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सीधी के इस गांव में बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे ग्रामीण, विकास के इंतजार में बीत गए कई साल

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Published : Oct 27, 2020, 3:05 PM IST

सीधी के बैरिहा पूर्व ग्राम पंचायत के पास स्थित बस्ती के ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. यहां करीब 6 सौ आदिवासी ग्रामीण सदियों से निवास करते आ रहे हैं. यहां न सड़क है न बिजली है न पीने के लिए समुचित पानी की व्यवस्था. ग्रामीण महिलाएं दो किलोमीटर दूर पानी भरने जाती हैं.

Villagers deprived of basic amenities
बुनियादी सुविधाओं से वंचित ग्रामीण

सीधी। आजादी के 70 साल से ज्यादा का समय गुजर जाने के बाद भी सीधी के कई गांव आज भी विकास से कोसों दूर नजर आते हैं. इन गांव में सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए ग्रामीणों को जिंदगी की जद्दोजहद करनी पड़ रही है. चुनाव आने पर जनप्रतिनिधि गांव जाते हैं और विकास के कई दावे करते हैं. लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई पीछे मुड़कर नहीं देखता है. ऐसा ही हाल सीधी से महज 8 किलो मीटर दूर बसे एक आदिवासी बस्ती का है. जहां लोग पानी, सड़क और बिजली को तरस रहे हैं.

बुनियादी सुविधाओं से वंचित ग्रामीण

बिजली, पानी की आस में बीत गए साल

इन ग्रामीणों को न तो साफ पीने का पानी नसीब हो रहा है और न बिजली मिल रही है. ऐसे में कह सकते हैं कि विकास के इंतजार में ग्रामीण आज भी टकटकी लगाकर इंतजार कर रहे हैं. दरअसल शहर से महज आठ किलोमीटर दूर बसा यह बैरिहा पूर्व ग्राम पंचायत है. जो पहाड़ों ओर जगंलों के बीच स्थित है. यहां करीब 6 सौ आदिवासी ग्रामीण सदियों से निवास करते आ रहे हैं. यहां न सड़क है न बिजली है, न पीने के लिए समुचित पानी की व्यवस्था है. ग्रामीण महिलाएं दो किलोमीटर दूर पानी भरने जाती हैं. ग्रामीणों के मुताबिक गांव में एक दो हैंडपंप जरूर लगे हैं, लेकिन पानी की जगह वे हवा उगलते हैं. लिहाजा ग्रामीण महिलाएं एक गड्ढे से पानी लेकर पीने को मजबूर हैं.

rural-is-not-getting-basic-facilities-in-a-village-near-sidhi
दिये की रोशनी में पढ़ाई करते बच्चे

आंगनबाड़ी केंद्र की दीवारों पर सहायिका के लिए लिखे अपशब्द, नहीं हो रही मामले की जांच

एंबुलेंस को पहुंचने लिए नहीं है रास्ता

वहीं कई गांव के लोग खेती और मजदूरी कर अपना और परिवार का पेट पालते हैं. बिजली की समस्या लगातार बनी हुई है. खंबे पांच साल पहले डाल दिए गए, लेकिन बिजली का करंट इन तारों में आज तक नहीं दौड़ पाया है. गांव में सड़क के नाम पर पगडंडी है. अगर गांव में कोई कोई बीमार होता है, गांव में एंबुलेंस के आने के लिए रास्ता ही नहीं है. जिसके चलते बीमार को खाट पर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है.

Women go to fetch water
पानी भरने जातीं महिलाएं

स्कूल में शिक्षक नहीं

अगर शिक्षा की बात करें तो स्कूल भवन तो बना है, लेकिन स्कूल में शिक्षक नहीं हैं. बिजली नहीं होने से बच्चे दिया और चिमनी की रोशनी में पढ़ने को मजबूर हैं. ग्रामीणों का कहना है कि कई बार सरपंच, सचिव, कलेक्टर और विधायक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कुछ भी नहीं होता है. गांव में मोबाइल का टॉवर भी नहीं है. 15 से 20 किलोमीटर दूर राशन लेने के लिए जाना पड़ता है.

कलेक्टर ने पानी की व्यवस्था कराने की कही बात

वही इस मामले में जिला कलेक्टर रविन्द्र कुमार चौधरी का कहना है कि गांव में एक दो दिन में पीएचई विभाग की टीम भेज कर पानी की व्यवस्था कराई जाएगी. सड़क के लिए जल्द कोई उपाय किये जाएंगे. टॉवर की समस्या पर अन्य निजी कंपनियों से टाईअप कर टॉवर पहुंचाए जाएंगे.

सीधी। आजादी के 70 साल से ज्यादा का समय गुजर जाने के बाद भी सीधी के कई गांव आज भी विकास से कोसों दूर नजर आते हैं. इन गांव में सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए ग्रामीणों को जिंदगी की जद्दोजहद करनी पड़ रही है. चुनाव आने पर जनप्रतिनिधि गांव जाते हैं और विकास के कई दावे करते हैं. लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई पीछे मुड़कर नहीं देखता है. ऐसा ही हाल सीधी से महज 8 किलो मीटर दूर बसे एक आदिवासी बस्ती का है. जहां लोग पानी, सड़क और बिजली को तरस रहे हैं.

बुनियादी सुविधाओं से वंचित ग्रामीण

बिजली, पानी की आस में बीत गए साल

इन ग्रामीणों को न तो साफ पीने का पानी नसीब हो रहा है और न बिजली मिल रही है. ऐसे में कह सकते हैं कि विकास के इंतजार में ग्रामीण आज भी टकटकी लगाकर इंतजार कर रहे हैं. दरअसल शहर से महज आठ किलोमीटर दूर बसा यह बैरिहा पूर्व ग्राम पंचायत है. जो पहाड़ों ओर जगंलों के बीच स्थित है. यहां करीब 6 सौ आदिवासी ग्रामीण सदियों से निवास करते आ रहे हैं. यहां न सड़क है न बिजली है, न पीने के लिए समुचित पानी की व्यवस्था है. ग्रामीण महिलाएं दो किलोमीटर दूर पानी भरने जाती हैं. ग्रामीणों के मुताबिक गांव में एक दो हैंडपंप जरूर लगे हैं, लेकिन पानी की जगह वे हवा उगलते हैं. लिहाजा ग्रामीण महिलाएं एक गड्ढे से पानी लेकर पीने को मजबूर हैं.

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दिये की रोशनी में पढ़ाई करते बच्चे

आंगनबाड़ी केंद्र की दीवारों पर सहायिका के लिए लिखे अपशब्द, नहीं हो रही मामले की जांच

एंबुलेंस को पहुंचने लिए नहीं है रास्ता

वहीं कई गांव के लोग खेती और मजदूरी कर अपना और परिवार का पेट पालते हैं. बिजली की समस्या लगातार बनी हुई है. खंबे पांच साल पहले डाल दिए गए, लेकिन बिजली का करंट इन तारों में आज तक नहीं दौड़ पाया है. गांव में सड़क के नाम पर पगडंडी है. अगर गांव में कोई कोई बीमार होता है, गांव में एंबुलेंस के आने के लिए रास्ता ही नहीं है. जिसके चलते बीमार को खाट पर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है.

Women go to fetch water
पानी भरने जातीं महिलाएं

स्कूल में शिक्षक नहीं

अगर शिक्षा की बात करें तो स्कूल भवन तो बना है, लेकिन स्कूल में शिक्षक नहीं हैं. बिजली नहीं होने से बच्चे दिया और चिमनी की रोशनी में पढ़ने को मजबूर हैं. ग्रामीणों का कहना है कि कई बार सरपंच, सचिव, कलेक्टर और विधायक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कुछ भी नहीं होता है. गांव में मोबाइल का टॉवर भी नहीं है. 15 से 20 किलोमीटर दूर राशन लेने के लिए जाना पड़ता है.

कलेक्टर ने पानी की व्यवस्था कराने की कही बात

वही इस मामले में जिला कलेक्टर रविन्द्र कुमार चौधरी का कहना है कि गांव में एक दो दिन में पीएचई विभाग की टीम भेज कर पानी की व्यवस्था कराई जाएगी. सड़क के लिए जल्द कोई उपाय किये जाएंगे. टॉवर की समस्या पर अन्य निजी कंपनियों से टाईअप कर टॉवर पहुंचाए जाएंगे.

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