शहडोल। मध्य प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां काफी तेज हो चुकी हैं. बीजेपी हो, कांग्रेस हो या फिर कोई भी पार्टी हो, सभी अपनी चुनावी बिसात बिछानी शुरू कर चुके हैं. ऐसे में हर विधानसभा सीट पर हर पार्टी अपने-अपने तरीके से अपनी तैयारी भी मजबूत करनी शुरू कर चुकी है.
सभी पार्टियां आगामी चुनाव से पहले अपनी हर उन कमियों को दूर कर लेना चाहती हैं, जो उसे चुनाव पर भारी पड़ सकती हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में आदिवासी सीटों को भी काफी अहम माना जा रहा है, जिसके लिए सभी पार्टियों के दिग्गजों की नजर इन आदिवासी सीटों पर टिकी हुई हैं. उनके लिए विशेष तैयारी भी चल रही है. शहडोल जिले का ब्यौहारी विधानसभा सीट भी एक आदिवासी सीट है. इस बार यहां भी काफी रोचक मुकाबले उम्मीद की जा रही है.
(ऐसे में हम ETV Bharat पर शहडोल में स्थित ब्यौहारी विधानसभा सीट से जुड़े सभी सियासी समीकरणों की चर्चा कर लेते हैं...)
ब्यौहारी में अभी BJP विधायक का कब्जा: ब्यौहारी विधानसभा सीट पर आगामी विधानसभा चुनाव में बाज़ी कौन मारेगा. इसपर सब की नजर रहेगी. इस विधानसभा सीट पर कुछ भी हो सकता है. वर्तमान में ब्यौहारी विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है.
बीजेपी से शरद कोल यहां के विधायक हैं. आगामी विधानसभा चुनाव की तस्वीर कुछ और ही हो सकती हैं, क्योंकि आज भी यहां के पुराने मुद्दे बरकरार हैं. ऐसे में इस बार के विधानसभा चुनाव में मुकाबला रोचक होने की पूरी उम्मीद की जा रही है.
ब्यौहारी विधानसभा सीट की खासियत: आदिवासी बाहुल्य ब्यौहारी विधानसभा सीट, जंगलों से घिरा हुआ है. जिला मुख्यालय शहड़ोल है, तो संसदीय क्षेत्र सीधी है. परिसीमन के बाद से अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए ये सीट आरक्षित कर दी गई थी. ब्यौहारी विधानसभा सीट पर एक नगर पंचायत और 149 ग्राम पंचायत शामिल हैं.
इस विधानसभा सीट में कोल समाज के वोटर्स की बहुलता है. इसके बाद गोंड़ समाज के वोटर्स आते हैं. फिर बैगा समाज के वोटर्स की संख्या है.
देखा जाए तो इस विधानसभा सीट से कोल समाज के ज्यादातर कैंडिडेट चुनाव लड़ते रहे हैं. इससे कोल समाज के वोटर्स का ध्रुवीकरण अक्सर इस विधानसभा सीट पर होता रहा है. ज्यादातर गोंड समाज के विधायक वहां से जीतते रहे, लेकिन वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के शरद जुगलाल कोल ब्यौहारी विधानसभा सीट से विधायक हैं.
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क्या कहते हैं आंकड़े: ब्यौहारी विधानसभा सीट पर पिछ्ले 2003 के विधानसभा चुनाव से नजर डालें तो यहां पर समय-समय पर विधायक बदलते रहे हैं. मुकाबले काफी रोचक होते रहे हैं.
साल 2003 के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2003 के विधानसभा चुनाव में ब्यौहारी विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के कुंवर लोकेश सिंह ने जीत दर्ज की थी. इन्होंने कांग्रेस के संतोष कुमार शुक्ला को हराया था. दोनों के बीच में जीत का अंतर महज 2,429 वोट का था.
साल 2008 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो ब्यौहारी विधानसभा सीट से 2008 में भारतीय जनता पार्टी के बली सिंह मरावी ने जीत दर्ज की थी. इन्होंने बीएसपी के रामहित कोल को 24,323 वोट के अंतर से हराया था. मतलब यहां दूसरे नंबर की पार्टी इस चुनाव में बीएसपी रही है.
इस चुनाव में दूसरे नंबर की पार्टी गोंगपा रही है. बीजेपी ने 78,007 वोट हासिल किए थे. कांग्रेस ने 45,557 वोट हासिल किए थे. अन्य ने 66,906 वोट हासिल किए थे.
ब्यौहारी विधानसभा में टोटल मतदाता: ब्यौहारी विधानसभा सीट में टोटल वोटर्स की संख्या पर नजर डालें तो करीब 2 लाख 70 हज़ार 659 मतदाता हैं. इनमें 1 लाख 3 हज़ार 545 महिला मतदाता हैं, और 1 लाख 40 हज़ार 123 पुरुष मतदाता हैं.
लोगों ने बताया, "उसे लेकर जनता में काफी नाराजगी है, और इस बार जनता का मूड बीजेपी के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ने भारतीय जनता पार्टी के विधायक को जीत दिलाई थी, तो वहीं दूसरे नंबर की पार्टी गोंगपा रही थी, और 2013 विधानसभा चुनाव में जीतने वाले कांग्रेस विधायक को तीसरे नंबर से संतोष करना पड़ा था. मतलब साफ है कि अगर ब्यौहारी की जनता के मुद्दों की बात अगर कोई नहीं करेगा, उनका समाधान नहीं करेगा तो इसका असर चुनाव में भी देखने को मिलता रहा है. इस बार भी कुछ भी हो सकता है.
बीजेपी-कांग्रेस के लिए ये भी बड़ा संकट: भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए ब्यौहारी विधानसभा सीट में एक बड़ा संकट यह भी है कि दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच में एक जुटता नहीं है. यहां बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में गुटबाजी चरम पर है. एक ही पार्टियों में कई दल बंटे हुए हैं.
इसका असर चुनाव पर भी देखने को मिलता है. अभी हाल ही में भारतीय जनता पार्टी में एक बार फिर से वीरेश सिंह रिंकू की फिर से वापसी कराई गई है, जिसके बाद से एक बार फिर से वहां की राजनीति गर्मा गई है, तो वहीं कांग्रेस में भी काफी गुटबाजी है जिसका असर चुनाव में देखने को मिलता है.