मुरैना। जिले के कोने-कोने में शिव संस्कृति की पुरातन और महत्वपूर्ण संपदा बिखरी पड़ी है. चाहे पोरसा छोर पर स्थित भगवान शिव का कुलेश्वर मंदिर हो, या दूसरी तरफ पहाड़गढ़ के जंगलों में स्थित ईश्वरा महादेव मंदिर या फिर मध्य में ककनमठ शिव मंदिर, चौसठ योगिनी शिव मंदिर, बटेश्वर शिव मंदिर या नरेश्वर मंदिरों की श्रृंखला हो, हर जगह भगवान शिव की आराधना के केंद्र होने के सबूत आज भी विद्यमान हैं. जिन्हें संजोकर रखना भी मुश्किल हो रहा है.
यही कारण है कि, मुरैना जिले की सांस्कृतिक धरोहरों के पीछे लंबे समय से मूर्ति तस्करों की नजर रही है. ऐसा ही एक विशालकाय शिवलिंग है, जिसे वर्ष 2008 में तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी आकाश त्रिपाठी, एसपी हरि सिंह यादव के नेतृत्व वाले दल ने तस्करों से छुड़ाया था.
यह विशालकाय शिवलिंग 11वीं शताब्दी का बताया जाता है. इस शिवलिंग की विशेषता ये है कि, इसमें सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा, सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु और सृष्टि के रक्षक भगवान शिव के स्वरूपों के दर्शन होते हैं. ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आकृति की विशेषताओं वाले शिवलिंग को पुरातत्व विभाग ने ऐंती पर्वत स्थित जंगलों से लाकर जिला पुरातत्व संग्रहालय परिसर में स्थापित किया है. इस शिवलिंग की विशेषता है कि, जो भी भक्त आराधना कर प्रदक्षिणा करता है उसकी मनोकामना 11 दिन में पूरी हो जाती है.
तस्करों से बचाकर लाए गए 11वीं शताब्दी के विशेष शिवलिंग को जिला मुख्यालय पर स्थित पुरातत्व संग्रहालय में स्थापित किया गया है. इस शिवलिंग की लंबाई लगभग 9 फीट से अधिक है, जिसे सीमेंट कंक्रीट के प्लेटफार्म में 3 फीट जमीन के अंदर दबाया गया है, तो लगभग 6 फीट जमीन के ऊपर है. इस शिवलिंग का व्यास 4 से 5 फीट है.