सागर (कपिल तिवारी): उनके अनुयायी पूरी दुनिया भर में हैं, कोई उन्हें ओशो कहता है, तो कोई भगवान रजनीश कहता है. एक साधारण व्यक्ति के अपने अनुयायी के लिए भगवान बनने का सफर बड़ा विवादित और रहस्यमयी रहा हो, लेकिन ओशो के बारे में कहा जाता है कि उन्हें ज्ञान की प्राप्ति सागर में पढ़ाई के दौरान एक महुआ के पेड़ पर ध्यान लगाते समय हुई थी.
ये घटना 12 फरवरी 1956 को घटी थी, जिसे सतोरी कहा जाता है. तब ओशो सागर यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र से पीएचडी करने आए थे. तब मौजूदा सागर यूनिवर्सिटी निर्माणाधीन थी और यूनिवर्सिटी का संचालन ब्रिटिश सेना की खाली पड़ी बैरकों में होता था. वहीं पास में हाॅस्टल भी था, जिसमें आचार्य रजनीश रहते थे और पास में बनी पहाड़ी पर एक महुए के पेड़ के नीचे ध्यान करने जाते थे.
आचार्य रजनीश का सागर यूनिवर्सिटी से कनेक्शन
आचार्य रजनीश की वैसे तो ज्यादातर पढ़ाई जबलपुर में हुई. लेकिन वो सागर यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र से पीएचडी करने आए थे. उन्होंने 1956 में सागर यूनिवर्सिटी में एडमीशन लिया था, तब सागर यूनिवर्सिटी शहर के उपनगर मकरोनिया में स्थित बैरकों में लगती थी. हालांकि उस वक्त सागर यूनिवर्सिटी का पूरा देश में जलवा था और यहां के छात्र और शिक्षक देश विदेश में विख्यात थे. उन्हीं में से एक आचार्य रजनीश थे.
कहते हैं कि आचार्य रजनीश सागर यूनिवर्सिटी में अपनी हरकतों के कारण चर्चाओं में रहते थे. वो सूफियाना अंदाज में अंगरखा पहनते थे. छात्र जीवन में भी साधुओं जैसी दाढी रखते थे, शिक्षक मना करते थे, तो घंटो तार्किक बहस करते थे. पैरों में कभी जूते नहीं पहनते थे, हमेशा चप्पल या लकड़ी की पादुका पहनते थे. इस वजह से एक बार तो उनकी कुलपति से भी तीखी बहस हुई थी.
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सतोरी की घटना ने बदला जीवन
आचार्य रजनीश के बारे में कहा जाता है कि उनके जीवनकाल में दो ऐसी घटनाएं घटी हैं, जिन्होंने साधारण व्यक्ति को इस मुकाम तक पहुंचाया. पहली घटना 21 मार्च 1953 को जबलपुर के भंवरताल पार्क में महुआ के पेड़ के नीचे घटी. कहा जाता है कि उन्हें यहां ध्यान करते हुए ज्ञान की प्राप्ति हुई. दूसरी घटना के बारे में ओशो ने खुद अपने प्रवचन और चर्चा में कई बार उल्लेख किया. जो सागर यूनिवर्सटी में पढ़ाई के समय घटी थी. आचार्य रजनीश की बहन नीरू जैन ने खुद उनसे दीक्षा ली थी, जिन्हें आचार्य रजनीश ने मां योगिनी का नाम दिया था.
![RAJNEESH STUDY SAGAR UNIVERSITY](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/12-02-2025/23525583_sdaa.jpg)
नीरू जैन बताती हैं कि, ''सागर में सरोती की घटना का जिक्र कई बार ओशो ने अपने प्रवचनों और उन पर लिखी किताबों में किया है. जब वह पढ़ने यहां आए थे, तो वो महुए के वृक्ष पर बैठकर ध्यान करते थे. जब वो ध्यान कर रहे थे, तो अचानक वो अचेत हो गए और वो बताते थे कि उनकी नाभि से एक चांदी का तार पेड़ से जुड़ा हुआ महसूस हो रहा था. सुबह जब ग्वालिन वहां से निकल रही थी, तो उन्होंने ओशो को देखा और उनके सर पर हाथ रखा, तो वो एकदम होश में आ गए. इसी घटना को सतोरी कहा जाता है.''
![acharya rajneesh family](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/12-02-2025/mp-sgr-02-osho-satori-spl-7208095_11022025211119_1102f_1739288479_88.jpg)
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गुरु भी छूते थे पैर
आचार्य रजनीश के बहनोई कैलाश सिंघई बताते हैं कि, ''1971 में आचार्य रजनीश अपने भाई के यहां वैवाहिक समारोह में आए थे. तो सागर में उनके कई कार्यक्रम आयोजित किए गए थे. शहर के हृदयस्थल तीनबत्ती पर विशाल आमसभा का आयोजन हुआ, जिसमें इतनी भीड़ थी कि पैर रखने तक जगह नहीं थी. इसके बाद वो सागर यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी का भ्रमण करने गए थे. यहां ऐसा वाक्या हुआ कि उनके स्वागत में उनके गुरु VK सक्सेना खडे थे. जैसे ही ओशो गुरु के नजदीक पहुंचे, तो गुरु ने उनके पैर छु लिए. आचार्य रजनीश ने मना किया, लेकिन वो नहीं माने. उन्होंने पैर छूने के बाद कहा कि आज मेरी जन्मों की यात्रा समाप्त हुई, जब आज मैं अपने शिष्य के चरणों में समर्पित हूं. लाइब्रेरी में उन्होंने भ्रमण किया और वहां पर प्रवचन भी दिए.''