेव पर पड़ती है और इसके साथ ही हर सुबह महादेव का सूर्य कि किरण से अभिषेक होता है. महाशिवरात्रि में हर साल पांच दिन के मेले का आयोजन भी किया जाता है, जहां लाखों भक्त महादेव के दर्शन करने आते हैं.

गर्भगृह में मौजूद है 8 फुट का शिवलिंग

मुख्य मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग का आकार लगभग 8 फुट का है. जिस पर पीतल का आवरण चढ़ा हुआ है, जो कि केवल शिवरात्रि के दिन ही उतारा जाता है. वर्तमान में भगवान शिव की पूजा अर्चना मंदिर पर की जाती है. बता दें मंदिर में स्थित शिवलिंग भोजपुर शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग के समरूप है.

मस्जिद के निर्माण का है उल्लेख

हिजरी 737 और 739 के दो शिलालेखों में मुहम्मद तुगलक के काल हिजरी 856 में इस्लामशाह सूरी के शासनकाल में मसूखां और हिजरी 894 के शिलालेख में मांडू के मुहम्मद शाह खिलजी के समय में मस्जिद का निर्माण किये जाने का उल्लेख है. बता दें कि मुख्य नीलकंठेश्वर मंदिर के बाहर की दीवारों को वास्तुशिल्प मुस्लिम शासन के समय के दौरान तोड़ा गया था, जिसके अवशेष आज भी मंदिर प्रागंण में उपलब्ध है.

विदिशा। उदयपुरा स्थित नीलकंठेश्वर मंदिर में हर रोज सूर्य की किरणों से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक होता है. जहां सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है. वहीं मंदिर का वास्तु कुछ इस प्रकार है कि सुबह की पहली किरण वेधशाला, मंडप और गर्भगृह को चीरती हुई सीधी भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर पड़ती है. वहीं मुख्य शिवलिंग पर पीतल का आवरण चढ़ाया गया है, जिसे विशेष मौकों पर जल अर्पित करने और दर्शन के लिए अलग भी रख दिया जाता है.

भगवान भोलेनाथ का नीलकंठेश्वर मंदिर


परमार राजा उदयादित्त ने कराया था मंदिर का निर्माण

मंदिर का निर्माण परमार राजा उदयादित्त ने 1116 ई. में शुरु कराया गया था जो 1137 ई. में बनकर तैयार हुआ.मंदिर लाल बलुआ पत्थर से भूमिज शैली में निर्मित है और मंदिर के चारों ओर पत्थर की दीवार बनाई गई है. मुख्य मंदिर और अन्य मंदिर जगती (पत्थर निर्मित चबूतरा) पर बने हुए हैं. सम्पूर्ण मंदिर निर्माण स्थल पत्थर की दीवाल से चारों ओर से घिरा हुआ है. वर्तमान में सभी छोटे मंदिर मूल स्वरूप में उपलब्ध नहीं है, केवल उनके भग्नावेश उपलब्ध है.

मंदिर का निर्माण खुजराहों के मंदिरों के निर्माण से समरूप और पंचायत शैली के समरूप है. मंदिर के शिखर पर एक मानव मूर्ति निर्मित है. मुख्य मंदिर के पृष्ठ भाग पर निर्मित छोटे मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया है, जो वर्तमान में मंदिर प्रांगण में स्थित है.


सूरज की पहली किरण से होता है महादेव का अभिषेक

सूर्य की पहली किरण गर्भ गृह पर में महादेव पर पड़ती है और इसके साथ ही हर सुबह महादेव का सूर्य कि किरण से अभिषेक होता है. महाशिवरात्रि में हर साल पांच दिन के मेले का आयोजन भी किया जाता है, जहां लाखों भक्त महादेव के दर्शन करने आते हैं.

गर्भगृह में मौजूद है 8 फुट का शिवलिंग

मुख्य मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग का आकार लगभग 8 फुट का है. जिस पर पीतल का आवरण चढ़ा हुआ है, जो कि केवल शिवरात्रि के दिन ही उतारा जाता है. वर्तमान में भगवान शिव की पूजा अर्चना मंदिर पर की जाती है. बता दें मंदिर में स्थित शिवलिंग भोजपुर शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग के समरूप है.

मस्जिद के निर्माण का है उल्लेख

हिजरी 737 और 739 के दो शिलालेखों में मुहम्मद तुगलक के काल हिजरी 856 में इस्लामशाह सूरी के शासनकाल में मसूखां और हिजरी 894 के शिलालेख में मांडू के मुहम्मद शाह खिलजी के समय में मस्जिद का निर्माण किये जाने का उल्लेख है. बता दें कि मुख्य नीलकंठेश्वर मंदिर के बाहर की दीवारों को वास्तुशिल्प मुस्लिम शासन के समय के दौरान तोड़ा गया था, जिसके अवशेष आज भी मंदिर प्रागंण में उपलब्ध है.

Intro:
विदिशा जिले के उदयपुर में स्थित नीलकंठेश्वर मंदिर में रोज सूर्य किरणाभिषेक होता है। सूरज की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है। मंदिर का वास्तु कुछ इस प्रकार का है कि भोर की पहली किरण वेधशाला, मंडप और गर्भगृह के छोटे से द्वार को चीरती हुई भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर पड़ती है। जैसे सूर्यदेव उदय के साथ ही भोलेनाथ को प्रणाम कर जग में उजियारा फैलाने की इजाजत मांगते हों। मुख्य शिवलिंग पर पीतल का आवरण चढ़ाया गया है। जिसे विशेष मौकों पर जल अर्पित करने और दर्शन के लिए अलग भी रख दिया जाता है। मंदिर मेंं शिवलिंग के पास ही देवी पार्वती की प्रतिमा भी मौजूद है।Body:
 
वाइस ओवर -

मंदिर का निर्माण परमार राजा उदयादित्त द्वारा कराया गया था। मंदिर संवत् 1116 में प्रारंभ हुआ था और संवत् 1137 में निर्माण पूर्ण हुआ था और संवत 1137 में में शिखर पर ध्वजारोहण किया गया था, जिसका उल्लेख शिलालेख में है।

मंदिर लाल बलुआ पत्थर से भूमिज शैली में निर्मित है और मंदिर के चारों ओर पत्थर की दीवाल बनाई गई है। मंदिर में प्रवेश के चार द्वार थे वर्तमान में केवल प्रवेश के लिये एक द्वारा उपलब्ध है। विशाल पत्थर से निर्मित जगती पर मंदिर का निर्माण किया गया है। मुख्य मंदिर व अन्य मंदिर जगती (पत्थर निर्मित चबूतरा) पर बने हुये है और सम्पूर्ण मंदिर निर्माण स्थल पत्थर की दीवाल से चारों ओर से घिरा हुआ है। मुख्य मंदिर मध्य में स्थित है और उसके चारों प्रत्येक कोने पर छोटे मंदिर का निर्माण किया गया था, और छोटे मंदिरों के मध्य में भी यज्ञशाला जैसे धार्मिक स्थलों का निर्माण किया गया था। वर्तमान में सभी छोटे मंदिर मूल स्वरूप में उपलब्ध नहीं है केवल उनके भग्नावेश उपलब्ध है। मंदिर का निर्माण खुजराहों के मंदिरों के निर्माण से समरूप और पंचायत शैली के समरूप है। मंदिर के शिखर पर एक मानव मूर्ति निर्मित है। आर्य शैली के शिखर मंदिरों में उपरोक्त मंदिर महत्वपूर्ण है। मुख्य मंदिर के पृष्ठ भाग पर निर्मित छोटे मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया है। जो वर्तमान में मंदिर प्रांगण में उपलब्ध है।

आज भी सूर्य की पहली किरण महादेव जी पर अवतरित होती है, मंदिर की प्रतेक्य कला में भिन्नता है कोई भी कला एक जैसी नही है, प्रत्येक महाशिवरात्रि पर हर वर्ष पांच दिवसीय मेले का आयोजन भी किया जाता है इस पवन अवसर पर लाखो भक्त शिव जी के दर्शन करने आते हैं और धर्म लाभ लेते हैं। महाशिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है।


हिजरी 737 और 739 के दो शिलालेखों में मुहम्मद तुगलक के काल में और हिजरी 856 में इस्लामशाह सूरी के शासनकाल में मसूखाँ द्वारा और हिजरी 894 के शिलालेख में मांडू के मुहम्मद शाह खिलजी के समय में मस्जिद का निर्माण किये जाने का उल्लेख है। मुख्य नीलकंठेश्वर मंदिर की बाह्य दीवालों पर उत्कीर्ण देवी देवताओं के वास्तुशिल्प मुस्लिम शासन के शासकों के समय के दौरान तोड़ा गया है जिसके अवशेष मंदिर प्रागंण वर्तमान में उपलब्ध है।

मुख्य मंदिर मध्य मे निर्मित किया गया है और उसमें प्रवेश के तीन द्वार है। गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है जिसमें सिर्फ शिवरात्रि के दिन ही उगते हुए सूरज की किरणें पड़ती है। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग का आकार लगभग 8 फुट का है जिस पर पीतल का आवरण चढ़ा हुआ है जो कि केवल शिवरात्रि के दिन ही उतारा जाता है। वर्तमान में भगवान शिव की पूजा अर्चना मंदिर पर की जाती है। शिवलिंग का निर्माण भोपाल के पास स्थित भोजपुर शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग के समरूप है।

मंदिर के बाह्य दीवाल पर विभिन्न देवी-देवताओं के मूर्तियाॅं पाषाण पर उत्कीर्ण की गई है, अधिकांश मूर्तियाॅं भगवान शिव के विभिन्न रूपों से सुसज्जित है महत्वपूर्ण मूर्ति शिल्प में स्त्रीगणेश, भगवान शिव की नृत्यरत् नटराज मूर्ति में महषासुर मर्दिनी, कार्तिकेय, आदि की मूर्तियाॅं है और इसके अतिरिक्त स्त्री सौन्दर्य को प्रदर्शित करती है।

वाइट - स्थानीय निवासी
वाइट - मंदिर पुजारी

P TO C अंकित शर्मा

Conclusion:
Last Updated : Nov 15, 2019, 3:52 PM IST
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