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मालवा के किसानों पर छा रही नए किस्म की 'चांदी' की दीवानगी

औषधि और सुगंधित फसलों के उत्पादन के लिए देश भर में मशहूर मंदसौर के किसान देसी किस्म से मुंह फेर नई किस्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं.

ooty garlic
ऊटी लहसुन
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Published : Aug 26, 2020, 1:27 PM IST

मंदसौर। काला सोना यानी अफीम की पैदावार के लिए ख्यात मंदसौर जिले में औषधि और सुगंध वाली फसलें भी भरपूर पैदा होती हैं. खुशबूदार मसालों और औषधि के लिए देश भर में अव्वल मंदसौर में अब देसी वैरायटी की परंपरागत फसलें विदाई ले रही हैं. फसल चक्र का सही उपयोग न करने और भूमि का अत्यधिक दोहन करने की वजह से यहां अब कई तरह की देसी किस्म की फसलों की पैदावार ही बंद हो गई है. हालात ये हैं कि कैश क्रॉप और ज्यादा मुनाफा के लिए अब किसानों ने विदेशी किस्मों की ओर रुख कर लिया है. जिस कारण मंदसौर जिले में पैदा होने वाले देसी लहसुन के बजाय अब वे दक्षिण भारत में पैदा होने वाले ऊटी लहसुन में खास दिलचस्पी ले रहे हैं.

ऊटी लहसुन की डिमांड

खत्म हो गई जमीन की उर्वरा शक्ति
अफीम, अष्टगंध, असालिया, चंद्रशुर और देसी लहसुन की पैदावार के लिए पूरे देश में अव्वल मंदसौर जिले में परंपरागत देसी किस्मों की फसलों की पैदावार धीरे-धीरे बंद होती जा रही है. किसान फसल चक्र का पालन न करने और बार-बार एक ही तरह की फसलों की पैदावार उसी जमीन में करने से उर्वरा शक्ति खत्म हो गई है. देसी किस्म की फसलें ज्यादातर उन जमीनों पर पैदा होती हैं, जहां चार साल तक अलग-अलग फसल, फसल चक्र के मुताबिक बोई जाती हैं. लेकिन मालवा के किसान हर साल लहसुन की खेती करते हैं, जिसकी वजह से वहां की जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो गई है. ऐसे में अब देसी फसलों की पैदावार उतनी अच्छी नहीं हो रही है, जितनी होनी चाहिए. लगातार हो रहे नुकसान को देखते हुए किसानों ने अब रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले ऊटी लहसुन की ओर रुख किया है.

ज्यादा हो रही आयात

इन दिनों ऊटी किस्म का बीज दक्षिण भारत से जिले में भारी मात्रा में आयात किया जा रहा है, ऊटी लहसुन का रकबा अब मालवा में काफी बढ़ गया है. पहले जहां ये 40 हजार रुपए क्विंटल तक बिकती थी, वहीं अब ज्यादा किसानों की इसकी तरफ रुचि बढ़ने से 20 हजार से 35 हजार रुपए क्विंटल तक बिक रहा है. मालवा इलाके में ऊटी वैरायटी के लहसुन का रकबा काफी बढ़ गया है, किसानों के बीच अब भी इसकी भारी डिमांड है. जिले के दलोदा कृषि उपज मंडी के आधे से ज्यादा व्यापारी इन दिनों ऊटी वैरायटी के बीज की बिक्री का कारोबार कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- टाइगर प्रदेश में 'बाघ' सुरक्षित नहीं ! चौंकाते ही नहीं डराते भी हैं ये आंकड़े

दक्षिण भारत के हिल स्टेशन ऊटी के बाद दलोदा कृषि उपज मंडी भी इस वैरायटी की लहसुन की बिक्री का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है. बीज खरीदी के लिए अब यहां राजस्थान, गुजरात और प्रदेश के कई जिलों के किसान हर सप्ताह पहुंच रहे हैं. डिमांड ज्यादा होने से व्यापारी भी मुनाफा कमा रहे हैं. मंडी में इस वैरायटी की लहसुन का भाव फिलहाल 20 हजार से 35 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक बोला जा रहा है, जबकि देसी वैरायटी की गुणवत्ता वाली लहसुन आधे से भी कम दामों में मंडियों में बिक रहा है.

किसानों को कृषि वैज्ञानिक दे रहे सलाह

कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीएस चुंड़ावत ने बताया कि इन दिनों ज्यादा मात्रा में ऊटी से लहसुन के बीज आ रहे हैं. किसान भी इन्हें ज्यादा मात्रा में ले जाकर पहले सूखा रहे हैं और फिर खेतों में उसकी बोवनी कर रहे हैं, लेकिन किसान उपचारित करने के बाद ही इसे बोएं, जिससे प्रारंभिक फसल अच्छी हो.

मंदसौर। काला सोना यानी अफीम की पैदावार के लिए ख्यात मंदसौर जिले में औषधि और सुगंध वाली फसलें भी भरपूर पैदा होती हैं. खुशबूदार मसालों और औषधि के लिए देश भर में अव्वल मंदसौर में अब देसी वैरायटी की परंपरागत फसलें विदाई ले रही हैं. फसल चक्र का सही उपयोग न करने और भूमि का अत्यधिक दोहन करने की वजह से यहां अब कई तरह की देसी किस्म की फसलों की पैदावार ही बंद हो गई है. हालात ये हैं कि कैश क्रॉप और ज्यादा मुनाफा के लिए अब किसानों ने विदेशी किस्मों की ओर रुख कर लिया है. जिस कारण मंदसौर जिले में पैदा होने वाले देसी लहसुन के बजाय अब वे दक्षिण भारत में पैदा होने वाले ऊटी लहसुन में खास दिलचस्पी ले रहे हैं.

ऊटी लहसुन की डिमांड

खत्म हो गई जमीन की उर्वरा शक्ति
अफीम, अष्टगंध, असालिया, चंद्रशुर और देसी लहसुन की पैदावार के लिए पूरे देश में अव्वल मंदसौर जिले में परंपरागत देसी किस्मों की फसलों की पैदावार धीरे-धीरे बंद होती जा रही है. किसान फसल चक्र का पालन न करने और बार-बार एक ही तरह की फसलों की पैदावार उसी जमीन में करने से उर्वरा शक्ति खत्म हो गई है. देसी किस्म की फसलें ज्यादातर उन जमीनों पर पैदा होती हैं, जहां चार साल तक अलग-अलग फसल, फसल चक्र के मुताबिक बोई जाती हैं. लेकिन मालवा के किसान हर साल लहसुन की खेती करते हैं, जिसकी वजह से वहां की जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो गई है. ऐसे में अब देसी फसलों की पैदावार उतनी अच्छी नहीं हो रही है, जितनी होनी चाहिए. लगातार हो रहे नुकसान को देखते हुए किसानों ने अब रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले ऊटी लहसुन की ओर रुख किया है.

ज्यादा हो रही आयात

इन दिनों ऊटी किस्म का बीज दक्षिण भारत से जिले में भारी मात्रा में आयात किया जा रहा है, ऊटी लहसुन का रकबा अब मालवा में काफी बढ़ गया है. पहले जहां ये 40 हजार रुपए क्विंटल तक बिकती थी, वहीं अब ज्यादा किसानों की इसकी तरफ रुचि बढ़ने से 20 हजार से 35 हजार रुपए क्विंटल तक बिक रहा है. मालवा इलाके में ऊटी वैरायटी के लहसुन का रकबा काफी बढ़ गया है, किसानों के बीच अब भी इसकी भारी डिमांड है. जिले के दलोदा कृषि उपज मंडी के आधे से ज्यादा व्यापारी इन दिनों ऊटी वैरायटी के बीज की बिक्री का कारोबार कर रहे हैं.

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दक्षिण भारत के हिल स्टेशन ऊटी के बाद दलोदा कृषि उपज मंडी भी इस वैरायटी की लहसुन की बिक्री का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है. बीज खरीदी के लिए अब यहां राजस्थान, गुजरात और प्रदेश के कई जिलों के किसान हर सप्ताह पहुंच रहे हैं. डिमांड ज्यादा होने से व्यापारी भी मुनाफा कमा रहे हैं. मंडी में इस वैरायटी की लहसुन का भाव फिलहाल 20 हजार से 35 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक बोला जा रहा है, जबकि देसी वैरायटी की गुणवत्ता वाली लहसुन आधे से भी कम दामों में मंडियों में बिक रहा है.

किसानों को कृषि वैज्ञानिक दे रहे सलाह

कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीएस चुंड़ावत ने बताया कि इन दिनों ज्यादा मात्रा में ऊटी से लहसुन के बीज आ रहे हैं. किसान भी इन्हें ज्यादा मात्रा में ले जाकर पहले सूखा रहे हैं और फिर खेतों में उसकी बोवनी कर रहे हैं, लेकिन किसान उपचारित करने के बाद ही इसे बोएं, जिससे प्रारंभिक फसल अच्छी हो.

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