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ज्वाला देवी से भक्तों की दूरी, मंदिर के लिए मुस्लिम जागीरदार ने दी थी जमीन

विदिशा का दुर्गा नगर कभी पूरा जंगल हुआ करता था. जहां मंदिर है इस जमीन को उस वक्त के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने दरगाह के लिए एस मुस्लिम को दान दी थी. लेकिन कुछ समय बाद मुस्लिम समाज के शरीफ जागीरदार ने दुर्गा मंदिर के निर्माण के लिए यह जमीन दान में दी थी.

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Published : Apr 20, 2021, 10:47 PM IST

Muslim vassal
ज्वाला देवी

विदिशा। देश में इस वक्त चैत्र के नवरात्र का पर्व मनाया जा रहा है. चैत्र के महीने में जिले के दर्गा नगर मेंं प्रसिद्ध ज्वाला देवी शक्तिपीठ में भी भव्य तरीके से नवरात्र आयोजित किए जाते थे. ज्वाला देवी के नाम से अवतरित मां दुर्गा की पूजा उपासना के लिए प्रदेशभर से लोग यहां पहुंचते थे. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि मां ज्वाला देवी एक दिन में 3 रुप बदलती है और यह पाप विनाशिनी देवी हैं. लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण के प्रकोप के कारण इस मंदिर से भक्तों ने दूरी बना कर रखी है. नवरात्र के दौरान इस साल यहां भक्तों की भीड़ नहीं दिखाई दे रही है.

ज्वाला देवी
  • मुस्लिम जागीरदार ने की थी मंदिर के लिए जमीन दान

विदिशा का दुर्गा नगर कभी पूरा जंगल हुआ करता था. जहां मंदिर है इस जमीन को उस वक्त के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने दरगाह के लिए एस मुस्लिम को दान दी थी. लेकिन कुछ समय बाद मुस्लिम समाज के शरीफ जागीरदार ने दुर्गा मंदिर के निर्माण के लिए यह जमीन दान में दी थी. बताया जाता है कि इस मंदिर को लेकर 1957 प्रभु दयाल चतुर्वेदी नाम के मंदिर के पुजारी को सपना आया था कि इस जगह पर मां दुर्गा का मंदिर बने, जिसके बाद मुस्लिम जागीरदार ने यह जमीन दान की थी.

मालवा वैष्णो देवी मंदिर में 500 वर्षों में तीसरी बार दिन में संपन्न हुआ हवन

  • पुजारी को आया था सपना

मंदिर के पुजारी पंडित रामेश्वर दयाल चतुर्वेदी ने यह भी बताया कि उनके पिता स्वर्गीय प्रभु दयाल चतुर्वेदी मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद निरंतर मंदिर की देखरेख, सेवा करते रहे और मंदिर का नाम दुर्गा मंदिर रखा. जिसके बाद यह पूरी जगह दुर्गा नगर के नाम से जाने जानी लगी. दुर्गा नगर का ज्वाला देवी शक्तिपीठ कई वर्षों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. इसमें 1980 में जोत की परंपरा शुरू की गई थी, जो आज विशाल रूप ले चुकी है. वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनका परिवार, विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जैसे बड़े दिग्गज की आस्था इस मंदिर से जुड़ी है.

  • सूना पड़ा मंदिर परिसर

हमेशा भक्तों की भीड़ से भरा रहने वाला यह मंदिर आज कोरोना महामारी के दौर में सूना पड़ा है. लोग प्रशासन और कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए यहां दर्शन के लिए नहीं पहुंच रहे हैं. वहीं, मंदिर परिसर में भी सैनिटाइज किया जाता है, मंदिर के घंटियों में कपड़े लपेट दिए गए हैं, जिससे लोग घंटियों को हाथ न लगा सके. फिलहाल मंदिर के दरवाजों पर ताले लगे हुए हैं, जिसके कारण कुछ श्रद्धालु जो आस पास के हैं, वह बाहर से ही दर्शन कर जा रहे हैं.

दमोह: भक्तों की आस्था पर लगा कोरोना ग्रहण, मंदिरों में छाया सन्नाटा

  • मां बदलती हैं 3 रूप

मंदिर के पुजारी रामेश्वर दयाल चतुर्वेदी ने माता के रुप बदलने को लेकर बताया कि ज्वाला देवी शक्तिपीठ में मां दिन में तीन रूप बदलती है. रात 8 बजे से 12 बजे तक 35 वर्ष की आयु और दोपहर 12 से 4 बजे में बुजुर्ग का रूप लेती हैं, साथ ही शाम 4 से 8 बजे में मां कन्या के रूप में रहती है.

विदिशा। देश में इस वक्त चैत्र के नवरात्र का पर्व मनाया जा रहा है. चैत्र के महीने में जिले के दर्गा नगर मेंं प्रसिद्ध ज्वाला देवी शक्तिपीठ में भी भव्य तरीके से नवरात्र आयोजित किए जाते थे. ज्वाला देवी के नाम से अवतरित मां दुर्गा की पूजा उपासना के लिए प्रदेशभर से लोग यहां पहुंचते थे. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि मां ज्वाला देवी एक दिन में 3 रुप बदलती है और यह पाप विनाशिनी देवी हैं. लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण के प्रकोप के कारण इस मंदिर से भक्तों ने दूरी बना कर रखी है. नवरात्र के दौरान इस साल यहां भक्तों की भीड़ नहीं दिखाई दे रही है.

ज्वाला देवी
  • मुस्लिम जागीरदार ने की थी मंदिर के लिए जमीन दान

विदिशा का दुर्गा नगर कभी पूरा जंगल हुआ करता था. जहां मंदिर है इस जमीन को उस वक्त के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने दरगाह के लिए एस मुस्लिम को दान दी थी. लेकिन कुछ समय बाद मुस्लिम समाज के शरीफ जागीरदार ने दुर्गा मंदिर के निर्माण के लिए यह जमीन दान में दी थी. बताया जाता है कि इस मंदिर को लेकर 1957 प्रभु दयाल चतुर्वेदी नाम के मंदिर के पुजारी को सपना आया था कि इस जगह पर मां दुर्गा का मंदिर बने, जिसके बाद मुस्लिम जागीरदार ने यह जमीन दान की थी.

मालवा वैष्णो देवी मंदिर में 500 वर्षों में तीसरी बार दिन में संपन्न हुआ हवन

  • पुजारी को आया था सपना

मंदिर के पुजारी पंडित रामेश्वर दयाल चतुर्वेदी ने यह भी बताया कि उनके पिता स्वर्गीय प्रभु दयाल चतुर्वेदी मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद निरंतर मंदिर की देखरेख, सेवा करते रहे और मंदिर का नाम दुर्गा मंदिर रखा. जिसके बाद यह पूरी जगह दुर्गा नगर के नाम से जाने जानी लगी. दुर्गा नगर का ज्वाला देवी शक्तिपीठ कई वर्षों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. इसमें 1980 में जोत की परंपरा शुरू की गई थी, जो आज विशाल रूप ले चुकी है. वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनका परिवार, विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जैसे बड़े दिग्गज की आस्था इस मंदिर से जुड़ी है.

  • सूना पड़ा मंदिर परिसर

हमेशा भक्तों की भीड़ से भरा रहने वाला यह मंदिर आज कोरोना महामारी के दौर में सूना पड़ा है. लोग प्रशासन और कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए यहां दर्शन के लिए नहीं पहुंच रहे हैं. वहीं, मंदिर परिसर में भी सैनिटाइज किया जाता है, मंदिर के घंटियों में कपड़े लपेट दिए गए हैं, जिससे लोग घंटियों को हाथ न लगा सके. फिलहाल मंदिर के दरवाजों पर ताले लगे हुए हैं, जिसके कारण कुछ श्रद्धालु जो आस पास के हैं, वह बाहर से ही दर्शन कर जा रहे हैं.

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  • मां बदलती हैं 3 रूप

मंदिर के पुजारी रामेश्वर दयाल चतुर्वेदी ने माता के रुप बदलने को लेकर बताया कि ज्वाला देवी शक्तिपीठ में मां दिन में तीन रूप बदलती है. रात 8 बजे से 12 बजे तक 35 वर्ष की आयु और दोपहर 12 से 4 बजे में बुजुर्ग का रूप लेती हैं, साथ ही शाम 4 से 8 बजे में मां कन्या के रूप में रहती है.

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