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ऐतिहासिक नूराबाद पुल देख रेख के अभाव में हो रहा जर्जर - मुगलकालीन पुल देखरेख के अभाव में जर्जर

मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित 14वीं शताब्दी में बना मुगलकालीन पुल देखरेख के अभाव में जर्जर होता जा रहा है, जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

Nurabad bridge
नूराबाद पुल
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Published : Jun 9, 2020, 9:14 PM IST

मुरैना। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित 14वीं शताब्दी का मुगलकालीन पुल देखरेख के अभाव में जर्जर होता जा रहा है. NH 3 पर बना पुल जिले के पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसे देश भर में एक विशेष पहचान मिली है.

नूराबाद पुल

जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर नूराबाद के पास सहायक नदी पर मुगल राजाओं ने सेना के आवागमन की दृष्टि को ध्यान में रखते हुए पुल का निर्माण कराया था. पुल के खंभों की संरचना भी सुंदर और आकर्षक है. साथ ही गुणवत्ता की दृष्टि से देखा जाए तो करीब 500 साल बीतने के बाद भी ये पुल मजबूत स्थिति में खड़ा है. जिस पर कुछ समय पहले तक भारी वाहनों का आवागमन होता था, लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बाद बनाए गए नए पुलों के कारण इस पुल से आवागमन प्रतिबंधित कर दिया गया, जिसे अब पर्यटन की दृष्टि से मध्य प्रदेश इको टूरिज्म डिपार्टमेंट ने संरक्षित किया है.

मध्यप्रदेश टूरिज्म एक दशक पूर्व सांक नदी पर बने पुल को संरक्षित कर पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन मौजूदा समय में न केवल झाड़ियां, बरगद और पीपल जैसे विशालकाय वृक्ष भी होने लगे हैं. जो पूरे पुल को कभी भी नष्ट कर सकते हैं. इसके बावजूद पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

जहांगीर एवं नूरजहां के समय में इस गांव का नाम नूराबाद रखा गया था, मुगल बादशाह जहांगीर ने इस गांव के पास सांक नदी पर पुल का निर्माण कराया था, जिसमें सात मेहराबें तैयार की गई थीं, ये मेहराबें लगभग छह मीटर ऊंची हैं और पांच मीटर चौड़ी हैं.

मुरैना। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित 14वीं शताब्दी का मुगलकालीन पुल देखरेख के अभाव में जर्जर होता जा रहा है. NH 3 पर बना पुल जिले के पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसे देश भर में एक विशेष पहचान मिली है.

नूराबाद पुल

जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर नूराबाद के पास सहायक नदी पर मुगल राजाओं ने सेना के आवागमन की दृष्टि को ध्यान में रखते हुए पुल का निर्माण कराया था. पुल के खंभों की संरचना भी सुंदर और आकर्षक है. साथ ही गुणवत्ता की दृष्टि से देखा जाए तो करीब 500 साल बीतने के बाद भी ये पुल मजबूत स्थिति में खड़ा है. जिस पर कुछ समय पहले तक भारी वाहनों का आवागमन होता था, लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बाद बनाए गए नए पुलों के कारण इस पुल से आवागमन प्रतिबंधित कर दिया गया, जिसे अब पर्यटन की दृष्टि से मध्य प्रदेश इको टूरिज्म डिपार्टमेंट ने संरक्षित किया है.

मध्यप्रदेश टूरिज्म एक दशक पूर्व सांक नदी पर बने पुल को संरक्षित कर पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन मौजूदा समय में न केवल झाड़ियां, बरगद और पीपल जैसे विशालकाय वृक्ष भी होने लगे हैं. जो पूरे पुल को कभी भी नष्ट कर सकते हैं. इसके बावजूद पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

जहांगीर एवं नूरजहां के समय में इस गांव का नाम नूराबाद रखा गया था, मुगल बादशाह जहांगीर ने इस गांव के पास सांक नदी पर पुल का निर्माण कराया था, जिसमें सात मेहराबें तैयार की गई थीं, ये मेहराबें लगभग छह मीटर ऊंची हैं और पांच मीटर चौड़ी हैं.

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