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शहडोल: लॉकडाउन में नहीं बढ़ा बाल श्रम

कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन का असर हर तरफ दिखाई पड़ा है. ऐसे में आदिवासी बहुल शहडोल जिले में कोरोना महामारी ने स्कूल जाने वाले बच्चों को कहीं मजदूर के रुप में तो नहीं बदल दिया ? देखिए ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

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Published : Mar 7, 2021, 1:19 PM IST

Updated : Mar 7, 2021, 1:58 PM IST

शहडोल
शहडोल

शहडोल। यह जिला आदिवासी बहुल है और यहां भी कोरोनावायरस का प्रकोप देखने को मिला है. वहीं लॉक डाउन का असर भी यहां अच्छा खासा देखने को मिला. इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है जब पूरी तरह से स्कूल बंद हो गए, हर जगह ताले लग गए, कुछ बड़ी कक्षाओं को छोड़ दें तो छोटी क्लासेज एक साल होने को बाद भी बंद हैं. ऐसे में इस आदिवासी बाहुल्य जिले में कोरोना महामारी ने स्कूल जाने वाले बच्चों को कहीं मजदूर के रुप में तो नहीं बदल दिया? आखिर इस दौरान बच्चों में किस तरह के बदलाव देखने को मिले और बाल श्रम को लेकर क्या स्थिति रही?

लॉकडाउन में नहीं बढ़ा बाल श्रम

कोरोनाकाल में कहीं बढ़ा तो नहीं बालश्रम ?

शहडोल जिले में कोरोनाकाल में लॉकडाउन के दौरान सब कुछ बंद रहा. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम कई गांवों से गुजरी और यह देखने की कोशिश की कि इसका असर मासूम बच्चों पर क्या पड़ा है? क्या वह बच्चे जो कभी स्कूल जाया करते थे कहीं फिर से बाल श्रम की ओर तो नहीं मुड़ गए हैं? स्कूल बंद होने के दुष्परिणाम कहीं बाल श्रम के रुप में तो सिर नहीं उठा रहा. हालांकि टीम कई गांवों में घूमी लेकिन ऐसा हमें कुछ नजर नहीं आया. गांव में बच्चे खेलते जरूर मिले. कुछ किताबें लेकर स्कूल जाते भी मिले तो, कुछ ऐसे ही घूमते फिरते मिले लेकिन बाल मजदूरी करते कोई भी बच्चा नहीं मिला.

यहां बालश्रम का प्रचलन बहुत कम

कोरोना काल के दौरान बाल श्रम को लेकर और सच्चाई को करीब से जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम सहायक श्रमायुक्त कार्यालय पहुंची, जहां हमने हकीकत जानने की कोशिश की. कोरोनाकाल के दौरान पिछले 1 साल में बाल श्रम को लेकर क्या स्थिति रही, जिसे लेकर असिस्टेंट लेबर कमिश्नर नीलम सिंह बताती हैं कि बाल श्रमिक के संबंध में समय-समय पर विभाग निरीक्षण करते रहता है. वैसे भी कोरोनाकाल के समय तो सभी संस्थान बंद रहें. दुकानें बंद रही. श्रमिकों को कार्य से पृथक कर दिया गया, इसलिए ऐसे केस भी सामने नहीं आए हैं. बाल श्रम के संबंध में अगर इस तरह के केस आएंगे तो कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी. वहीं उन्होंने बताया की जिले में बाल श्रम में गिरावट आई है. किशोर श्रमिक जो 14 साल से अधिक उम्र के हैं और जो काम करते हैं वही थोड़े बहुत देखने को मिल जाते हैं. बाकी जब निरीक्षण किया गया तो किशोर श्रमिक बच्चे भी स्कूल जाते मिले. जब कभी गर्मी की छुट्टी आती है तो ये काम करते हैं.

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चाइल्ड लाइन

समाज के माथे पर कलंक है बाल मजदूरी, मध्यप्रदेश में बढ़ रहा बालश्रम, ये आंकड़े देखना है बेहद जरूरी

जनवरी 2020 से जनवरी 2021 तक बालश्रम के आंकड़ों की बात करें तो बालश्रम को लेकर सहायक श्रमायुक्त ने टोटल 133 इंस्पेक्शन किए हैं. जिसमें से एक केस ही ऐसा मिला है जिस पर कार्रवाई की गई. बाकी बाल श्रम के कोई ठोस केस नहीं मिल सके.

यहां नहीं बढ़ा बालश्रम

इसे और विस्तार से जानने के लिए टीम ने जहां बाल श्रमिक बच्चों के पुनर्वास का कार्य किया जाता है उस केंद्र और क्षेत्रों का निरीक्षण किया. ऐसे बच्चों के यहां रेस्क्यू का काम किया जाता है और बाल श्रमिकों को 14 साल से नीचे तक के बच्चों को कवर किया जाता है. चाइल्ड हेल्प लाइन के कोऑर्डिनेटर राहुल अवस्थी ने बताया कि चाइल्ड हेल्प लाइन का अपना एक टोल फ्री नंबर 1098 हैं, इस पर बाल श्रम से संबंधित शिकायती कॉल आते हैं. जानकारी दी जाती है फिर उस पर कार्रवाई भी जाती है. वहीं उनके माता-पिता को समझाइश दी जाती है कि वो अपने बच्चों को स्कूल भेजें, उन्हें पढ़ाएं न की बाल मजदूरी करवाएं. लेकिन इनके पास से भी जिले में बाल मजदूरी बढ़ने के संकेत नहीं मिले.

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खेलते बच्चे

पुनर्वास को लेकर क्या करते हैं ?

चाइल्ड लाइन कोऑर्डिनेटर से जब हमने ये जानना चाहा कि आखिर बाल श्रमिक मिलने के बाद उनके पुनर्वास के लिए क्या किया जाता है, तो उन्होंने बताया कि अगर कोई ऐसा बच्चा मिलता है तो संस्था पहले तो उसे रेस्क्यू करती है. फिर आरपीएफ के जरिए मिले या जीआरपीएफ या पुलिस, किसी के भी माध्यम से उसका रेस्क्यू कर सीडब्ल्यूसी को सूचना दी जाती है. बाद में वहां से आदेश होता है कि इनको कहां पर रखना है, मतलब शिशु गृह में या बाल गृह में, अगर बहुत छोटा बच्चा है तो शिशु गृह में रखा जाता है नहीं तो फिर बालगृह में रखा जाता है. जो आदेश वहां से मिलता है उसके बाद बच्चे को शिफ्ट किया जाता है. राहुल अवस्थी बताते हैं कि बाल श्रम के लिए वैसे भी पखवाड़ा चलता रहता है, प्रशासन प्रचार-प्रसार भी करता रहता है. आए दिन गली मोहल्ले और वार्ड, गांव में जाकर प्रचार प्रसार किया जाता है कि बालश्रम बच्चों से नहीं करवाना है. साथ ही साथ उन्हें भीख न मंगवाने के लिए भी बताया जाता है.

जिन्हें सवारना है देश का भविष्य, उनके हाथों में है फावड़ा, लॉकडाउन में बाल मजदूरी को मिला बढ़ावा

गौरतलब है कि शहडोल जिले में बाल श्रम को लेकर बहुत रेयर केस ही देखने को मिलते हैं. बाल श्रम को रोकने के लिए जो एनजीओ या सरकारी संस्थाएं काम करती हैं वहां के आंकड़े यह बताते हैं कि बाल श्रम यहां बहुत ज्यादा नहीं है. कोरोनावायरस के दौरान भी ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला है. कोरोनाकाल के दौरान स्कूल जरूर बंद रहे लेकिन उसकी वजह से बच्चों का डायवर्सन बाल श्रम की ओर नहीं हुआ, या यूं कहे की मजदूरी की ओर बच्चों का रुझान नहीं बढ़ा. क्योंकि इस एक साल के पीरियड में बाल श्रम को रोकने के लिए लगातार संबंधित सरकारी संस्थाओं के अधिकारी, कर्मचारियों ने इंस्पेक्शन किए हैं. जिले में इस तरह के केसेस ना मिलना यह दर्शाता है कि बाल श्रम यहां प्रचलन में कम है.

शहडोल। यह जिला आदिवासी बहुल है और यहां भी कोरोनावायरस का प्रकोप देखने को मिला है. वहीं लॉक डाउन का असर भी यहां अच्छा खासा देखने को मिला. इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है जब पूरी तरह से स्कूल बंद हो गए, हर जगह ताले लग गए, कुछ बड़ी कक्षाओं को छोड़ दें तो छोटी क्लासेज एक साल होने को बाद भी बंद हैं. ऐसे में इस आदिवासी बाहुल्य जिले में कोरोना महामारी ने स्कूल जाने वाले बच्चों को कहीं मजदूर के रुप में तो नहीं बदल दिया? आखिर इस दौरान बच्चों में किस तरह के बदलाव देखने को मिले और बाल श्रम को लेकर क्या स्थिति रही?

लॉकडाउन में नहीं बढ़ा बाल श्रम

कोरोनाकाल में कहीं बढ़ा तो नहीं बालश्रम ?

शहडोल जिले में कोरोनाकाल में लॉकडाउन के दौरान सब कुछ बंद रहा. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम कई गांवों से गुजरी और यह देखने की कोशिश की कि इसका असर मासूम बच्चों पर क्या पड़ा है? क्या वह बच्चे जो कभी स्कूल जाया करते थे कहीं फिर से बाल श्रम की ओर तो नहीं मुड़ गए हैं? स्कूल बंद होने के दुष्परिणाम कहीं बाल श्रम के रुप में तो सिर नहीं उठा रहा. हालांकि टीम कई गांवों में घूमी लेकिन ऐसा हमें कुछ नजर नहीं आया. गांव में बच्चे खेलते जरूर मिले. कुछ किताबें लेकर स्कूल जाते भी मिले तो, कुछ ऐसे ही घूमते फिरते मिले लेकिन बाल मजदूरी करते कोई भी बच्चा नहीं मिला.

यहां बालश्रम का प्रचलन बहुत कम

कोरोना काल के दौरान बाल श्रम को लेकर और सच्चाई को करीब से जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम सहायक श्रमायुक्त कार्यालय पहुंची, जहां हमने हकीकत जानने की कोशिश की. कोरोनाकाल के दौरान पिछले 1 साल में बाल श्रम को लेकर क्या स्थिति रही, जिसे लेकर असिस्टेंट लेबर कमिश्नर नीलम सिंह बताती हैं कि बाल श्रमिक के संबंध में समय-समय पर विभाग निरीक्षण करते रहता है. वैसे भी कोरोनाकाल के समय तो सभी संस्थान बंद रहें. दुकानें बंद रही. श्रमिकों को कार्य से पृथक कर दिया गया, इसलिए ऐसे केस भी सामने नहीं आए हैं. बाल श्रम के संबंध में अगर इस तरह के केस आएंगे तो कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी. वहीं उन्होंने बताया की जिले में बाल श्रम में गिरावट आई है. किशोर श्रमिक जो 14 साल से अधिक उम्र के हैं और जो काम करते हैं वही थोड़े बहुत देखने को मिल जाते हैं. बाकी जब निरीक्षण किया गया तो किशोर श्रमिक बच्चे भी स्कूल जाते मिले. जब कभी गर्मी की छुट्टी आती है तो ये काम करते हैं.

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चाइल्ड लाइन

समाज के माथे पर कलंक है बाल मजदूरी, मध्यप्रदेश में बढ़ रहा बालश्रम, ये आंकड़े देखना है बेहद जरूरी

जनवरी 2020 से जनवरी 2021 तक बालश्रम के आंकड़ों की बात करें तो बालश्रम को लेकर सहायक श्रमायुक्त ने टोटल 133 इंस्पेक्शन किए हैं. जिसमें से एक केस ही ऐसा मिला है जिस पर कार्रवाई की गई. बाकी बाल श्रम के कोई ठोस केस नहीं मिल सके.

यहां नहीं बढ़ा बालश्रम

इसे और विस्तार से जानने के लिए टीम ने जहां बाल श्रमिक बच्चों के पुनर्वास का कार्य किया जाता है उस केंद्र और क्षेत्रों का निरीक्षण किया. ऐसे बच्चों के यहां रेस्क्यू का काम किया जाता है और बाल श्रमिकों को 14 साल से नीचे तक के बच्चों को कवर किया जाता है. चाइल्ड हेल्प लाइन के कोऑर्डिनेटर राहुल अवस्थी ने बताया कि चाइल्ड हेल्प लाइन का अपना एक टोल फ्री नंबर 1098 हैं, इस पर बाल श्रम से संबंधित शिकायती कॉल आते हैं. जानकारी दी जाती है फिर उस पर कार्रवाई भी जाती है. वहीं उनके माता-पिता को समझाइश दी जाती है कि वो अपने बच्चों को स्कूल भेजें, उन्हें पढ़ाएं न की बाल मजदूरी करवाएं. लेकिन इनके पास से भी जिले में बाल मजदूरी बढ़ने के संकेत नहीं मिले.

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खेलते बच्चे

पुनर्वास को लेकर क्या करते हैं ?

चाइल्ड लाइन कोऑर्डिनेटर से जब हमने ये जानना चाहा कि आखिर बाल श्रमिक मिलने के बाद उनके पुनर्वास के लिए क्या किया जाता है, तो उन्होंने बताया कि अगर कोई ऐसा बच्चा मिलता है तो संस्था पहले तो उसे रेस्क्यू करती है. फिर आरपीएफ के जरिए मिले या जीआरपीएफ या पुलिस, किसी के भी माध्यम से उसका रेस्क्यू कर सीडब्ल्यूसी को सूचना दी जाती है. बाद में वहां से आदेश होता है कि इनको कहां पर रखना है, मतलब शिशु गृह में या बाल गृह में, अगर बहुत छोटा बच्चा है तो शिशु गृह में रखा जाता है नहीं तो फिर बालगृह में रखा जाता है. जो आदेश वहां से मिलता है उसके बाद बच्चे को शिफ्ट किया जाता है. राहुल अवस्थी बताते हैं कि बाल श्रम के लिए वैसे भी पखवाड़ा चलता रहता है, प्रशासन प्रचार-प्रसार भी करता रहता है. आए दिन गली मोहल्ले और वार्ड, गांव में जाकर प्रचार प्रसार किया जाता है कि बालश्रम बच्चों से नहीं करवाना है. साथ ही साथ उन्हें भीख न मंगवाने के लिए भी बताया जाता है.

जिन्हें सवारना है देश का भविष्य, उनके हाथों में है फावड़ा, लॉकडाउन में बाल मजदूरी को मिला बढ़ावा

गौरतलब है कि शहडोल जिले में बाल श्रम को लेकर बहुत रेयर केस ही देखने को मिलते हैं. बाल श्रम को रोकने के लिए जो एनजीओ या सरकारी संस्थाएं काम करती हैं वहां के आंकड़े यह बताते हैं कि बाल श्रम यहां बहुत ज्यादा नहीं है. कोरोनावायरस के दौरान भी ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला है. कोरोनाकाल के दौरान स्कूल जरूर बंद रहे लेकिन उसकी वजह से बच्चों का डायवर्सन बाल श्रम की ओर नहीं हुआ, या यूं कहे की मजदूरी की ओर बच्चों का रुझान नहीं बढ़ा. क्योंकि इस एक साल के पीरियड में बाल श्रम को रोकने के लिए लगातार संबंधित सरकारी संस्थाओं के अधिकारी, कर्मचारियों ने इंस्पेक्शन किए हैं. जिले में इस तरह के केसेस ना मिलना यह दर्शाता है कि बाल श्रम यहां प्रचलन में कम है.

Last Updated : Mar 7, 2021, 1:58 PM IST
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