मण्डला। भले ही प्रशासन जनसंख्या नियंत्रण पखवाड़ा जोर शोर से मना रहा है, लेकिन जनसंख्या नियंत्रित करने में सरकार नाकाम साबित हो रही है. बच्चों के बीच कम अंतर के चलते कुपोषण रोजाना अपने पैर पसार रहा है. आदिवासी बाहुल्य मण्डला जिले में परिवार नियोजन पूरी तरह फ्लाप दिख रहा है क्योंकि जिस तेजी से यहां कुपोषण के आंकड़ों में बढ़ोत्तरी हुई है, उससे सरकारी योजनाओं पर भी सवाल उठना लाजिमी है.
परिवार नियोजन के साधनों के बारे में भ्रम और ग्रामीणों में इसकी कम जानकारी के चलते कुपोषण के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं. जिले के शून्य से पांच साल तक के कुल 85 हजार 456 बच्चों के सर्वे में 17 प्रतिशत यानि 14 हजार 446 बच्चे कुपोषित मिले हैं. वहीं, 2 प्रतिशत यानि 1290 बच्चे अति कुपोषित की श्रेणी में हैं. जोकि चिंता का विषय है. अप्रैल महीने में 108, मई में 146 और जून में 171 कुपोषित बच्चों के मामले सामने आए हैं. यानि की हर महीने 25 से 35 कुपोषण के नये मामले सामने आ रहे हैं.
जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण एवं परिवार नियोजन कार्यक्रम पूरे साल चलता है, पर सवाल ये है कि स्वास्थ्य विभाग और इसके माध्यम से चलाए जा रहे कार्यक्रम कितने असरदार साबित हो रहे हैं, इसके आंकड़े सामने नहीं आते हैं. कुपोषित बच्चों से जुड़े ये आंकड़े परिवार नियोजन के लिए चलाए जा रहे अभियान की विफलता को ही साबित कर रहे हैं.
11 जुलाई से 11 अगस्त तक विश्व जनसंख्या नियंत्रण पखवाड़ा मनाया जाएगा. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दंपति परिवार नियोजन के साधन नहीं अपनाते हैं. जिसके चलते दो बच्चों के बीच उतना अंतर नहीं रख पाते हैं, जोकि स्वस्थ बच्चे के लिए जरूरी होता है. जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बच्चों में कुपोषण के मामले बढ़ रहे हैं. परिवार नियोजन को लेकर ग्रामीणों को जागरूक करने के मकसद से इस पखवाड़े का आयोजन किया गया है.