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डर के साए में नौनिहाल, उज्जवल भविष्य के लिए नाव में कर रहे सफर

मण्डला के झूलपुर गांव में एक बांध है, जिसमे पांच छोटी बड़ी नदियों का पानी रोका गया है. इस बांध के दोनों ओर कई गांव हैं, जहां के लोगों को अपने काम के लिए रोजाना इस बांध में नाव के जरिए सफर करना पड़ता है

उज्जवल भविष्य के लिए नाव में कर रहे सफर
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Published : Oct 20, 2019, 3:47 PM IST

Updated : Oct 20, 2019, 5:25 PM IST

मंडला। 'पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया' शासन की ये लाइन तो सुनने में बड़ी अच्छी लगती है और इसके लिए प्रदेश स्तर पर सरकार करोड़ों रूपए का बजट भी जारी कर तमाम योजनाएं तो चलाती है. पर जमीन पर आते आते इन योजनाओं का हाल बेहाल हो जाता है, हम बात कर रहे हैं मंडला जिले के झूलपुर गांव की जहां स्कूली बच्चे रोजाना नाव के सहारे स्कूल तक का सफर तय करते हैं, ये सफर खतरे से भरा हुआ होता है लेकिन क्या करें साहब बच्चों को अपना जीवन भी तो सवांरना है. आइए आपको दिखाते हैं डर से भरा ये सफर...

डर के साए में नौनिहाल

नौनिहालों का नाव से आना जाना उनकी मजबूरी है क्योंकि सरकार यहां सिर्फ वोट मांगने ही आती है उसके बाद वो इनकी कोई सुध नहीं लेती है,यहां न तो सड़क है और न ही इसके अलावा कोई और रास्ता, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे बताते हैं कि नाव जब नदी के बीच में पहुंचती है और पानी का तेज बहाव जब उनकी तरफ आता है नाव के पलटने का भी डर मन में बना रहता है, इस नाव पर न सिर्फ बच्चे बल्कि ग्रामीणों के साथ ही साइकिल और मोटरसाइकिल के साथ सामान भी रखा होता है.

जब पूरे मामले पर क्षेत्रीय विधायक देवसिंह शैयाम का गांव भी है जिनका कहना है कि उन्होंने बहुत कोशिश की है कि यहां एक पुल बन जाए, लेकिन बांध होने के चलते यह सम्भव नहीं हो पाया. वो भी इस दो किलोमीटर के खतरे भरे सफर की मजबूरी को स्वीकार करते हैं और इस के लिए लगातार प्रयास करने की बात भी कहते हैं. लेकिन यह प्रयास कब सफल होगा ये देखने वाली बात है.

पहले भी हो चुकी हैं कई घटनाएं
दो दशक पहले इस बाँध को नाव के सहारे पार करती पूरी बारात डूब गई थी, जिसमें दो दर्जन से ज्यादा बाराती असमय ही मौत के मुंह में समा गए थे. ग्रामीणों के अनुसार बीते कुछ साल पहले भी एक नाव यहां पलट गई थी जिसमें कोई जन हानि तो नहीं हुई लेकिन ये हादसे स्कूली बच्चों के लिए दहशत का वो कारण बन गए जिसे लेकर ये इस पार से उस पार आते जाते हैं
नौनिहाल रोज इस डर के साए में सफर करने को मजबूर हैं, लेकिन न तो सरकार और न ही प्रशासन इस ओर ध्यान देने को तैयार हैं, सफर के दौरान कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है, शायद प्रशासन भी यही चाहता है क्योंकि कई बार ग्रामीण पुल के लिए अधिकारियों के पास गुहार लगा चुके हैं.

मंडला। 'पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया' शासन की ये लाइन तो सुनने में बड़ी अच्छी लगती है और इसके लिए प्रदेश स्तर पर सरकार करोड़ों रूपए का बजट भी जारी कर तमाम योजनाएं तो चलाती है. पर जमीन पर आते आते इन योजनाओं का हाल बेहाल हो जाता है, हम बात कर रहे हैं मंडला जिले के झूलपुर गांव की जहां स्कूली बच्चे रोजाना नाव के सहारे स्कूल तक का सफर तय करते हैं, ये सफर खतरे से भरा हुआ होता है लेकिन क्या करें साहब बच्चों को अपना जीवन भी तो सवांरना है. आइए आपको दिखाते हैं डर से भरा ये सफर...

डर के साए में नौनिहाल

नौनिहालों का नाव से आना जाना उनकी मजबूरी है क्योंकि सरकार यहां सिर्फ वोट मांगने ही आती है उसके बाद वो इनकी कोई सुध नहीं लेती है,यहां न तो सड़क है और न ही इसके अलावा कोई और रास्ता, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे बताते हैं कि नाव जब नदी के बीच में पहुंचती है और पानी का तेज बहाव जब उनकी तरफ आता है नाव के पलटने का भी डर मन में बना रहता है, इस नाव पर न सिर्फ बच्चे बल्कि ग्रामीणों के साथ ही साइकिल और मोटरसाइकिल के साथ सामान भी रखा होता है.

जब पूरे मामले पर क्षेत्रीय विधायक देवसिंह शैयाम का गांव भी है जिनका कहना है कि उन्होंने बहुत कोशिश की है कि यहां एक पुल बन जाए, लेकिन बांध होने के चलते यह सम्भव नहीं हो पाया. वो भी इस दो किलोमीटर के खतरे भरे सफर की मजबूरी को स्वीकार करते हैं और इस के लिए लगातार प्रयास करने की बात भी कहते हैं. लेकिन यह प्रयास कब सफल होगा ये देखने वाली बात है.

पहले भी हो चुकी हैं कई घटनाएं
दो दशक पहले इस बाँध को नाव के सहारे पार करती पूरी बारात डूब गई थी, जिसमें दो दर्जन से ज्यादा बाराती असमय ही मौत के मुंह में समा गए थे. ग्रामीणों के अनुसार बीते कुछ साल पहले भी एक नाव यहां पलट गई थी जिसमें कोई जन हानि तो नहीं हुई लेकिन ये हादसे स्कूली बच्चों के लिए दहशत का वो कारण बन गए जिसे लेकर ये इस पार से उस पार आते जाते हैं
नौनिहाल रोज इस डर के साए में सफर करने को मजबूर हैं, लेकिन न तो सरकार और न ही प्रशासन इस ओर ध्यान देने को तैयार हैं, सफर के दौरान कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है, शायद प्रशासन भी यही चाहता है क्योंकि कई बार ग्रामीण पुल के लिए अधिकारियों के पास गुहार लगा चुके हैं.

Intro:

मण्डला जिले के झूलपुर गाँव मे के करीब ही है एक बाँध जिस पर सैकड़ों जिंदगियां जान हथेली पर लेकर नाव में मजबूरी का सफर करती हैं जिसमें वे स्कूली बच्चे भी होते हैं जिन्हें नाव पर सफर करने में डर तो लगता है लेकिन पढ़ना है तो यह खतरे का सफर करना ही होगा


Body:एक बाँध जिसके दोनों छोर पर दर्जनों गाँव जिन्हें इस पार से उस पार जाना जरूरी है यह बाँध बना है झूलपुर गाँव के पास जिसमे पाँच छोटी बड़ी नदियों का पानी रोका गया है,झूलपुर में हायरसेकंडरी स्कूल है जहाँ पढ़ने आते हैं बीजे गाँव सहित आसपास के और गाँवो के स्कूली छात्र छात्राएं,जो डर और किसी अनहोनी की आशंका के साथ हमेसा सफर करने को मजबूर हैं इनकी आशंका लाजमी भी हैं क्योंकि इस बाँध को नाव के सहारे पार करती पूरी एक बारात लगभग दो दशक पहले डूब गई थी जिसमें दो दर्जन से ज्यादा बाराती असमय ही काल के गाल में समा गए थे वहीं ग्रामीणों के अनुसार बीते कुछ साल पहले भी एक नाव यहाँ पलट गई थी जिसमें कोई जन हानि तो नहीं हुई लेकिन ये हादसे स्कूली बच्चों के लिए दहशत का वो कारण बन गए जिसे लेकर ये इस पार से उस पार आते जाते हैं,इन स्कूली बच्चों के मुताबिक यहाँ नाव से आना जाना इनकी मजबूरी हैं क्योंकि इस दो किलोमीटर के सफर को वे सड़क के रास्ते तय करें तो यही सफर लगभग 25 से 30 किलोमीटर का हो जाता है, स्कूली छात्र छात्राओं ने बताया कि नाव जब बीच मे पहुँचती है और हवा पानी आ जाए तो उन्हें लगता है नाव अब पलटी की तब पलटी क्योंकि एक मात्र नाव और उस पर ग्रामीणों के साथ ही साइकिल और मोटरसाइकिल के साथ ही ग्रामीणों का सामान भी रखा होता है।वहीं मल्लाह को भी इस बात का अंदेशा होता है कि वो नाव तो खे रहा है लेकिन इतनी जिंदगियों का खिवैया ऊपर वाला ही है तभी शायद वह सफर की शुरुआत किनारे चबूतरे पर बैठे भोले नाथ पर जल चढ़ाने के बाद ही करता है,इस नाव में सफर के दौरान पानी भी भर आता है जिसे साथ रखे डिब्बे से उलीचते हुए यह खतरे का सफर पूरा होता है वहीं पालकों को भी हमेसा उनके बच्चों को लेकर चिंता लगी रहती है लेकिन स्कूल इस पार होने के कारण मजबूरी के आगे वे विवश हैं,


Conclusion:झूलपुर मण्डला की विधायक देवसिंह शैयाम का गाँव भी है जिनका कहना है कि उन्होंने बहुत बार कोशिस की है कि यहाँ एक पुल बन जाए तो यह नाव का सफर स्कूली बच्चों और ग्रामीणों को न करना पड़े लेकिन बाँध होने के चलते यह सम्भव नहीं हो पाया वे भी इस खतरे और 30 किलोमीटर के चक्कर की मजबूरी को स्वीकारते हुए कहते हैं कि इस डर और दहशत को रोकने के लिए एकमात्र विकल्प पुल ही है क्योंकि कोई भी 2 किलोमीटर का सफर 30 किलोमीटर घूम कर तय नहीं करना चाहेगा। ईटीवी भारत की अपील उन तमाम जिम्मदारों से है जिनके हाथ मे शासन प्रशासन की बागडोर है,जो जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं कम से कम एक बार इन बच्चों के चेहरों को पढ़ें जिनमे हमेसा एक ही बात लिखी होती है कि आखिर कब तक उन्हें तय करना पड़ेगा अपनी हथेली पर जान लेकर करने वाला यह सफर।

बाईट--स्कूली छात्र
बाईट--स्कूली छात्रा
बाईट--देवसिंह शैयाम, विधायक मण्डला
पीटूसी--मयंक तिवारी ईटीवी भारत मण्डला
Last Updated : Oct 20, 2019, 5:25 PM IST
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