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'प्रेम संबंध के बावजूद महिला भरण-पोषण की हकदार', मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का अहम आदेश - JABALPUR HIGH COURT ORDER

एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि पति की कम आय भरण-पोषण से इनकार करने का मानदंड नहीं हो सकती है.

JABALPUR HIGH COURT ORDER WIFE MAINTENANCE CASE
'प्रेम संबंध के बावजूद महिला भरण-पोषण की हकदार' (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 14, 2025, 9:19 PM IST

जबलपुर: हाईकोर्ट जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि यदि पत्नी किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करती है, तब भी भरण-पोषण राशि प्राप्त करने की हकदार है. सीआरपीसी की धारा 125(4) से यह स्पष्ट है कि पत्नी के व्यभिचार में रहना साबित होने पर ही भरण-पोषण राशि से इनकार किया जा सकता है. एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ निर्धारित की गई भरण-पोषण की राशि सही मानते हुए आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया.

पत्नी को भरण-पोषण राशि देने का मामला

इंदौर निवासी अमित कुमार खोडके की तरफ से दायर की गई आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में कहा गया था कि छिंदवाड़ा कुटुम्ब न्यायालय ने अनावेदक पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 125 के तहत 4 हजार रुपये अंतरिम भरण-पोषण राशि प्रदान करने के आदेश जारी किये हैं. याचिकाकर्ता एक निजी अस्पताल में वार्ड बॉय का काम करता है और उसका वेतन आठ हजार रूपये है. न्यायालय के पूर्व में धारा 24 के तहत पारित आदेशानुसार वह 4 हजार रुपये भारण-पोषण की राशि के रूप में अनावेदक पत्नी को प्रदान कर रहा है.

फरियादी ने कोर्ट में पेश की पत्नी की डायरी

आवेदक की तरफ से पत्नी द्वारा लिखी एक डायरी भी कोर्ट में पेश की गई थी. जिसका हवाला देते हुए कहा गया था कि पत्नी के किसी दूसरे व्यक्ति से प्रेम संबंध हैं. इसके अलावा पत्नी ने मरने की बात भी डायरी में लिखी है. एकलपीठ ने डायरी का अवलोकन करने पर पाया कि उसमें इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि पति के द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाता है. इसके अलावा शादी के पूर्व आवेदक तथा उसके परिजनों ने संपत्ति के संबंध में झूठी जानकारी की दी.

हाईकोर्ट ने दिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला

एकलपीठ ने सुनवाई के बाद पाया कि पूर्व में आवेदन के वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए धारा 9 के तहत आवेदन किया था. इसके बाद उसे वापस लेते हुए तलाक के लिए आवेदन दायर किया है. एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत डिक्री पारित होने के बावजूद भी पत्नी भरण-पोषण राशि की हकदार है.

'पति की कम आय भरण-पोषण से इनकार करने का मानदंड नहीं'

हाईकोर्ट जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने कहा कि यह दलील गलत है कि पत्नी का किसी अन्य के साथ प्रेम संबंध है, इसलिए वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है. पति की कम आय भरण-पोषण से इनकार करने का मानदंड नहीं हो सकती है. आवेदक ने यह जानते हुए कि वह अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम नहीं है, इसके बावजूद भी किसी लड़की से विवाह किया है तो इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है. वह सक्षम व्यक्ति है तो उसे भरण-पोषण राशि देने के लिए कुछ कमाना होगा.

हाईकोर्ट ने खारिज की पुनरीक्षण याचिका

हाईकोर्ट जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि "आवेदक का कहना है कि उसके पिता ने उसे संपत्ति से बेदखल कर दिया है. इस संबंध में अखबार में प्रकाशित सार्वजनिक सूचना की प्रति पेश की गई है. वर्तमान याचिका में आवेदक तथा सार्वजनिक सूचना में प्रकाशित पिता का पता एक है. आवेदक अभी भी अपने पिता के साथ रहता है. सार्वजनिक नोटिस सिर्फ दिखावा है, हो सकता है कि पिता ने कानूनी सलाह के आधार ऐसा किया होगा. आवेदक का कहना है कि पत्नी का ब्यूटी पार्लर है,जिससे उसे आय होती है. इस संबंध में आवेदक के द्वारा को दस्तावेज पेश नहीं किये हैं." एकलपीठ ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को हस्तक्षेप अयोग्य बताते हुए खारिज कर दिया.

जबलपुर: हाईकोर्ट जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि यदि पत्नी किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करती है, तब भी भरण-पोषण राशि प्राप्त करने की हकदार है. सीआरपीसी की धारा 125(4) से यह स्पष्ट है कि पत्नी के व्यभिचार में रहना साबित होने पर ही भरण-पोषण राशि से इनकार किया जा सकता है. एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ निर्धारित की गई भरण-पोषण की राशि सही मानते हुए आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया.

पत्नी को भरण-पोषण राशि देने का मामला

इंदौर निवासी अमित कुमार खोडके की तरफ से दायर की गई आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में कहा गया था कि छिंदवाड़ा कुटुम्ब न्यायालय ने अनावेदक पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 125 के तहत 4 हजार रुपये अंतरिम भरण-पोषण राशि प्रदान करने के आदेश जारी किये हैं. याचिकाकर्ता एक निजी अस्पताल में वार्ड बॉय का काम करता है और उसका वेतन आठ हजार रूपये है. न्यायालय के पूर्व में धारा 24 के तहत पारित आदेशानुसार वह 4 हजार रुपये भारण-पोषण की राशि के रूप में अनावेदक पत्नी को प्रदान कर रहा है.

फरियादी ने कोर्ट में पेश की पत्नी की डायरी

आवेदक की तरफ से पत्नी द्वारा लिखी एक डायरी भी कोर्ट में पेश की गई थी. जिसका हवाला देते हुए कहा गया था कि पत्नी के किसी दूसरे व्यक्ति से प्रेम संबंध हैं. इसके अलावा पत्नी ने मरने की बात भी डायरी में लिखी है. एकलपीठ ने डायरी का अवलोकन करने पर पाया कि उसमें इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि पति के द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाता है. इसके अलावा शादी के पूर्व आवेदक तथा उसके परिजनों ने संपत्ति के संबंध में झूठी जानकारी की दी.

हाईकोर्ट ने दिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला

एकलपीठ ने सुनवाई के बाद पाया कि पूर्व में आवेदन के वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए धारा 9 के तहत आवेदन किया था. इसके बाद उसे वापस लेते हुए तलाक के लिए आवेदन दायर किया है. एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत डिक्री पारित होने के बावजूद भी पत्नी भरण-पोषण राशि की हकदार है.

'पति की कम आय भरण-पोषण से इनकार करने का मानदंड नहीं'

हाईकोर्ट जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने कहा कि यह दलील गलत है कि पत्नी का किसी अन्य के साथ प्रेम संबंध है, इसलिए वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है. पति की कम आय भरण-पोषण से इनकार करने का मानदंड नहीं हो सकती है. आवेदक ने यह जानते हुए कि वह अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम नहीं है, इसके बावजूद भी किसी लड़की से विवाह किया है तो इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है. वह सक्षम व्यक्ति है तो उसे भरण-पोषण राशि देने के लिए कुछ कमाना होगा.

हाईकोर्ट ने खारिज की पुनरीक्षण याचिका

हाईकोर्ट जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि "आवेदक का कहना है कि उसके पिता ने उसे संपत्ति से बेदखल कर दिया है. इस संबंध में अखबार में प्रकाशित सार्वजनिक सूचना की प्रति पेश की गई है. वर्तमान याचिका में आवेदक तथा सार्वजनिक सूचना में प्रकाशित पिता का पता एक है. आवेदक अभी भी अपने पिता के साथ रहता है. सार्वजनिक नोटिस सिर्फ दिखावा है, हो सकता है कि पिता ने कानूनी सलाह के आधार ऐसा किया होगा. आवेदक का कहना है कि पत्नी का ब्यूटी पार्लर है,जिससे उसे आय होती है. इस संबंध में आवेदक के द्वारा को दस्तावेज पेश नहीं किये हैं." एकलपीठ ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को हस्तक्षेप अयोग्य बताते हुए खारिज कर दिया.

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