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पूर्व पत्नी के नाम के साथ 'तलाकशुदा' जोड़ना अनुचित, ये मानसिकता को दर्शाता है: JK हाई कोर्ट - JK HIGH COURT

जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने एक शख्स और उसकी पूर्व पत्नी के बच्चे के कस्टडी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान अहम फैसला सुनाया.

JK HIGH COURT
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 15, 2025, 9:08 AM IST

श्रीनगर: एक महत्वपूर्ण फैसले में जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख हाईकोर्ट ने एक विवादास्पद बाल हिरासत विवाद में समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया. साथ ही कानूनी कार्यवाही में तलाकशुदा महिलाओं के नाम के साथ 'तलाकशुदा' शब्द जोड़ने की प्रथा की कड़ी निंदा की.

जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने एक शख्स और उसकी पूर्व पत्नी के बच्चे के कस्टडी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान अहम फैसला सुनाया. इस मामले में जज ने शख्स द्वारा दायर समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया. इसमें अदालत के एक फैसले को पलटने की मांग की गई थी. यह मामला बच्चे के कस्टडी की लड़ाई के इर्द-गिर्द केंद्रित था.

शख्स की समीक्षा याचिका में तर्क दिया गया कि पिछले फैसले ने उनकी अपील को बिना सुनवाई के प्रारंभिक मुद्दे पर विचार किए ही खारिज कर दिया गया था. उन्होंने तर्क दिया कि उनके मामले को केवल अपील की स्वीकार्यता पर बहस के लिए आरक्षित रखा गया था और इसके सार पर बहस नहीं की गई थी.

याचिकाकर्ता ने अपनी पुनर्विचार याचिका में दावा किया, 'इस मामले में अपील की स्वीकार्यता पर बहस की गई और मामले को सुरक्षित रख लिया गया. इस प्रकार, मुख्य अपील पर गुण-दोष के आधार पर बहस नहीं की गई. इस न्यायालय ने अपील की स्वीकार्यता के संबंध में आपत्ति पर निर्णय नहीं किया और इसके बजाय मुख्य अपील पर निर्णय किया, जिस पर गुण-दोष के आधार पर बहस नहीं की गई.'

उन्होंने आगे कहा, 'अपील पर मामले के गुण-दोष के आधार पर बहस किए बिना तथा याचिकाकर्ता के वकील की बात सुने बिना ही निर्णय दे दिया गया, यह तथ्य रिकार्ड और अंतरिम आदेशों से स्पष्ट होता है.' हालांकि, अदालत ने इस दावे का दृढ़ता से खंडन किया और कहा कि अपील पर सुनवाई हो चुकी है. एक जून, 2022 को सुनवाई योग्य होने पर इसे सुरक्षित रखा गया.

यह मामला शख्स के मुलाकात के अधिकार को लेकर विवाद से शुरू हुआ था. ट्रायल कोर्ट ने पहले शख्स को महीने में दो बार अपने बच्चे से मिलने की अनुमति दी थी, लेकिन लेक्चरर के तौर पर नियुक्त की गई मां की ओर से पेश आ रही चुनौतियों के कारण इसमें संशोधन की मांग की गई थी.

अदालत ने अपने फैसले में पुनः पुष्टि की कि 'नाबालिग के हित और कल्याण तथा याचिकाकर्ता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता को प्रत्येक माह के अंतिम शुक्रवार को शाम 3 बजे से 4 बजे तक श्रीनगर स्थित ए.डी.आर. केंद्र में बच्चे से मिलने की अनुमति दी जाएगी.

फैसले में शख्स को बच्चे की शिक्षा का खर्च उठाने और हर मुलाकात के लिए 500 रुपये का परिवहन शुल्क देने का भी आदेश दिया गया. अदालत ने कहा, 'अगर याचिकाकर्ता इन खर्चों को वहन करने में विफल रहता है, तो प्रतिवादी हमेशा भरण-पोषण की वसूली के लिए उचित कानूनी उपाय करने के लिए स्वतंत्र होगा.'

इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि अदालत ने शख्स द्वारा केस के शीर्षक में 'तलाकशुदा' शब्द के इस्तेमाल की निंदा की. इस शख्स ने अपनी पूर्व पत्नी के नाम के साथ 'तलाकशुदा' शब्द जोड़ दिया था. न्यायमूर्ति कौल ने इस प्रथा को 'अनुचित' और खान की मानसिकता को दर्शाता बताया.

जज ने कहा कि यह देखना बहुत दुखद है कि आज भी एक महिला के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है. इन स्थितियों में महिला को 'तलाकशुदा' कह कर संबोधित किया जाता है जैसे कि यह उसका उपनाम या जाति है. ऐसे तो जो पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देता है, उसे भी 'तलाक देने वाला (Divorcer) कहा जाना चाहिए. उसके बाद नाम के साथ 'तलाक देने वाला शब्द जोड़ा जाना चाहिए जो कि एक गलत प्रथा होगी. ऐसी प्रथा को रोका जाना चाहिए. बल्कि ऐसी प्रथा को कुचल दिया जाना चाहिए.

अदालत ने रजिस्ट्रार न्यायिक को निर्देश दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश के समक्ष फैसले को प्रस्तुत करें ताकि एक परिपत्र जारी किया जा सके जिसमें निर्देश दिया गया हो कि किसी भी कानूनी दस्तावेज में महिला के नाम के विरुद्ध 'तलाकशुदा' शब्द शामिल होने पर उसे न तो डायरी में दर्ज किया जाना चाहिए और न ही पंजीकृत किया जाना चाहिए.

न्यायाधीश ने याचिका खारिज करने के अलावा शख्स पर 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे एक महीने के भीतर जमा करना होगा. अदालत ने फैसला सुनाया, 'अगर वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो रजिस्ट्री को इसकी वसूली के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा.

ये भी पढ़ें- कोर्ट में महिला वकीलों का चेहरा ढककर आना नियमों के खिलाफ: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

श्रीनगर: एक महत्वपूर्ण फैसले में जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख हाईकोर्ट ने एक विवादास्पद बाल हिरासत विवाद में समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया. साथ ही कानूनी कार्यवाही में तलाकशुदा महिलाओं के नाम के साथ 'तलाकशुदा' शब्द जोड़ने की प्रथा की कड़ी निंदा की.

जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने एक शख्स और उसकी पूर्व पत्नी के बच्चे के कस्टडी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान अहम फैसला सुनाया. इस मामले में जज ने शख्स द्वारा दायर समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया. इसमें अदालत के एक फैसले को पलटने की मांग की गई थी. यह मामला बच्चे के कस्टडी की लड़ाई के इर्द-गिर्द केंद्रित था.

शख्स की समीक्षा याचिका में तर्क दिया गया कि पिछले फैसले ने उनकी अपील को बिना सुनवाई के प्रारंभिक मुद्दे पर विचार किए ही खारिज कर दिया गया था. उन्होंने तर्क दिया कि उनके मामले को केवल अपील की स्वीकार्यता पर बहस के लिए आरक्षित रखा गया था और इसके सार पर बहस नहीं की गई थी.

याचिकाकर्ता ने अपनी पुनर्विचार याचिका में दावा किया, 'इस मामले में अपील की स्वीकार्यता पर बहस की गई और मामले को सुरक्षित रख लिया गया. इस प्रकार, मुख्य अपील पर गुण-दोष के आधार पर बहस नहीं की गई. इस न्यायालय ने अपील की स्वीकार्यता के संबंध में आपत्ति पर निर्णय नहीं किया और इसके बजाय मुख्य अपील पर निर्णय किया, जिस पर गुण-दोष के आधार पर बहस नहीं की गई.'

उन्होंने आगे कहा, 'अपील पर मामले के गुण-दोष के आधार पर बहस किए बिना तथा याचिकाकर्ता के वकील की बात सुने बिना ही निर्णय दे दिया गया, यह तथ्य रिकार्ड और अंतरिम आदेशों से स्पष्ट होता है.' हालांकि, अदालत ने इस दावे का दृढ़ता से खंडन किया और कहा कि अपील पर सुनवाई हो चुकी है. एक जून, 2022 को सुनवाई योग्य होने पर इसे सुरक्षित रखा गया.

यह मामला शख्स के मुलाकात के अधिकार को लेकर विवाद से शुरू हुआ था. ट्रायल कोर्ट ने पहले शख्स को महीने में दो बार अपने बच्चे से मिलने की अनुमति दी थी, लेकिन लेक्चरर के तौर पर नियुक्त की गई मां की ओर से पेश आ रही चुनौतियों के कारण इसमें संशोधन की मांग की गई थी.

अदालत ने अपने फैसले में पुनः पुष्टि की कि 'नाबालिग के हित और कल्याण तथा याचिकाकर्ता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता को प्रत्येक माह के अंतिम शुक्रवार को शाम 3 बजे से 4 बजे तक श्रीनगर स्थित ए.डी.आर. केंद्र में बच्चे से मिलने की अनुमति दी जाएगी.

फैसले में शख्स को बच्चे की शिक्षा का खर्च उठाने और हर मुलाकात के लिए 500 रुपये का परिवहन शुल्क देने का भी आदेश दिया गया. अदालत ने कहा, 'अगर याचिकाकर्ता इन खर्चों को वहन करने में विफल रहता है, तो प्रतिवादी हमेशा भरण-पोषण की वसूली के लिए उचित कानूनी उपाय करने के लिए स्वतंत्र होगा.'

इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि अदालत ने शख्स द्वारा केस के शीर्षक में 'तलाकशुदा' शब्द के इस्तेमाल की निंदा की. इस शख्स ने अपनी पूर्व पत्नी के नाम के साथ 'तलाकशुदा' शब्द जोड़ दिया था. न्यायमूर्ति कौल ने इस प्रथा को 'अनुचित' और खान की मानसिकता को दर्शाता बताया.

जज ने कहा कि यह देखना बहुत दुखद है कि आज भी एक महिला के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है. इन स्थितियों में महिला को 'तलाकशुदा' कह कर संबोधित किया जाता है जैसे कि यह उसका उपनाम या जाति है. ऐसे तो जो पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देता है, उसे भी 'तलाक देने वाला (Divorcer) कहा जाना चाहिए. उसके बाद नाम के साथ 'तलाक देने वाला शब्द जोड़ा जाना चाहिए जो कि एक गलत प्रथा होगी. ऐसी प्रथा को रोका जाना चाहिए. बल्कि ऐसी प्रथा को कुचल दिया जाना चाहिए.

अदालत ने रजिस्ट्रार न्यायिक को निर्देश दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश के समक्ष फैसले को प्रस्तुत करें ताकि एक परिपत्र जारी किया जा सके जिसमें निर्देश दिया गया हो कि किसी भी कानूनी दस्तावेज में महिला के नाम के विरुद्ध 'तलाकशुदा' शब्द शामिल होने पर उसे न तो डायरी में दर्ज किया जाना चाहिए और न ही पंजीकृत किया जाना चाहिए.

न्यायाधीश ने याचिका खारिज करने के अलावा शख्स पर 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे एक महीने के भीतर जमा करना होगा. अदालत ने फैसला सुनाया, 'अगर वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो रजिस्ट्री को इसकी वसूली के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा.

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