उज्जैन। विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे भारत में आज भी कई ऐसी परंपराए हैं, जिन्हें आस्था कहा जाए या अंधविश्वास. इन्हीं परंपराओं में एक अनोखी परंपरा है 'गाय गौरी'. इस परंपरा के तहत दिवाली के दूसरे दिन दर्जनों लोग मन्नतें लेकर कई गायों के पैरों तले लेट जाते हैं और फिर उनके ऊपर से गायें गुजरती है. ये परंपरा न सिर्फ दिल दहलाने वाली है, बल्कि आस्था के नाम पर प्रश्न भी खड़े करती है.
अल सुबह से होने लगती है तैयारी
जिले के भीड़ावद इलाके में जहां की आबादी करीब चार हजार है, वहां इस परंपरा को हर साल मनाया जाता है. दिवाली के दूसरे दिन भीड़ावद गांव में लोग सूरज निकलने से पहले ही उठकर गाय गौरी या गौरी पूजन की तैयारी में जुट जाते हैं. सूरज के निकलते ही मंदिरों में घंटिया बजने लगती हैं. लोग अपनी गायों को तैयार करते हैं. माता का रूप माने जाने वाली सेकड़ो गायों को नहलाया जाता है और फिर आकर्षक रंग और मेहंदी से सजाया जाता है.
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सैकड़ों गायें हैं गुजरती
गायों के सजाने के बाद गांव के लोग चौक में जमा हो जाते हैं, जहां से मन्नत मांगने वाले लोगों का एक जुलूस पूरे गांव में निकाला जाता हे. जुलूस खत्म होने के बाद गांव के मुख्य मार्ग पर मन्नत मांगने वाले लोगों को मुंह के बल जमीन पर लिटाया जाता है. उसके बाद गांव की सैकड़ों गायों को छोड़ दिया जाता है. ये गायें दौड़ते हुए जमीन पर लेटे हुए मन्नातियों के ऊपर से गुजर जाती हैं.
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सदियों पुरानी है परंपरा
गांव में ये परंपरा बरसों पहले शुरू हुई थी, जो कि आज भी जारी है. इस गांव के जो लोग माता भवानी के मंदिर में मन्नत मांगते हैं, उनको दिवाली से पांच दिन पहले ग्यारस के दिन से ही अपना घर छोड़ कर मंदिर में ही रहना पड़ता है. इस साल भी गांव के जिन लोगों ने मन्नते मांगी है, वे पूरे पांच दिन तक मंदिर में रहे.
होती है हर मुराद पूरी !
स्थानीय लोगों का मानना है कि बरसों से चली आ रही इस परंपरा को निभाने से उनकी हर मुराद पूरी होती है. वे इस परंपरा को निभाने के लिए मन्नत भी मांगते हैं.
नोट: ETV भारत इस तरह की किसी भी परंपरा को बढ़ावा नहीं देता है.