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‘तम्बूरा तान ले बंदे’ डॉक्यूमेंट्री को दादा साहेब फाल्के फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का अवार्ड - सागर डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय

सागर के डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के EMMRC विभाग की डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘तम्बूरा तान ले बंदे’ को 13वें दादा साहेब फाल्के फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के अवार्ड से नवाजा गया है.

sagar dr harisingh gour university documentary won
सागर डॉ हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी की डॉक्यूमेंट्री ने जीता अवॉर्ड
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Published : May 2, 2023, 10:28 PM IST

सागर। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के EMMRC विभाग की डॉक्यूमेंट्री को 13वें दादा साहेब फाल्के फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के अवार्ड से नवाजा गया है. फिल्म फेस्टिवल में अलग-अलग कैटेगरी में लगभग 800 फिल्मों के आवेदन आये थे. स्क्रीनिंग के लिए चयनित 300 फिल्मों में से अलग-अलग कैटेगरी में 35 अवार्ड दिए गए, जिसमें सागर विश्वविद्यालय के EMMRC की ‘तम्बूरा तान ले बंदे’ डॉक्यूमेंट्री के निर्माता निर्देशक भरतेश जैन को पुरस्कार मिला है, जो पूरे बुंदेलखंड की लोक संस्कृति और लोक संगीत के लिए गौरव की बात है.

tambura taan le bande documentary won award
तम्बूरा तान ले बंदे डॉक्यूमेंट्री ने जीता अवॉर्ड

विश्वविद्यालय की कुलपति ने दी शुभकामनाएं: कुलपति प्रो.नीलिमा गुप्ता ने इस उपलब्धि पर डॉक्यूमेंट्री के निर्देशक भरतेश जैन और EMMRC के सभी सदस्यों को बधाई देते हुए कहा कि "भविष्य में और भी बड़े लक्ष्य हासिल करें, मेरी शुभकामनाएं हैं." इस अवसर पर निदेशक डॉ. पंकज तिवारी ने केंद्र के सभी सदस्यों के काम की सहृदय प्रशंसा की और बधाई दी. माधव चंद्रा और रिसर्च ऑफिसर राकेश ठाकुर ने बताया कि EMMRC की कई फिल्म और डॉक्यूमेंट्री को अलग-अलग फिल्म समारोह में शामिल किया जा रहा है. निर्देशक भरतेश जैन ने कहा कि इस डॉक्यूमेंट्री में तम्बूरा के माध्यम से सम्पूर्ण लोक संगीत और लोक कलाकारों की बात कही गई है. बुंदेलखंड के लोक संगीत आधारित इस वृतचित्र में समस्त लोकसंगीत की विधाओं को आधार बनाते हुए तम्बूरा गायन को प्रस्तुत किया गया है. जिसके मूल में मनोरंजन के साथ आध्यात्म और संसार मुक्ति का भाव ही दिखाई देता है.

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सागर के कलाकारों को प्राथमिकता: फिल्म की पूरी शूटिंग ऑउट डोर की गई है, जिसमें सागार के आसपास की लोकेशन को प्राथमिकता दी गई. स्थानीय लोक कलाकारों के साथ स्थापित लोक कलाकार शिव रतन यादव और रंगमंच और सिने कलाकार रवींद्र दुबे (कक्का) द्वारा भी काम किया गया है. शूटिंग के काम में विभागीय कैमरामैन शिवकान्त सिंह और राजेन्द्र विश्वकर्मा के साथ शिवकान्त साहू ने अपनी प्रतिभा से सहयोग किया और फिल्म को आकर्षक बनाने में ग्राफिक्स आर्टिस्ट विक्रम जीत ने सहयोग किया. पार्श्व स्वर ऋचा तिवारी एवं साउन्ड मिक्सिगं पार्थों घोष का है. फिल्म में तकनीकी काम में विभागीय इंजीनीयर सुनील कुमार सहित महबूब खान, अनंतराम साहू, चन्द्रेश गौहर, सुरेश आश्के, मोहित सेनी, रघुराज सिहं भी शामिल रहे.

सागर। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के EMMRC विभाग की डॉक्यूमेंट्री को 13वें दादा साहेब फाल्के फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के अवार्ड से नवाजा गया है. फिल्म फेस्टिवल में अलग-अलग कैटेगरी में लगभग 800 फिल्मों के आवेदन आये थे. स्क्रीनिंग के लिए चयनित 300 फिल्मों में से अलग-अलग कैटेगरी में 35 अवार्ड दिए गए, जिसमें सागर विश्वविद्यालय के EMMRC की ‘तम्बूरा तान ले बंदे’ डॉक्यूमेंट्री के निर्माता निर्देशक भरतेश जैन को पुरस्कार मिला है, जो पूरे बुंदेलखंड की लोक संस्कृति और लोक संगीत के लिए गौरव की बात है.

tambura taan le bande documentary won award
तम्बूरा तान ले बंदे डॉक्यूमेंट्री ने जीता अवॉर्ड

विश्वविद्यालय की कुलपति ने दी शुभकामनाएं: कुलपति प्रो.नीलिमा गुप्ता ने इस उपलब्धि पर डॉक्यूमेंट्री के निर्देशक भरतेश जैन और EMMRC के सभी सदस्यों को बधाई देते हुए कहा कि "भविष्य में और भी बड़े लक्ष्य हासिल करें, मेरी शुभकामनाएं हैं." इस अवसर पर निदेशक डॉ. पंकज तिवारी ने केंद्र के सभी सदस्यों के काम की सहृदय प्रशंसा की और बधाई दी. माधव चंद्रा और रिसर्च ऑफिसर राकेश ठाकुर ने बताया कि EMMRC की कई फिल्म और डॉक्यूमेंट्री को अलग-अलग फिल्म समारोह में शामिल किया जा रहा है. निर्देशक भरतेश जैन ने कहा कि इस डॉक्यूमेंट्री में तम्बूरा के माध्यम से सम्पूर्ण लोक संगीत और लोक कलाकारों की बात कही गई है. बुंदेलखंड के लोक संगीत आधारित इस वृतचित्र में समस्त लोकसंगीत की विधाओं को आधार बनाते हुए तम्बूरा गायन को प्रस्तुत किया गया है. जिसके मूल में मनोरंजन के साथ आध्यात्म और संसार मुक्ति का भाव ही दिखाई देता है.

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सागर के कलाकारों को प्राथमिकता: फिल्म की पूरी शूटिंग ऑउट डोर की गई है, जिसमें सागार के आसपास की लोकेशन को प्राथमिकता दी गई. स्थानीय लोक कलाकारों के साथ स्थापित लोक कलाकार शिव रतन यादव और रंगमंच और सिने कलाकार रवींद्र दुबे (कक्का) द्वारा भी काम किया गया है. शूटिंग के काम में विभागीय कैमरामैन शिवकान्त सिंह और राजेन्द्र विश्वकर्मा के साथ शिवकान्त साहू ने अपनी प्रतिभा से सहयोग किया और फिल्म को आकर्षक बनाने में ग्राफिक्स आर्टिस्ट विक्रम जीत ने सहयोग किया. पार्श्व स्वर ऋचा तिवारी एवं साउन्ड मिक्सिगं पार्थों घोष का है. फिल्म में तकनीकी काम में विभागीय इंजीनीयर सुनील कुमार सहित महबूब खान, अनंतराम साहू, चन्द्रेश गौहर, सुरेश आश्के, मोहित सेनी, रघुराज सिहं भी शामिल रहे.

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