विदिशा। उदयपुरा स्थित नीलकंठेश्वर मंदिर में हर रोज सूर्य की किरणों से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक होता है. जहां सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है. वहीं मंदिर का वास्तु कुछ इस प्रकार है कि सुबह की पहली किरण वेधशाला, मंडप और गर्भगृह को चीरती हुई सीधी भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर पड़ती है. वहीं मुख्य शिवलिंग पर पीतल का आवरण चढ़ाया गया है, जिसे विशेष मौकों पर जल अर्पित करने और दर्शन के लिए अलग भी रख दिया जाता है.
परमार राजा उदयादित्त ने कराया था मंदिर का निर्माण
मंदिर का निर्माण परमार राजा उदयादित्त ने 1116 ई. में शुरु कराया गया था जो 1137 ई. में बनकर तैयार हुआ.मंदिर लाल बलुआ पत्थर से भूमिज शैली में निर्मित है और मंदिर के चारों ओर पत्थर की दीवार बनाई गई है. मुख्य मंदिर और अन्य मंदिर जगती (पत्थर निर्मित चबूतरा) पर बने हुए हैं. सम्पूर्ण मंदिर निर्माण स्थल पत्थर की दीवाल से चारों ओर से घिरा हुआ है. वर्तमान में सभी छोटे मंदिर मूल स्वरूप में उपलब्ध नहीं है, केवल उनके भग्नावेश उपलब्ध है.
मंदिर का निर्माण खुजराहों के मंदिरों के निर्माण से समरूप और पंचायत शैली के समरूप है. मंदिर के शिखर पर एक मानव मूर्ति निर्मित है. मुख्य मंदिर के पृष्ठ भाग पर निर्मित छोटे मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया है, जो वर्तमान में मंदिर प्रांगण में स्थित है.
सूरज की पहली किरण से होता है महादेव का अभिषेक
सूर्य की पहली किरण गर्भ गृह पर में महादेव पर पड़ती है और इसके साथ ही हर सुबह महादेव का सूर्य कि किरण से अभिषेक होता है. महाशिवरात्रि में हर साल पांच दिन के मेले का आयोजन भी किया जाता है, जहां लाखों भक्त महादेव के दर्शन करने आते हैं.
गर्भगृह में मौजूद है 8 फुट का शिवलिंग
मुख्य मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग का आकार लगभग 8 फुट का है. जिस पर पीतल का आवरण चढ़ा हुआ है, जो कि केवल शिवरात्रि के दिन ही उतारा जाता है. वर्तमान में भगवान शिव की पूजा अर्चना मंदिर पर की जाती है. बता दें मंदिर में स्थित शिवलिंग भोजपुर शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग के समरूप है.
मस्जिद के निर्माण का है उल्लेख
हिजरी 737 और 739 के दो शिलालेखों में मुहम्मद तुगलक के काल हिजरी 856 में इस्लामशाह सूरी के शासनकाल में मसूखां और हिजरी 894 के शिलालेख में मांडू के मुहम्मद शाह खिलजी के समय में मस्जिद का निर्माण किये जाने का उल्लेख है. बता दें कि मुख्य नीलकंठेश्वर मंदिर के बाहर की दीवारों को वास्तुशिल्प मुस्लिम शासन के समय के दौरान तोड़ा गया था, जिसके अवशेष आज भी मंदिर प्रागंण में उपलब्ध है.