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सतना: दम टोड़ती नदी, गिरता भूमिगत जल स्तर, नहीं हुआ जलप्रबंधन तो मचेगा हाहाकार

जिले में विगत 10 वर्षों जलस्तर 3 मीटर नीचे गिर गया . अगर जल प्रबंधन को लेकर जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले 20 वर्षों के बाद सतना जिला वासी बूंद-बूंद पानी को तरसेंगे. इस समस्या का निराकरण करने वाली योजनाएं केवल कागजों पर ही टिकी हुई हैं. भू-जल संरक्षण विभाग की मानें तो जल संरक्षण बहुत जरूरी हो गया है.

पानी का इंतजाम करते ग्रामीण
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Published : Jun 1, 2019, 7:05 PM IST

सतना। जिले में आज भी अधिकांश लोग गांव और जंगलों में जीवन-यापन करने को मजबूर हैं. भीषण गर्मी में यहां की जनता, पशु-पक्षी पानी की बूंद-बूंद के लिये तरसते हैं. सरकारें आदिवासियों के नाम पर बनती बिगड़ती रही, लेकिन यहां की तस्वीर और तकदीर जस की तस बनी हुई है. यहां 12 माह पानी की समस्या बनी रहती है. लेकिन गर्मी के दिनों में पानी की समस्या विकराल हो जाती है और यहां के निवासी काम छोड़कर पानी के इंतजाम में जुट जाते हैं.


जल प्रबंधन द्वारा अगर समय पर होश इंतजाम नहीं किए गए तो आने वाले 20 वर्ष बाद सतना जिला वासी पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसेगा. निश्चित तौर पर यह खबर पेशानी में बल पैदा करने के लिए काफी है. बीते 10 सालों में जिले का जलस्तर लगभग 3 मीटर नीचे चला गया है लगातार घटता जा रहा है. जिले के जल स्तर से भू-जल सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार को भी अवगत करा चुका है. मौजूदा समय में ट्यूबवेल का वाटर लेवल 301 पर है जबकि नदियों तालाबों की सांस टूट चुकी है. जल दोहन का एक बड़ा कारण बढ़ती आबादी, सीमेंट फैक्ट्रियां, बढ़ते कारखाने, बढ़ता ट्रैफिक है.
साल दर साल ऐसे भूमिगत हुआ पानी
जानकारों के मुताबिक भूजल सर्वेक्षण विवाह दो तरह के जलस्तर के आंकड़ों को जुटाता है. एक बारिश से पहले यानी मई माह में, तो दूसरा बारिश हो जाने के बाद यानी नवंबर माह में. भूजल सर्वेक्षण विभाग के आंकड़े बताते हैं की साल दर साल जिले का जलस्तर भूमिगत हुआ है. नवंबर 2013 में जो जलस्तर 6.17 मीटर हुआ करता था, जो साल 2017 में गिरकर 5.12 मीटर हो गया. वर्ष 2016 में जब बाढ़ के हालात बने थे. तब जल दोहन के बाद यानी नवम्बर माह में जल स्तर 5.51 मीटर पर आ गया था.
वाटर लेवल रिकॉर्ड खराब
दरअसल, भूजल सर्वेक्षण विभाग 2 तरह से जल स्तर को मापता है. वर्ष 2002 में विभाग ने जिले के रामबन, उचेहरा, पौड़ी और बिहरा में ट्यूबेल लगाकर उसमें डिस्टल वाटर लेबल रिकॉर्डर डिवाइस लगाया था जो हर 6 घंटे में जल स्तर के साथ-साथ तापमान की गणना करता है. यह बात और है कि बीते 4 सालों में डिवाइस खराब पड़े हैं लिहाजा पहला तरीका फिलहाल ठप हो गया है. अब खबर है कि वाटर लेवल जांचने के लिए नई डिस्टल वाटर लेवल रिकॉर्डर डिवाइस एलिमेंट्री जल्द आने वाली है. इसके अलावा जिले में 100 कुओं के जलस्तर को इंची टेप के जरिए मापा जाता है. एक विकासखंड में औसतन 15 गांव चिन्हित किए गए हैं, जिनका वाटर लेवल का पैमाना नापने के बाद विभाग ब्लाक के जलस्तर का औसत निकालता है. विभाग की माने तो 100 कुंए से पूरे जिले का रिकॉर्ड निकल जाता है.

सतना में सूखी पड़ी नदियां
जलस्तर मापने का 48 साल पुराना तरीकाजल स्तर मापने की ये परंपरा 48 साल पुरानी है. वर्ष 1971 से 1984 तक 50 कुओं का जल स्तर मापा जाता था. 80 के दशक में इनकी संख्या बढ़कर 75 हो गई. इसके बाद में वर्ष 1983 में 25 कुंए और जोड़ दिए गए हैं. 36 सालों में इन कुओं में इंची टेप के सहारे पूरे जिले का वाटर लेवल मापा जा रहा है. वर्ष 2017 के दस्तावेजों के मुताबिक जिले में 12 हजार 410 कुंए और 17 हजार 64 ट्यूबवेल हैं, इनमें से 30 फीसदी कुंए जहां सूख गए हैं तो वहीं ट्यूबवेल जलस्तर 300 से नीचे चला गया है. भूजल सर्वेक्षण विभाग का कहना है कि जिले में प्रत्येक साल 1 हजार 92.2 मिली मीटर औसत वर्षा होनी चाहिए जो कि नहीं होती है. 2 सालों में एक बार ग्राउंड वाटर असाइनमेंट किया जाता है, जिसमें जिले के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.

सतना। जिले में आज भी अधिकांश लोग गांव और जंगलों में जीवन-यापन करने को मजबूर हैं. भीषण गर्मी में यहां की जनता, पशु-पक्षी पानी की बूंद-बूंद के लिये तरसते हैं. सरकारें आदिवासियों के नाम पर बनती बिगड़ती रही, लेकिन यहां की तस्वीर और तकदीर जस की तस बनी हुई है. यहां 12 माह पानी की समस्या बनी रहती है. लेकिन गर्मी के दिनों में पानी की समस्या विकराल हो जाती है और यहां के निवासी काम छोड़कर पानी के इंतजाम में जुट जाते हैं.


जल प्रबंधन द्वारा अगर समय पर होश इंतजाम नहीं किए गए तो आने वाले 20 वर्ष बाद सतना जिला वासी पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसेगा. निश्चित तौर पर यह खबर पेशानी में बल पैदा करने के लिए काफी है. बीते 10 सालों में जिले का जलस्तर लगभग 3 मीटर नीचे चला गया है लगातार घटता जा रहा है. जिले के जल स्तर से भू-जल सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार को भी अवगत करा चुका है. मौजूदा समय में ट्यूबवेल का वाटर लेवल 301 पर है जबकि नदियों तालाबों की सांस टूट चुकी है. जल दोहन का एक बड़ा कारण बढ़ती आबादी, सीमेंट फैक्ट्रियां, बढ़ते कारखाने, बढ़ता ट्रैफिक है.
साल दर साल ऐसे भूमिगत हुआ पानी
जानकारों के मुताबिक भूजल सर्वेक्षण विवाह दो तरह के जलस्तर के आंकड़ों को जुटाता है. एक बारिश से पहले यानी मई माह में, तो दूसरा बारिश हो जाने के बाद यानी नवंबर माह में. भूजल सर्वेक्षण विभाग के आंकड़े बताते हैं की साल दर साल जिले का जलस्तर भूमिगत हुआ है. नवंबर 2013 में जो जलस्तर 6.17 मीटर हुआ करता था, जो साल 2017 में गिरकर 5.12 मीटर हो गया. वर्ष 2016 में जब बाढ़ के हालात बने थे. तब जल दोहन के बाद यानी नवम्बर माह में जल स्तर 5.51 मीटर पर आ गया था.
वाटर लेवल रिकॉर्ड खराब
दरअसल, भूजल सर्वेक्षण विभाग 2 तरह से जल स्तर को मापता है. वर्ष 2002 में विभाग ने जिले के रामबन, उचेहरा, पौड़ी और बिहरा में ट्यूबेल लगाकर उसमें डिस्टल वाटर लेबल रिकॉर्डर डिवाइस लगाया था जो हर 6 घंटे में जल स्तर के साथ-साथ तापमान की गणना करता है. यह बात और है कि बीते 4 सालों में डिवाइस खराब पड़े हैं लिहाजा पहला तरीका फिलहाल ठप हो गया है. अब खबर है कि वाटर लेवल जांचने के लिए नई डिस्टल वाटर लेवल रिकॉर्डर डिवाइस एलिमेंट्री जल्द आने वाली है. इसके अलावा जिले में 100 कुओं के जलस्तर को इंची टेप के जरिए मापा जाता है. एक विकासखंड में औसतन 15 गांव चिन्हित किए गए हैं, जिनका वाटर लेवल का पैमाना नापने के बाद विभाग ब्लाक के जलस्तर का औसत निकालता है. विभाग की माने तो 100 कुंए से पूरे जिले का रिकॉर्ड निकल जाता है.

सतना में सूखी पड़ी नदियां
जलस्तर मापने का 48 साल पुराना तरीकाजल स्तर मापने की ये परंपरा 48 साल पुरानी है. वर्ष 1971 से 1984 तक 50 कुओं का जल स्तर मापा जाता था. 80 के दशक में इनकी संख्या बढ़कर 75 हो गई. इसके बाद में वर्ष 1983 में 25 कुंए और जोड़ दिए गए हैं. 36 सालों में इन कुओं में इंची टेप के सहारे पूरे जिले का वाटर लेवल मापा जा रहा है. वर्ष 2017 के दस्तावेजों के मुताबिक जिले में 12 हजार 410 कुंए और 17 हजार 64 ट्यूबवेल हैं, इनमें से 30 फीसदी कुंए जहां सूख गए हैं तो वहीं ट्यूबवेल जलस्तर 300 से नीचे चला गया है. भूजल सर्वेक्षण विभाग का कहना है कि जिले में प्रत्येक साल 1 हजार 92.2 मिली मीटर औसत वर्षा होनी चाहिए जो कि नहीं होती है. 2 सालों में एक बार ग्राउंड वाटर असाइनमेंट किया जाता है, जिसमें जिले के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.
Intro:एंकर इंट्रो --
सतना जिले में विगत 10 वर्षों 3 मीटर नीचे में गहराया जल संकट । वजह जिले भर में हो रहा है जल के दोहन से जलस्तर नीचे जा चुका है। अगर जल प्रबंधन द्वारा जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले 20 वर्षों के बाद बूंद बूंद पानी को तरसेंगे सतना जिला वासी । शासन-प्रशासन की योजनाएं केवल कागजों पर ही टिकी हुई हैं । भू जल संरक्षण विभाग की माने तो जल का बचाव अति आवश्यक है।


Body:Vo 1---
"रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून"
"पानी गए ना उबरे मोती मानुष चून" ।
ऐसा ही हाल सतना जिले के अधिकांश इलाकों का गर्मी आते ही जल संकट के हालात हो जाते हैं । लोगों के साथ साथ पशु पक्षि भी पानी की बूंद बूंद को तरसते हैं । सरकार की योजनाएं केवल कागजों में तब्दील होकर रह जाती हैं । जी हां हम बात कर रहे हैं सतना जिले की जहां आज भी लोग प्राचीन काल से अधिकांश गांवों में जंगलों में जीवन यापन करने को मजबूर हैं। स्वतंत्र भारत की सरकारों की करोड़ों अरबों की योजना यहां आते आते दम तोड़ देती हैं । भीषण गर्मी में यहां लोग पशु पक्षी पानी की बूंद बूंद के लिए तरसते हैं। लोकतांत्रिक सरकारें आदिवासियों के नाम पर बनती बिगड़ती रही लेकिन सतना जिले की तस्वीर और तकदीर जस के तस बनी हुई है । आज सतना जिले के आदिवासी गांव मैं 12 महीना पानी की समस्या बनी रहती है। लेकिन गर्मी के दिनों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण करने लगती है । लोग अपना सारा काम धाम छोड़कर पहले पानी का इंतजाम करते हैं बाद में अपने सारे काम करते हैं ।

Vo 2--
जल प्रबंधन द्वारा अगर समय पर होश इंतजाम नहीं किए गए तो आने वाले 20 वर्ष बाद सतना जिला वासी पानी की बूंद बूंद के लिए तरसेगा । निश्चित तौर पर यह खबर पेशानी में बल पैदा करने के लिए काफी है । इसकी बानगी इस आंकड़े से मिलती है कि बीते 5 सालों में इस आंकड़े से मिलती है कि बीते 10 सालों में जिले का जलस्तर लगभग 3 मीटर नीचे चला गया । साल दर साल रसातल में जा रहे हैं । जल स्तर से भू-जल सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार को भी अवगत करा चुका है । मौजूदा समय में ट्यूबवेल का वाटर लेवल 301 पर है जबकि नदियों तालाबों की सांस टूट चुकी है । जल दोहन का एक बड़ा कारण बढ़ती आबादी, सीमेंट फैक्ट्रियां, बढ़ते कारखाने, बढ़ता ट्राफिक हैं ।
साल दर साल ऐसे भूमिगत हुआ पानी । जानकारों के मुताबिक भूजल सर्वेक्षण विवाह दो तरह के जलस्तर के आंकड़ों को जुटाता है । एक बारिश से पहले यानी मई माह में, तो दूसरा बारिश हो जाने के बाद यानी नवंबर माह में । भूजल सर्वेक्षण विभाग के आंकड़े बताते हैं की साल दर साल जिले का जलस्तर भूमिगत हुआ है । नवंबर 2013 में जो जलस्तर 6.17 मीटर हुआ करता था ।वह वाटर लेवलब 2017 में गिरकर 5.12 मीटर हो गया ।वर्ष 2016 में जब बाढ़ के हालात बने थे ।तब जल दोहन के बाद यानी नवम्बर महीने में जल स्तर 5.51 मीटर पर आ गया था ।
डिजिटल वाटर लेवल रिकॉर्ड खराब दरअसल भूजल सर्वेक्षण विभाग दो तरह से जल स्तर को मापता है। वर्ष 2002 में विभाग ने जिले के रामबन उचेहरा पौड़ी और बिहरा ट्यूबेल लगाकर उसमें डिस्टल वाटर लेबल रिकॉर्डर डिवाइस लगाया था जो हर 6 घंटे में जल स्तर के साथ-साथ तापमान की गणना करता है। यह बात और है कि बीते 4 सालों में डिवाइस खराब पड़े हैं लिहाजा पहला तरीका फिलहाल ठप हो गया है । अब खबर है कि वाटर लेवल जांचने के लिए नई डिस्टल वाटर लेवल रिकॉर्डर डिवाइस एलिमेंट्री जल्द आने वाली है । इसके अलावा जिले में 100 कुओं के जलस्तर को इंची टेप के जरिए मापा जाता है । एक विकासखंड में औसतन 15 गांव चिन्हित किए गए हैं और 15 को सेव वाटर लेवल का पैमाना नापने के बाद विभाग ब्लाक के जलस्तर का औसत निकालता है। विभाग की माने तो 100 कुएं से पूरे जिले का रिकॉर्ड निकल जाता है । को मैं जल स्तर मापने की परंपरा 48 साल पुरानी है । वर्ष 1971 से 1984 तक 50 कुओं का जल स्तर मापा जाता था। 80 के दशक में इनकी संख्या बढ़कर 75 हो गई । इसके बाद मेंवर्ष 1983 में 25 कुए और जोड़ दिए गए हैं । इस तरह से 100 को मैं वाटर लेवल का पता लगाया जाने लगा । 36 सालों में इन कुओं में इंची टेप के सहारे पूरे जिले का वाटर लेवल मापा जा रहा है । वर्ष 2017 के दस्तावेजों के मुताबिक जिले में 12 हजार 410 कुँए और 17 हजार 64 ट्यूबवेल है। इनमें से 30 फ़ीसदी कुँए जहां सूख गए हैं तो वहीं ट्यूबवेल जलस्तर 300 से नीचे चला गया है । भूजल सर्वेक्षण विभाग का कहना है की जिले में प्रत्येक साल 1092.2 मिली मीटर औसत वर्षा होनी चाहिए जो कि नहीं होती है । हर 2 सालों में ग्राउंड वाटर असाइनमेंट किया जाता है जिसमें जिले के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं ।


Conclusion:byte ---
अशोक शुक्ला -- साहित्यकार सतना ।

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गजेंद्र सिंह --- SDO भू-जल सर्वेक्षण विभाग सतना ।
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