शहडोल| बदलते जमाने में किसान भी खेती के तरीकों में नवाचार कर रहे हैं. खेतों से ज्यादा फसल पैदा करने के लिए किसान भी फसलों में जमकर रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं, जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति भी घटने लगी है. शहडोल जिले में ज्यादातर खेतों में बलुई दोमट मिट्टी है, मतलब मिट्टी की क्वालिटी हल्की है. ऐसे में ये हरी खाद मृदा संरचना को भी सुधारने में मदद करती है और इसके साथ सबसे अच्छी बात ये है कि हर तीन साल में इसे लगाना पड़ता है. इस खाद के इस्तेमाल से आपको खेती में भी कम लागत पड़ती है क्योंकि फसल के लिए कई तरह के पोषक तत्वों के लिए आपको मार्केट पर डिपेंड नहीं रहना होगा.
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि हरी खाद क्षेत्र की बहुत पुरानी पद्धति है, लेकिन आज के बदलते समय में किसानों ने इसका इस्तेमाल करना छोड़ दिया है. असल में देखा जाए तो इस हरी खाद के बहुत फायदे हैं. हरी खाद मतलब सनई या ढेंचा जो भी फाइबर वाली फसल है, रेशेदार फसलें हैं जो पूरे खेत को कवर भी कर लेती हैं. उन्हीं को खेत में उगाकर फिर से उन्हें खेत में मिला देना. इससे खेत की मिट्टी उपजाऊ हो जाती है.
हरी खाद किसानों के खेतों की मिट्टी के लिए बहुत फायदेमंद है. इसे एक बार खेत में लगाने से जीवाश्म, कार्बनिक पदार्थ की मात्रा और माइक्रो एलिमेंट्स, मैक्रोएलिमेंट्स, हर तरह के पोषक तत्व मिट्टी में आ जाते हैं. एक तरह से कहा जाये तो मृदा संरचना सुधर जाती है. इस हरी खाद के इस्तेमाल से मिट्टी बहुत मुलायम हो जाती है और इस खाद में खेत में पानी रोकने की भी बहुत क्षमता होती है.
कृषि विज्ञान केंद्र अपने फॉर्म में इसके बीज तैयार करता है और इस पुरातन खाद को एक बार फिर से किसान इस्तेमाल करना शुरू कर रहे हैं. कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि इस हरी खाद के बीज शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र से दूसरे जिले के लोग भी ले जाते हैं और इसका प्रचार प्रसार कर रहे हैं.