मंडला। प्रशासन बेटियों की शिक्षा के लिए भले ही बड़े-बड़े दावे करती हो, लेकिन आज भी कई ऐसी जगह हैं, जहां चाह कर भी बेटियां मिडिल स्कूल के आगे शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकती. उसके बाद परिजन खुद ही बेटियों दाखिला नहीं करवाते. अब तो हालात ये हैं कि यहां हर बच्ची को पता होता है कि वह आठवीं तक ही शिक्षा प्राप्त कर पाएगी, उसके आगे नहीं.
दरअसल, यह स्थिति मंडला जिले के लगभग 45 किलो मीटर दूर स्थित धनगांव की है. यह गांव जंगल के बीच में हैं मुख्य सड़क से आठ किलो मीटर की दूरी पर है. जहां पहुंचने के लिए कोई सड़क मार्ग भी नहीं है क्योंकि किसानों की जमीन होने से सरकार चाहकर भी सड़क नहीं बनवा पा रही है.इस गांव में लगभग एक हजार की आबादी है. गांव में आठवीं कक्षा तक ही स्कूल है. जिससे बेटियां सिर्फ मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं. आगे के शिक्षा के लिए कोई साधन नहीं, जिससे परिजन बेटियों को पढ़ाना चाहे तो भी नहीं पढ़ा सकते.
स्थानीय लोगों का कहना है कि मिडिल स्कूल भी सिर्फ अतिथि शिक्षक के सहारे चल रहा है जबकि मण्डला जिले में कारीकोन, अंजनिया जैसे जगहों में दर्जनों ऐसे स्कूल हैं, जहां दो या उससे अधिक शिक्षक हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर धनगांव में हाई स्कूल हो जाए तो बेटियां शिक्षा का सपना पूरा कर सकती हैं.बैगा आदिवासियों को संरक्षण की बात तो बहुत की जाती है लेकिन क्या इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. धनगांव जैसे पिछड़े गांवों को यदि शिक्षा, सड़क और बुनियादी सुविधाओं से जोड़ दिया जाए तो जंगलों के भीतर पिछड़ेपन का दंश झेल रहे इन आदिवासियों का जीवन अपने आप ही सुधर जाएगा.