रीवा। प्रदेश के सबसे बड़े आम अनुसंधान केन्द्र में मशहूर सैकड़ों आम की प्रजातिया पाई जाती हैं, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते यहां के आम लोगों के मुंह का स्वाद नहीं बना पा रहे हैं. यहां से आम हर साल विदेशों में भी आम भेजे जाते थे. हालांकि इस बार आम का निर्यात नहीं होने के चलते खेती करने वालों को काफी नुकसान हो रहा है. लॉकडाउन के चलते यहां के एक मशहूर 'जर्दालु' आम का नाम ही 'लॉकडाउन' रख दिया गया है.
रीवा के कुठूलिया स्थित अनुसंधान केंद्र में 150 प्रजातिओं के आम पाए जाते हैं. इन सभी आमों की अपनी अलग-अलग खासियत है. आम के राजा 'सुन्दरजा' को उसकी खूबसूरती के चलते सुन्दरजा नाम दिया गया है.
वहीं मुगल सम्राट जहांगीर के नाम पर जहांगीर और उनकी बेगम का बेगम पंसद व खा-ए-खासुल और ब्रिटिस वीके चांसलर के नाम पर एक आ्म का नाम 'एव्रिग' नाम दिया गया है. वहीं कई राजा महाराजाओं के नाम पर भी यहां आम के पेड़ मौजूद हैं, जिसमें रीवा रियासत के महाराज मार्तण्ड सिंह, गुलाब सिंह के नाम पर 'गुलाब भोग' मशहूर है. इतना ही नहीं विंध्य के मशहूर युद्ध के नाम पर 'चैसा' प्रमुख है.
इसके अलावा आम खास, दशहरी, बंगलोरा, आम्रपाली, सिंधु आपस, लगड़ा जैसे कई खास 'प्रजातियों के आम मौजूद हैं. लॉक डाउन में आमों की बिक्री कम होने के चलते 'जर्दालु' नाम से मशहूर आम का नाम ही 'लॉकडाउन' रख दिया गया है. लगभग 60 एकड़ में फैला यह उद्यान प्रदेश का सबसे बड़ा आम अनुसंधान केन्द्र है, यहां वैज्ञानिक परीक्षण कर आम की नई नसलें तैयार करते हैं, जो देश के कोने-कोने में अपनी खासियत और मिठास के लिए मशहूर हुई हैं. सागौन के जंगल और तीनों ओर से नदी के घिरे होने के चलते कुठुलिया में आम की बेहतर प्रजातियां आसानी से तैयार होती हैं.
प्रदेश का सबसे बड़ा अनुसंधान केंद्र होने से इसकी देखरेख करने में बहुत कठिनाईयां होती हैं. इस बार आम की पैदावार तो अच्छी हुई है, लेकिन कोरोना वायरस का असर इन आमों की बिक्री पर भी पड़ा है, जो आम कभी देश-विदेश में लोगों के मुंह का स्वाद बना करता थे और उनकी काफी मांग होती थी, वो इस बार बिक्री के लिए कहीं बाहर नहीं जा पा रहे हैं.