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करगिल विजय दिवस विशेष: 'सेना का गांव' कहलाता है मध्यप्रदेश का चूंद

देश की रक्षा के लिए जब-जब कदम आगे बढ़ाने की जरूरत पड़ी है, चूंद गांव के सपूतों ने सीना तान के खड़े हुए और दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए. द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर 1962 में चाइना वार, 1965 में इंडो-पाक वार, 1971 में इंडो-पाक वार, ऑपरेशन मेघदूत, ऑपरेशन रक्षक व करगिल ऑपरेशन विजय में भी यहा के रणबांकुरों ने योगदान दिया.

करगिल विजय दिवस विशेष
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Published : Jul 26, 2019, 3:18 PM IST

सतना। भारतीय सेना ने आज ही के दिन 20 साल पहले भारत-पाकिस्तान युद्ध में बड़ी जीत हासिल की थी. भारतीय सेना ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे और वहां के सैकड़ों जवानों को मार गिराया था. 1999 में आज ही के दिन भारत के वीर सपूतों ने करगिल की चोटियों से पाकिस्तानी फौज को खदेड़कर तिरंगा फहराया था. करगिल युद्ध के दौरान मध्यप्रदेश के सतना जिले के जांबाजों ने भी दुश्मनों के नापाक इरादों को नेस्तोनाबूद किया था. यही वजह है कि सतना के चूंद गांव को शहीदों के गांव के नाम से भी जाना जाता है और इस गांव का बच्चा-बच्चा सेना में जाने का शौक रखता है.

करगिल विजय दिवस विशेष


चूंद गांव की मिट्टी में पैदा हुए जांबाजों ने करगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों के दांत खट्टे किये थे और देश के लिए अपने प्राण नयोछावर कर दिए थे. करगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिक समर बहादुर सिंह, कन्हैया लाल सिंह, बाबूलाल सिंह के जज्बे की कहानी आज भी गांव के लोग सुनाते हैं.

करगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों को खदेड़ते हुए चूंद गांव के 3 जवान भी शहीद हो गए थे. 3 हजार की आबादी वाले इस गांव में कुछ ऐसे परिवार भी हैं, जिनके पांच बेटों में से तीन सेना में हैं और गांव का बच्चा-बच्चा सेना में जाने का सपना संजोया है.

इस गांव के बच्चों का एक ही लक्ष्य है सेना में जाना और देश की सेवा करना. करगिल युद्ध के दौरान गांव के दो सगे भाईयों ने शहादत दी थी, जिसके बाद उनके बेटे भी सेना में भर्ती होकर सियाचिन में पदस्थ होकर देश की सेवा कर रहे हैं. खास बात ये है कि गांव से 250 से ज्यादा जवान देश की सेवा में और इससे भी ज्यादा सेवानिवृत हो चुके हैं.

समय के साथ भले ही गांव का नाम चंद्रपुर कर दिया गया, लेकिन लोग गांव की पहचान चूंद गांव से रखते हैं. देश को जब-जब जरूरत पड़ी तब-तब सतना जिले के बेटे उठ खड़े हुए. करगिल विजय ऑपरेशन के दौरान देश के लिए शहादत देने वाले जूंद गांव के वीरों को ईटीवी भारत भी नमन करता है.

देश को शहादत देने वाले गांव के लाल

  • सुग्रीव, भारत-चीन युद्ध 1962
  • बद्री प्रसाद, भारत-चीन युद्ध 1962
  • वंशराज सिंह, भारत-चीन युद्ध 1965
  • राम पाल सिंह, भारत-पाक युद्ध 1965
  • दुर्गा प्रसाद, भारत-पाक युद्ध 1971
  • छोटे लाल सिंह, भारत-पाक युद्ध 1971
  • लालजी सिंह (सिपाही) - ऑपरेशन मेघदूत


कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर

  • समर बहादुर सिंह (सिपाही) - चूंद
  • कन्हैया लाल सिंह (नायक) - चूंद
  • बाबूलाल सिंह (नायक) - चूंद

सतना जिले के दूसरे गावं के शहीद होने वाले सपूत

  • केपी कुशवाहा, महुला मेहुती
  • राजेन्द्र सेन, करही मेदनीपुर
  • शिव शंकर प्रसाद पांडेय, कुआं

सतना। भारतीय सेना ने आज ही के दिन 20 साल पहले भारत-पाकिस्तान युद्ध में बड़ी जीत हासिल की थी. भारतीय सेना ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे और वहां के सैकड़ों जवानों को मार गिराया था. 1999 में आज ही के दिन भारत के वीर सपूतों ने करगिल की चोटियों से पाकिस्तानी फौज को खदेड़कर तिरंगा फहराया था. करगिल युद्ध के दौरान मध्यप्रदेश के सतना जिले के जांबाजों ने भी दुश्मनों के नापाक इरादों को नेस्तोनाबूद किया था. यही वजह है कि सतना के चूंद गांव को शहीदों के गांव के नाम से भी जाना जाता है और इस गांव का बच्चा-बच्चा सेना में जाने का शौक रखता है.

करगिल विजय दिवस विशेष


चूंद गांव की मिट्टी में पैदा हुए जांबाजों ने करगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों के दांत खट्टे किये थे और देश के लिए अपने प्राण नयोछावर कर दिए थे. करगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिक समर बहादुर सिंह, कन्हैया लाल सिंह, बाबूलाल सिंह के जज्बे की कहानी आज भी गांव के लोग सुनाते हैं.

करगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों को खदेड़ते हुए चूंद गांव के 3 जवान भी शहीद हो गए थे. 3 हजार की आबादी वाले इस गांव में कुछ ऐसे परिवार भी हैं, जिनके पांच बेटों में से तीन सेना में हैं और गांव का बच्चा-बच्चा सेना में जाने का सपना संजोया है.

इस गांव के बच्चों का एक ही लक्ष्य है सेना में जाना और देश की सेवा करना. करगिल युद्ध के दौरान गांव के दो सगे भाईयों ने शहादत दी थी, जिसके बाद उनके बेटे भी सेना में भर्ती होकर सियाचिन में पदस्थ होकर देश की सेवा कर रहे हैं. खास बात ये है कि गांव से 250 से ज्यादा जवान देश की सेवा में और इससे भी ज्यादा सेवानिवृत हो चुके हैं.

समय के साथ भले ही गांव का नाम चंद्रपुर कर दिया गया, लेकिन लोग गांव की पहचान चूंद गांव से रखते हैं. देश को जब-जब जरूरत पड़ी तब-तब सतना जिले के बेटे उठ खड़े हुए. करगिल विजय ऑपरेशन के दौरान देश के लिए शहादत देने वाले जूंद गांव के वीरों को ईटीवी भारत भी नमन करता है.

देश को शहादत देने वाले गांव के लाल

  • सुग्रीव, भारत-चीन युद्ध 1962
  • बद्री प्रसाद, भारत-चीन युद्ध 1962
  • वंशराज सिंह, भारत-चीन युद्ध 1965
  • राम पाल सिंह, भारत-पाक युद्ध 1965
  • दुर्गा प्रसाद, भारत-पाक युद्ध 1971
  • छोटे लाल सिंह, भारत-पाक युद्ध 1971
  • लालजी सिंह (सिपाही) - ऑपरेशन मेघदूत


कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर

  • समर बहादुर सिंह (सिपाही) - चूंद
  • कन्हैया लाल सिंह (नायक) - चूंद
  • बाबूलाल सिंह (नायक) - चूंद

सतना जिले के दूसरे गावं के शहीद होने वाले सपूत

  • केपी कुशवाहा, महुला मेहुती
  • राजेन्द्र सेन, करही मेदनीपुर
  • शिव शंकर प्रसाद पांडेय, कुआं
Intro:एंकर इंट्रो --
सतना जिले का एक ऐसा गांव जिसे शहीदों के नाम पर जाना जाता है । जिले चूंद गांव शहीदों के जुनून देश के लिए प्राण न्योछावर करने का जज्बात, देश के दुश्मनों को खदेडऩे का, सन 1999 में हुए कारगिल युद्ध में देश के जवानों ने पाक दुश्मनों के नापाक इरादों को नास्तेनाबूद कर दांत खट्टे किए और ऑपरेशन विजय पर फतह हासिल की ।कारगिल के युद्ध में सतना के सपूत भी शामिल थे। 26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना के जवानों ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए 'ऑपरेशन विजय' को सफलता पूर्वक अंजाम दिया था ।हालांकि अकेले सतना जिले के पांच जवान बीरगति को प्राप्त हुए ।

Body:Vo 1--
पाकिस्तान से भारतीय सीमा में घुसे घुसपैठियों से युद्ध के दौरान भारत ने 527 से अधिक वीर योद्धाओं की कुर्बानी दी थी । जिसमें सतना के सैकड़ों सपूतों ने योगदान दिया । पांच महानायक ऐसे भी रहे जिन्होंने प्राण न्योछावर कर दिया । कारगिल युद्ध में शहीद हुए रणबांकुरों पर सतनावासियों को गर्व है ।कारगिल दिवस की 17वीं वर्षगांठ पर उन शहीदों को Etv भारत सलाम करता है ।सतना जिले का चूंद गांव प्रदेश में सैनिकों के गांव के नाम से मसहूर हो चुका ।सतना जिले के चूंद गांव में राजपूत समाज के हर जवान सरहद की पहरेदारी के लिए आतुर रहता है ।यहां सेना में जाना हर बच्चे और जवान का लक्ष्य वन चुका ।यहां वर्तमान में 250 से ज्यादा जवान देश की सेवा में है तो इससे ज्यादा लोग सेवानिवृत हो चुके ।कारगिल युद्ध मे इस गांव के दो सगे भाई सहादत प्राप्त कर चुके ।लेकिन जोश इतना के अब दोनो सहीद के पुत्र भी सेना में भर्ती हो गए और सियाचिन में पदस्त है ।

Vo 2--
चूंद गांव की पहचान सैनिकों के गाव के रूप में हो चुकी ,अब गाव का नाम चंद्रपुर कर दिया गया पर लोग चूंद गाव की ही अपनी पहचान मानते है ।दरअसल उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ रियासत के शोमवंशी क्षत्रिय समाज के लोग रीवा रियासत के सुरक्षा में तैनात हुए ।रीवा सोहावल और पन्ना जिले के मध्य में चूंद गाँव मे इनकी वसाहट की गई । पूर्वजो की बारगाथा का अंश आज भी दिख रहा ।यहां के हर बच्चे की ख्वाइश सेना में जाने की होती है ।यही वजह है कि राजवंश के बाद देश की सुरक्षा के लिए बनी सेना में इस गाव के लोग बड़ी संख्या में भर्ती होने लगे ।अब तक इस गाव में पांच सौ के लगभग जवान सेना में सेवा दिया ।कारगिल युद्ध मे समर बहादुर सिंह (सिपाही), कन्हैया लाल सिंह (नायक) व बाबूलाल सिंह (नायक) के जज्बे की कहानी आज भी गांव के लोग सुनाते हैं ।इस गांव को सैनिकों का गांव भी कहा जाता है ।ढाई सौ घर वाले लगभग 3 हजार की आबादी और हर बच्चा सेना में जाना चाहता है ।एक परिवार के कई लोग सेना में है ।कुछ लोग ऐसे भी है जिनके पांच में से तीन तीन वेटे सेना में है ।

Vo 3--
देश की रक्षा के लिए जब-जब कदम आगे बढ़ाने की जरूरत पड़ी है ।सतना वासियों ने कुर्बानी दी है ।हर युद्ध में सतना के सपूतों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया । देश के लिए अपने को बलिदान भी कर दिया, 1962 में चाइना वार,1965 में इंडो-पाक वार,1971 में इंडो-पाक वार, ऑपरेशन मेघदूत,ऑपरेशन रक्षक व ऑपरेशन विजय में चूंद गाव के लालो ने अपनी युद्ध शैली से दुश्मनों के दांत खट्टे किये ।कुछ तो जीवन की अंतिम सांस तक देश रक्षा के लिए दी ।लेकिन उनकी संताने डरी नही बल्कि अब खुद सेना में भर्ती होकर देस सेवा को प्राथमिकता दी ।कारगिल युद्ध मे शहीद समर सिंह व कन्हैया लाल सिंह और छोटेलाल सिंह के बेटे भारतीय सेना के अंग हैं ।

Conclusion:Vo 4 --
सतना जिले में देश की रक्षा में प्राण नौक्षावर करने वाले जवानों की लंबी फिहरिस्त है ।
सुग्रीव (सिपाही) - इंडो-चाइना वार 1962,
बद्री प्रसाद (सिपाही) -इंडो-चाइना वार 1962,
वंशराज सिंह (सिपाही) - इंडो-पाक वार 1965,
राम पाल सिंह (सिपाही) - इंडोपाक वार 1965,
दुर्गा प्रसाद (सिपाही) - इंडो-पाक वार 1971,
छोटे लाल सिंह (सिपाही) - इंडो- पाक वार 1971,
लालजी सिंह (सिपाही) - ऑपरेशन मेघदूत,
जबकि कारगिल के वीर शहीदो में,
समर बहादुर सिंह (सिपाही) - चूंद,
कन्हैया लाल सिंह (नायक) - चूंद,
बाबूलाल सिंह (नायक) - चूंद, बीरगति को प्राप्त हो चुके तो वही सतना के,
केपी कुशवाहा (गनर) - महुला मेहुती,
राजेन्द्र सेन (सिपाही) - करही मेदनीपुर,
शिव शंकर प्रसाद पांडेय (सिपाही) - कुआं,
सतना ने कारगिल युद्ध मे सहादत दी । इन गांवों की पहचान शाहिद के नाम से अब होने लगी और हर कोई इनके बहादुरी के किस्से सीना तान के सुनता है ।चूंद गाव में खुली सरस्वती स्कूल के वर्तमान में 36 छात्र सेना में है ।प्राचार्य भी अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है ।



Byte 1--
महावली सिंह -- जवान के पिता

Byte 2--
धीरेन्द्र सिंह -- पूर्व सैनिक ।

Byte 3--
नीलेश सिंह -- ग्रामीण ।

Byte 4--
प्रियंका सिंह --शहीद कन्हैया लाल सिंह की पुत्री ।

Byte --
नंथू लाल सिंह -- प्राचार्य सरस्वती स्कूल चूंद ।
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