सीहोर। हौसला हो तो कोई भी शख्स क्या कुछ नहीं कर सकता. जरूरत होती है तो महज जज्बे और हौसले की. यही बात साबित करके दिखाती हैं सीहोर कलेक्ट्रेट में बतौर टाइपिस्ट काम करने वाली 76 साल की लक्ष्मीबाई. उम्र के इस पड़ाव में भी लक्ष्मी बाई की उंगलियां जैसे ही टाइपिंग मशीन को छूती हैं, देखते ही देखते कब लंबे-लंबे आवेदन-पत्र टाइप हो जाते हैं सामने वाले को पता भी नहीं चलता. लक्ष्मी बाई के इस हुनर को सिर्फ शहरवासी हीं नहीं बल्कि खुद क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने भी सराहा है. क्रिकेटर सहवाग ने अपने ऑफिशयल ट्वीटर अकाउंट में इनका वीडियो भी ट्वीट किया था.
2008 से कर रही हैं काम
लक्ष्मी बाई ने बताया कि अक्टूबर 2008 में तत्कालीन कलेक्टर राघवेंद्र सिंह ने उन्हें काम करने के लिए कलेक्ट्रेट परिसर में जगह मुहैया कराई थी. पहले वह इंदौर में नौकरी करती थीं. फिर सीहोर आईं, जहां कलेक्टर ने उनके हुनर को देख उन्हें ये काम दिया.
पैंकिग का काम करते हुए सीखी टाइपिंग
लक्ष्मी बाई के जीवन की संघर्ष की कहानी तब शुरू हुई, जब उनके पति का देहांत हुआ. इसके बाद वे इंदौर के सरकारी बाजार में पैकिंग करने की नौकरी करने लगीं. पैकिंग के काम करने के दौरान ही लक्ष्मीबाई ने टाइपिंग भी सीख ली. वहीं सरकारी बाजार बंद होने के बाद लक्ष्मीबाई अपने रिश्तेदारों के भरोसे सीहोर चली आईं. तब वहां के तत्कालीन कलेक्टर राघवेंद्र सिंह ने उनकी टाइपिंग की रफ्तार देखकर उन्हें कलेक्ट्रेट में बैठने की जगह उपलब्ध कराई.
टाइपिंग के सहारे कर रहीं अपना और दिव्यांग बेटी का जीवन यापन
लक्ष्मीबाई कलेक्ट्रेट में आवेदन, शिकायत पत्र समेत कई दस्तावेजों की टाइपिंग कर अपना और अपनी दिव्यांग बेटी का जीवन यापन कर रही हैं.
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A superwoman for me. She lives in Sehore in MP and the youth have so much to learn from her. Not just speed, but the spirit and a lesson that no work is small and no age is big enough to learn and work. Pranam ! pic.twitter.com/n63IcpBRSH
— Virender Sehwag (@virendersehwag) June 12, 2018 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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— Virender Sehwag (@virendersehwag) June 12, 2018
पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने भी की है अम्मा की प्रशंसा
साल 2018 में पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने टाइपिस्ट अम्मा का वीडियो ट्वीट कर उनकी प्रशंसा की थी. उन्होंने लक्ष्मीबाई का वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा था कि मेरे लिए ये सुपर वुमेन हैं. सीहोर में रहने वाली इस महिला से युवाओं को सीखना चाहिए. न सिर्फ उनकी स्पीड बल्कि काम करने की लगन भी. कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता है.
देती हैं हौसला न हारने का संदेश
टाइपिस्ट अम्मा कहती हैं कि आज की पीढ़ी थोड़ी सी परेशानी से घबरा जाती हैं और हार मान जाती हैं. लेकिन उन्हें हार नहीं मानना चाहिए. अपना हौसला हमेशा बुलंद रखना चाहिए, जीवन में कोई भी परिस्थिति हो उसका डटकर सामना करना चाहिए.
सीहोर की टाइपिस्ट अम्मा के हौसले को सलाम है. जिन्होंने अकेले अपने जीवन के संघर्ष का सामना किया और हर मुश्किल को मात दी.