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सागर में बसी है समृद्ध संस्कृति, बोली और पंरपरा के लिए मशहूर बुंदेलखंड की विरासत, जानें गौर नगरी का इतिहास - heart of bundelkhand

1 नवंबर 2020 देश भर में मध्य प्रेदश के 65वें स्थापना दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. मध्य प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा बुंदेलखंड में आता है. सागर जिला भी बुंदेलखंड में शामिल हैं, जो कि आज तक बुंदेलखंडी संस्कृति को संजोए हुए हैं. जानें क्यों बुंदेलखंड का ह्रदय कहा जाता है सागर? पढ़ें पूरी खबर..

bundelkhand tradition
बुंदेलखंड का ह्रदय सागर
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Published : Nov 1, 2020, 6:23 PM IST

सागर। बुंदेलखंड का नाम उसके समृद्ध इतिहास, मधुर बोली, संस्कृति की सुंदरता और लोकगीतों- लोकनृत्यों के लिए देशभर में प्रसिद्ध है. बुंदेलखंड भारत का ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है, जहां न सिर्फ संरचनात्मक बल्कि एकता और सामाजिकता का आधार भी एक ही है. यही वजह है कि बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग कई बार उठती रही है. बुंदेलखंड में ही आता है मध्यप्रदेश का सागर जिला जो कि बुंदेलखंड के ह्रदय के नाम से मशहूर है.

क्यों बुंदेलखंड का ह्रदय कहा जाता है सागर?

क्या है बुंदेलखंड का भूगोल

1 नवंबर 2020 देश भर में मध्य प्रेदश के 65वें स्थापना दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. बुंदेलखंड में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं. वर्तमान भौतिक शोधों के आधार पर बुंदेलखंड को एक भौतिक क्षेत्र घोषित किया गया है, जिसकी सीमाएं उत्तर में यमुना, दक्षिण में विंध्य प्लेटो की श्रेणियों तक हैं. बुंदेलखंड उत्तर पश्चिम में चंबल और दक्षिण पूर्व में पन्ना अजयगढ़ श्रेणियों से घिरा हुआ है. बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा और महोबा जिले आते हैं. वहीं मध्य प्रदेश के सागर, दमोह, टीकमगढ़, निमाड़ी, छतरपुर, पन्ना, दतिया के अलावा भिंड जिले के लहार और ग्वालियर जिले की मंडी तहसील शामिल हैं. साथ ही रायसेन और विदिशा जिले का कुछ हिस्सा भी शामिल बुंदेलखंड में शामिल हैं.

ये भी पढ़ें- मध्यप्रदेश स्थापना दिवस: विविधताओं से लबरेज है देश का दिल, दिखती है संपूर्ण भारत की झलक

बुंदेलखंड का ह्रदय 'सागर'

बुंदेलखंड के प्रसिद्ध नगरों में एक है सागर, जो कि संभागीय मुख्यालय है. सागर संभाग के सभी 6 जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, निमाड़ी और मुख्यालय सागर बुंदेलखंड का हिस्सा हैं. सागर को बुंदेलखंड का ह्रदय कहे तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. यहां न सिर्फ बुंदेलखंड कि शौर्य संस्कृति और विरासत बसी हुई है, बल्कि इस भूमि ने देश-विदेश तक बुंदेली संस्कृति को पहुंचाया है. सागर की माटी जहां कवि पद्माकर की जन्मस्थली है तो वहीं महान विद्वान दानवीर डॉ हरिसिंह गौर का भी यहां बचपन से नाता रहा है. यही वजह है कि गौर नगरी के नाम से भी सागर जाना जाता है.

जानें बुंदेलखंड के बारे में

ये भी पढ़ें- बुंदेलखंड का कैलाश है भगवान भोलेनाथ का यह धाम, जहां होता है आस्था और भक्ति का अनूठा संगम

सागर का इतिहास

  • सागर शहर का इतिहास करीब 1600 ईसवी पुराना बताया जाता है. कहा जाता है कि सागर में उड़ान शाह जो कि निहाल सिंह के वंशज थे, उन्होंने एक छोटा सा किला बनवाया था.
  • उड़ान शाह ने जो किला बनवाया था, उसे परकोटा कहा जाता था, जोकि आज भी शहर के बीचों-बीच मौजूद हैं. वहीं से पुराने शहर की बसावट की शुरुआत हुई है.
  • बाद में यहां गोविंदराव पंडित (पेशवा के अधिकारी) ने कई दूसरे निर्माण कराए, उस वक्त सागर पर पेशवा का शासन था.
  • 1818 में जिले के ज्यादा से ज्यादा हिस्सा पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों को सौंप दिया था, जबकि वर्तमान जिले के बाकी के अलग-अलग हिस्सों पर 1818 और 1860 के बीच अलग-अलग समय पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था.
  • 1861 में सागर और नर्मदा प्रदेशों को नागपुर राज्य के हिस्से के रूप में गठित किया गया. कुछ वक्त के लिए अंग्रेजी हुकूमत में यह कमिश्नरी का मुख्यालय भी रहा. 1863-64 में इसे जबलपुर संभाग में मिला लिया गया.
  • 1932 में दमोह को सागर जिले में जोड़ दिया गया. बाद में इसे अलग से जिला बनाया गया. उस समय सागर में सिर्फ चार तहसीलें थी जो कि सागर, खुरई, रहली और बंडा के रूप में थी.
    bundelkhand tradition
    बुंदेलखंड़ी लोकनृत्य

ये भी पढ़ें- मध्यप्रदेश के 65 साल, कृषि क्षेत्र में हुआ विकास, औद्योगिक क्रांति में पिछड़ा

क्यों कहते हैं गौर नगरी?

सागर की पहचान के रूप में एक बड़ी भूमिका डॉ. हरिसिंह गौर की है. बताया जाता है कि डॉ. हरिसिंह गौर जो कि मूलत: सागर के थे. उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई से सागर के लिए सागर में यूनिवर्सिटि की स्थापना की, जिसका नाम भी डॉ. हरिसिंह गौर के नाम पर है, जिसने न सिर्फ देश को अनगिनत विद्वान दिए बल्कि यहां के कला संकाय के छात्रों ने बुंदेली परंपरा, लोकगीत, लोकनृत्य को देश-दुनिया में सम्मान दिलाया है.

2009 के बाद डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. इस विश्वविद्यालय ने टेलीविजन, बॉलीवुड और न्यूज चैनल को भी कई प्रतिभाएं दी हैं. फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा, मुकेश तिवारी, गोविंद नामदेव और कई बॉलीवुड की हस्तियां यहीं की देन हैं.

Rahatgarh Fort
राहतगढ़ का किला

ये भी पढ़ें- बुंदेलखंड की गौरवगाथा का बखान करता राहतगढ़ का किला, आज भी पर्यटकों के लिए है आकर्षण का केंद्र

बुंदेलखंड पर पुस्तक

डॉक्टर नर्मदा प्रसाद गुप्त ने 'बुंदेलखंड की लोक संस्कृति' नाम की एक पुस्तक लिखी है, जिसमें बुंदेलखंड का इतिहास लिखा है. उन्होंने लिखा है कि अतीत में बुंदेलखंड शबर कोल किरात पुलिंद, और निषादों का प्रदेश था. आर्यों के मध्य प्रदेश में आने पर जनजातियों ने प्रतिरोध किया था. वैदिक काल से बुंदेलों के शासनकाल तक 2000 सालों में इस प्रदेश में अनेक जातियों और राजवंश ने शासन किया और अपनी सामाजिक सांस्कृतिक चेतना से इन जातियों के मूल संस्कारों को प्रभावित किया. विभिन्न शासकों में मौर्य, सुंग, शक, हूण, कृषाण, नाग, वाकाटक, गुप्त, कलचुरी, चंदेल, खंगार, लोधी, बुंदेला, मराठा और अंग्रेज मुख्य हैं.

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बुंदेलखंड के प्रमुख नृत्य

बुंदेलखंड की संस्कृति को दर्शाते हुए यहां के लोक नृत्य में मुख्य रूप से नौरता, बधाई, राई और बरेदी नृत्य प्रसिद्ध हैं. बधाई नृत्य, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है बधाई नृत्य किसी उत्सव या खुशी के पल में किया जाने वाला नृत्य है जबकि बरेदी नृत्य ग्वालों यानी गोवंश के पालक यदुवंशी होते हैं, वे दिवाली के बाद करते हैं, जिसमें वे कृष्ण का वेश धर उन घरों में जाते हैं जहां की गाय चराने ले जाते हैं. वे घरों में जाकरक बरेदी नृत्य कर शुभकामनाएं देते हैं.

Rural perspective
ग्रामीण परिप्रेक्ष्य

बुंदेलखंड के प्रमुख व्यंजन

हर क्षेत्र का अपना अलग स्वाद होता है. बुंदेलखंड के व्यंजन यहां कि परंपराओं को और स्वादिष्ट बना देते हैं. जैसे सागर के प्रसिद्ध व्यंजनों में महेरी, डुबरी, लपटा, कोदो की खीर, लबदो, शीरा शामिल हैं जो कि परंपरागत है. लेकिन यह ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में ही खाए जाते हैं. इसके अलावा भरता बाटी भी यहां लगभग हर घर में पसंद किया जाने वाला क्षेत्रीय व्यंजन है.

ये भी पढ़ें- देसी ठंडा जो भगाए गर्मी और बनाए स्वस्थ, बुंदेलखंड के देसी पेय के आगे नामी कोल्ड ड्रिंक्स भी पस्त

प्रसिद्ध क्षेत्र

बुंदेलखंड कि ऐतिहासिक और धार्मिक समृद्धता को दर्शाते हुए यहां बहुत से किले और प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें प्रमुख रूप से गढ़पहरा का किला, प्राचीन हनुमान मंदिर, राहतगढ़ का किला, एरन, रानगिर का देवी मंदिर, ज्वाला देवी का मंदिर, राहतगढ़ का बनेनी घाट का शिव मंदिर सहित सैकड़ों प्राचीन मंदिर और किले के अवशेष हैं.

ये भी पढ़ें- बुंदेलखंड के आइलैंड में इन दिनों पर्यटकों की कमी, डूबते हुए सूरज को देखने पहुंचते हैं लोग

वैसे तो सागर में कोई बड़े उद्योग नहीं है. लेकिन 2011 में सागर के बीना तहसील में ओमान सरकार के सहयोग से भारत-ओमान ऑयल रिफायनरी की स्थापना की गई. वर्तमान में सागर का चयन देश के 100 स्मार्ट शहरों में हो चुका है.

ये भी पढ़ें- राम मंदिर भूमिपूजन: दुल्हन की तरह सजेगी 'बुंदेलखंड की अयोध्या', यहीं से अपनी सत्ता चलाते हैं राजाराम

सागर। बुंदेलखंड का नाम उसके समृद्ध इतिहास, मधुर बोली, संस्कृति की सुंदरता और लोकगीतों- लोकनृत्यों के लिए देशभर में प्रसिद्ध है. बुंदेलखंड भारत का ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है, जहां न सिर्फ संरचनात्मक बल्कि एकता और सामाजिकता का आधार भी एक ही है. यही वजह है कि बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग कई बार उठती रही है. बुंदेलखंड में ही आता है मध्यप्रदेश का सागर जिला जो कि बुंदेलखंड के ह्रदय के नाम से मशहूर है.

क्यों बुंदेलखंड का ह्रदय कहा जाता है सागर?

क्या है बुंदेलखंड का भूगोल

1 नवंबर 2020 देश भर में मध्य प्रेदश के 65वें स्थापना दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. बुंदेलखंड में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं. वर्तमान भौतिक शोधों के आधार पर बुंदेलखंड को एक भौतिक क्षेत्र घोषित किया गया है, जिसकी सीमाएं उत्तर में यमुना, दक्षिण में विंध्य प्लेटो की श्रेणियों तक हैं. बुंदेलखंड उत्तर पश्चिम में चंबल और दक्षिण पूर्व में पन्ना अजयगढ़ श्रेणियों से घिरा हुआ है. बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा और महोबा जिले आते हैं. वहीं मध्य प्रदेश के सागर, दमोह, टीकमगढ़, निमाड़ी, छतरपुर, पन्ना, दतिया के अलावा भिंड जिले के लहार और ग्वालियर जिले की मंडी तहसील शामिल हैं. साथ ही रायसेन और विदिशा जिले का कुछ हिस्सा भी शामिल बुंदेलखंड में शामिल हैं.

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बुंदेलखंड का ह्रदय 'सागर'

बुंदेलखंड के प्रसिद्ध नगरों में एक है सागर, जो कि संभागीय मुख्यालय है. सागर संभाग के सभी 6 जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, निमाड़ी और मुख्यालय सागर बुंदेलखंड का हिस्सा हैं. सागर को बुंदेलखंड का ह्रदय कहे तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. यहां न सिर्फ बुंदेलखंड कि शौर्य संस्कृति और विरासत बसी हुई है, बल्कि इस भूमि ने देश-विदेश तक बुंदेली संस्कृति को पहुंचाया है. सागर की माटी जहां कवि पद्माकर की जन्मस्थली है तो वहीं महान विद्वान दानवीर डॉ हरिसिंह गौर का भी यहां बचपन से नाता रहा है. यही वजह है कि गौर नगरी के नाम से भी सागर जाना जाता है.

जानें बुंदेलखंड के बारे में

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सागर का इतिहास

  • सागर शहर का इतिहास करीब 1600 ईसवी पुराना बताया जाता है. कहा जाता है कि सागर में उड़ान शाह जो कि निहाल सिंह के वंशज थे, उन्होंने एक छोटा सा किला बनवाया था.
  • उड़ान शाह ने जो किला बनवाया था, उसे परकोटा कहा जाता था, जोकि आज भी शहर के बीचों-बीच मौजूद हैं. वहीं से पुराने शहर की बसावट की शुरुआत हुई है.
  • बाद में यहां गोविंदराव पंडित (पेशवा के अधिकारी) ने कई दूसरे निर्माण कराए, उस वक्त सागर पर पेशवा का शासन था.
  • 1818 में जिले के ज्यादा से ज्यादा हिस्सा पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों को सौंप दिया था, जबकि वर्तमान जिले के बाकी के अलग-अलग हिस्सों पर 1818 और 1860 के बीच अलग-अलग समय पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था.
  • 1861 में सागर और नर्मदा प्रदेशों को नागपुर राज्य के हिस्से के रूप में गठित किया गया. कुछ वक्त के लिए अंग्रेजी हुकूमत में यह कमिश्नरी का मुख्यालय भी रहा. 1863-64 में इसे जबलपुर संभाग में मिला लिया गया.
  • 1932 में दमोह को सागर जिले में जोड़ दिया गया. बाद में इसे अलग से जिला बनाया गया. उस समय सागर में सिर्फ चार तहसीलें थी जो कि सागर, खुरई, रहली और बंडा के रूप में थी.
    bundelkhand tradition
    बुंदेलखंड़ी लोकनृत्य

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क्यों कहते हैं गौर नगरी?

सागर की पहचान के रूप में एक बड़ी भूमिका डॉ. हरिसिंह गौर की है. बताया जाता है कि डॉ. हरिसिंह गौर जो कि मूलत: सागर के थे. उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई से सागर के लिए सागर में यूनिवर्सिटि की स्थापना की, जिसका नाम भी डॉ. हरिसिंह गौर के नाम पर है, जिसने न सिर्फ देश को अनगिनत विद्वान दिए बल्कि यहां के कला संकाय के छात्रों ने बुंदेली परंपरा, लोकगीत, लोकनृत्य को देश-दुनिया में सम्मान दिलाया है.

2009 के बाद डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. इस विश्वविद्यालय ने टेलीविजन, बॉलीवुड और न्यूज चैनल को भी कई प्रतिभाएं दी हैं. फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा, मुकेश तिवारी, गोविंद नामदेव और कई बॉलीवुड की हस्तियां यहीं की देन हैं.

Rahatgarh Fort
राहतगढ़ का किला

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बुंदेलखंड पर पुस्तक

डॉक्टर नर्मदा प्रसाद गुप्त ने 'बुंदेलखंड की लोक संस्कृति' नाम की एक पुस्तक लिखी है, जिसमें बुंदेलखंड का इतिहास लिखा है. उन्होंने लिखा है कि अतीत में बुंदेलखंड शबर कोल किरात पुलिंद, और निषादों का प्रदेश था. आर्यों के मध्य प्रदेश में आने पर जनजातियों ने प्रतिरोध किया था. वैदिक काल से बुंदेलों के शासनकाल तक 2000 सालों में इस प्रदेश में अनेक जातियों और राजवंश ने शासन किया और अपनी सामाजिक सांस्कृतिक चेतना से इन जातियों के मूल संस्कारों को प्रभावित किया. विभिन्न शासकों में मौर्य, सुंग, शक, हूण, कृषाण, नाग, वाकाटक, गुप्त, कलचुरी, चंदेल, खंगार, लोधी, बुंदेला, मराठा और अंग्रेज मुख्य हैं.

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बुंदेलखंड के प्रमुख नृत्य

बुंदेलखंड की संस्कृति को दर्शाते हुए यहां के लोक नृत्य में मुख्य रूप से नौरता, बधाई, राई और बरेदी नृत्य प्रसिद्ध हैं. बधाई नृत्य, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है बधाई नृत्य किसी उत्सव या खुशी के पल में किया जाने वाला नृत्य है जबकि बरेदी नृत्य ग्वालों यानी गोवंश के पालक यदुवंशी होते हैं, वे दिवाली के बाद करते हैं, जिसमें वे कृष्ण का वेश धर उन घरों में जाते हैं जहां की गाय चराने ले जाते हैं. वे घरों में जाकरक बरेदी नृत्य कर शुभकामनाएं देते हैं.

Rural perspective
ग्रामीण परिप्रेक्ष्य

बुंदेलखंड के प्रमुख व्यंजन

हर क्षेत्र का अपना अलग स्वाद होता है. बुंदेलखंड के व्यंजन यहां कि परंपराओं को और स्वादिष्ट बना देते हैं. जैसे सागर के प्रसिद्ध व्यंजनों में महेरी, डुबरी, लपटा, कोदो की खीर, लबदो, शीरा शामिल हैं जो कि परंपरागत है. लेकिन यह ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में ही खाए जाते हैं. इसके अलावा भरता बाटी भी यहां लगभग हर घर में पसंद किया जाने वाला क्षेत्रीय व्यंजन है.

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प्रसिद्ध क्षेत्र

बुंदेलखंड कि ऐतिहासिक और धार्मिक समृद्धता को दर्शाते हुए यहां बहुत से किले और प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें प्रमुख रूप से गढ़पहरा का किला, प्राचीन हनुमान मंदिर, राहतगढ़ का किला, एरन, रानगिर का देवी मंदिर, ज्वाला देवी का मंदिर, राहतगढ़ का बनेनी घाट का शिव मंदिर सहित सैकड़ों प्राचीन मंदिर और किले के अवशेष हैं.

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वैसे तो सागर में कोई बड़े उद्योग नहीं है. लेकिन 2011 में सागर के बीना तहसील में ओमान सरकार के सहयोग से भारत-ओमान ऑयल रिफायनरी की स्थापना की गई. वर्तमान में सागर का चयन देश के 100 स्मार्ट शहरों में हो चुका है.

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