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सुनो सरकार! मकान पर मालिकाना हक पाने के लिए दर-दर भटक रहा शहीद का परिवार

देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों के 56 बरस, तो किसी के 50 वर्ष बीत गए, लेकिन आज उन्हे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला है, जिसे लेकर वह सरकार दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं.

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Published : Aug 13, 2021, 7:45 PM IST

Updated : Aug 14, 2021, 1:42 PM IST

Families of martyrs wandering for rights
हक के लिए भटक रहे शहीद के परिजन

सतना। जिले में त्योंधारी निवासी सुख राजा देवी जब 20 वर्ष के थे, तब उनके पति वंशराज सिंह बघेल 1965 में भारत पाक युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए, तब सरकार ने सुखराजा देवी को ₹1000 की नकद राशि दी साथ ही 10-12 साल बाद सतना के सिंधी कैंप में ईडब्ल्यूएस का क्वॉर्टर दिया गया. लेकिन उस मकान का आज तक पता नहीं दिया गया.

हक के लिए भटक रहे शहीद के परिजन

शहीद के परिजनों को नहीं मिला आज तक मकान का पट्टा

सुख राजा देवी का बेटा उस समय कृष्णपाल सिंह 2 वर्ष का था और उनकी बेटी करीब 6 वर्ष की थी. उस जमाने में जिंदगी को अकेले काटना बड़ा मुश्किल था, लेकिन शहीद की पत्नी ने अपना सफर बच्चों के सहारे काटा, मकान के पट्टे के लिए जिला कलेक्टर के दफ्तरों के कई बार चक्कर काटे, लेकिन सरकारें आई चली गईं, कितने कलेक्टर बदल गए और आज तक उस मकान का मालिकाना हक पट्टा नहीं मिला.

Vanshraj Singh Baghel
स्व. दुर्गा प्रसाद मिश्रा

शहीद के परिवार लगा रहे सरकार से गुहार

जिले के मौहार ग्राम के निवासी रामपति सिंह के पति रामपाल सिंह परिहार 1965 में भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे. उन्हें भी इसकी सूचना डाकिया के तार के माध्यम से प्राप्त हुई थी. जब पति शहीद हुए तो जिंदगी एक पहाड़ से लगने लगी और बच्चों के खातिर रामपति ने अपने आप को संभाला और आगे का सफर अकेले ही तय किया. उन्हें शासन के द्वारा एक मकान तो दिया गया, लेकिन उस मकान का पट्टा यानी मालिकाना हक आज तक उन्हें नहीं मिला. रामपति सिंह ने भी कई बार शासन प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन आज तक किसी ने उनकी एक न सुनी.

50 साल बाद भी मकान पर नहीं मिला मालिकाना हक

शहर के सिंधी कैंप निवासी क्रीमिया देवी उर्फ प्रेमा मिश्रा जब तकरीबन 13 वर्ष की थी, तब उनके पति दुर्गा प्रसाद मिश्रा 1971 में भारत-पाक युद्ध में शहीद हो गए. पहले शहीदों के पार्थिव शरीर परिजनों को नहीं सौंपा जाते थे. डाकिया की चिट्ठी टेलीग्राम के माध्यम से घर में शहीद की वर्दी देकर उनके शहीद की सूचना दी जाती थी. दुर्गा प्रसाद ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी.

उस वक्त इंदिरा गांधी की सरकार थी तब कुछ नकद राशि. और तकरीबन 4 साल बाद उन्हें उन्हें भी दो कमरों का मकान दिया गया. मगर 50 साल बीत गए और आज तक मकान का मालिकाना हक यानी पट्टा नसीब नहीं हुआ.

सूबेदार वीरेंद्र कुमार सियाचिन ग्लेशियर में हुए शहीद, आज घर पहुंचेगा पार्थिव शरीर

देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों के नाम पर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन इन दावों की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है, अब ऐसे में देखना यह होगा कि सरकार ने मामले पर क्या निर्णय लेती है. आज भी सतना कि यह शहीद परिवार सरकार की उम्मीदों को लेकर इंतजार में बैठा हुआ है कि शायद हमारे निवास मकान का मालिकाना हक उन्हें मिल जाए.

सतना। जिले में त्योंधारी निवासी सुख राजा देवी जब 20 वर्ष के थे, तब उनके पति वंशराज सिंह बघेल 1965 में भारत पाक युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए, तब सरकार ने सुखराजा देवी को ₹1000 की नकद राशि दी साथ ही 10-12 साल बाद सतना के सिंधी कैंप में ईडब्ल्यूएस का क्वॉर्टर दिया गया. लेकिन उस मकान का आज तक पता नहीं दिया गया.

हक के लिए भटक रहे शहीद के परिजन

शहीद के परिजनों को नहीं मिला आज तक मकान का पट्टा

सुख राजा देवी का बेटा उस समय कृष्णपाल सिंह 2 वर्ष का था और उनकी बेटी करीब 6 वर्ष की थी. उस जमाने में जिंदगी को अकेले काटना बड़ा मुश्किल था, लेकिन शहीद की पत्नी ने अपना सफर बच्चों के सहारे काटा, मकान के पट्टे के लिए जिला कलेक्टर के दफ्तरों के कई बार चक्कर काटे, लेकिन सरकारें आई चली गईं, कितने कलेक्टर बदल गए और आज तक उस मकान का मालिकाना हक पट्टा नहीं मिला.

Vanshraj Singh Baghel
स्व. दुर्गा प्रसाद मिश्रा

शहीद के परिवार लगा रहे सरकार से गुहार

जिले के मौहार ग्राम के निवासी रामपति सिंह के पति रामपाल सिंह परिहार 1965 में भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे. उन्हें भी इसकी सूचना डाकिया के तार के माध्यम से प्राप्त हुई थी. जब पति शहीद हुए तो जिंदगी एक पहाड़ से लगने लगी और बच्चों के खातिर रामपति ने अपने आप को संभाला और आगे का सफर अकेले ही तय किया. उन्हें शासन के द्वारा एक मकान तो दिया गया, लेकिन उस मकान का पट्टा यानी मालिकाना हक आज तक उन्हें नहीं मिला. रामपति सिंह ने भी कई बार शासन प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन आज तक किसी ने उनकी एक न सुनी.

50 साल बाद भी मकान पर नहीं मिला मालिकाना हक

शहर के सिंधी कैंप निवासी क्रीमिया देवी उर्फ प्रेमा मिश्रा जब तकरीबन 13 वर्ष की थी, तब उनके पति दुर्गा प्रसाद मिश्रा 1971 में भारत-पाक युद्ध में शहीद हो गए. पहले शहीदों के पार्थिव शरीर परिजनों को नहीं सौंपा जाते थे. डाकिया की चिट्ठी टेलीग्राम के माध्यम से घर में शहीद की वर्दी देकर उनके शहीद की सूचना दी जाती थी. दुर्गा प्रसाद ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी.

उस वक्त इंदिरा गांधी की सरकार थी तब कुछ नकद राशि. और तकरीबन 4 साल बाद उन्हें उन्हें भी दो कमरों का मकान दिया गया. मगर 50 साल बीत गए और आज तक मकान का मालिकाना हक यानी पट्टा नसीब नहीं हुआ.

सूबेदार वीरेंद्र कुमार सियाचिन ग्लेशियर में हुए शहीद, आज घर पहुंचेगा पार्थिव शरीर

देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों के नाम पर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन इन दावों की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है, अब ऐसे में देखना यह होगा कि सरकार ने मामले पर क्या निर्णय लेती है. आज भी सतना कि यह शहीद परिवार सरकार की उम्मीदों को लेकर इंतजार में बैठा हुआ है कि शायद हमारे निवास मकान का मालिकाना हक उन्हें मिल जाए.

Last Updated : Aug 14, 2021, 1:42 PM IST
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