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यहां बेटियों को आठवीं कक्षा के बाद नसीब नहीं होती शिक्षा, ये है वजह

प्रशासन बेटियों की शिक्षा के लिए भले ही बड़े-बड़े दावे करती हो, लेकिन आज भी कई ऐसी जगह हैं, जहां चाह कर भी बेटियां मिडिल स्कूल के आगे शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकती. उसके बाद परिजन खुद ही बेटियों दाखिला नहीं करवाते.

स्कूल भवन
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Published : Mar 22, 2019, 12:12 AM IST

मंडला। प्रशासन बेटियों की शिक्षा के लिए भले ही बड़े-बड़े दावे करती हो, लेकिन आज भी कई ऐसी जगह हैं, जहां चाह कर भी बेटियां मिडिल स्कूल के आगे शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकती. उसके बाद परिजन खुद ही बेटियों दाखिला नहीं करवाते. अब तो हालात ये हैं कि यहां हर बच्ची को पता होता है कि वह आठवीं तक ही शिक्षा प्राप्त कर पाएगी, उसके आगे नहीं.

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दरअसल, यह स्थिति मंडला जिले के लगभग 45 किलो मीटर दूर स्थित धनगांव की है. यह गांव जंगल के बीच में हैं मुख्य सड़क से आठ किलो मीटर की दूरी पर है. जहां पहुंचने के लिए कोई सड़क मार्ग भी नहीं है क्योंकि किसानों की जमीन होने से सरकार चाहकर भी सड़क नहीं बनवा पा रही है.इस गांव में लगभग एक हजार की आबादी है. गांव में आठवीं कक्षा तक ही स्कूल है. जिससे बेटियां सिर्फ मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं. आगे के शिक्षा के लिए कोई साधन नहीं, जिससे परिजन बेटियों को पढ़ाना चाहे तो भी नहीं पढ़ा सकते.


स्थानीय लोगों का कहना है कि मिडिल स्कूल भी सिर्फ अतिथि शिक्षक के सहारे चल रहा है जबकि मण्डला जिले में कारीकोन, अंजनिया जैसे जगहों में दर्जनों ऐसे स्कूल हैं, जहां दो या उससे अधिक शिक्षक हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर धनगांव में हाई स्कूल हो जाए तो बेटियां शिक्षा का सपना पूरा कर सकती हैं.बैगा आदिवासियों को संरक्षण की बात तो बहुत की जाती है लेकिन क्या इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. धनगांव जैसे पिछड़े गांवों को यदि शिक्षा, सड़क और बुनियादी सुविधाओं से जोड़ दिया जाए तो जंगलों के भीतर पिछड़ेपन का दंश झेल रहे इन आदिवासियों का जीवन अपने आप ही सुधर जाएगा.

मंडला। प्रशासन बेटियों की शिक्षा के लिए भले ही बड़े-बड़े दावे करती हो, लेकिन आज भी कई ऐसी जगह हैं, जहां चाह कर भी बेटियां मिडिल स्कूल के आगे शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकती. उसके बाद परिजन खुद ही बेटियों दाखिला नहीं करवाते. अब तो हालात ये हैं कि यहां हर बच्ची को पता होता है कि वह आठवीं तक ही शिक्षा प्राप्त कर पाएगी, उसके आगे नहीं.

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दरअसल, यह स्थिति मंडला जिले के लगभग 45 किलो मीटर दूर स्थित धनगांव की है. यह गांव जंगल के बीच में हैं मुख्य सड़क से आठ किलो मीटर की दूरी पर है. जहां पहुंचने के लिए कोई सड़क मार्ग भी नहीं है क्योंकि किसानों की जमीन होने से सरकार चाहकर भी सड़क नहीं बनवा पा रही है.इस गांव में लगभग एक हजार की आबादी है. गांव में आठवीं कक्षा तक ही स्कूल है. जिससे बेटियां सिर्फ मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं. आगे के शिक्षा के लिए कोई साधन नहीं, जिससे परिजन बेटियों को पढ़ाना चाहे तो भी नहीं पढ़ा सकते.


स्थानीय लोगों का कहना है कि मिडिल स्कूल भी सिर्फ अतिथि शिक्षक के सहारे चल रहा है जबकि मण्डला जिले में कारीकोन, अंजनिया जैसे जगहों में दर्जनों ऐसे स्कूल हैं, जहां दो या उससे अधिक शिक्षक हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर धनगांव में हाई स्कूल हो जाए तो बेटियां शिक्षा का सपना पूरा कर सकती हैं.बैगा आदिवासियों को संरक्षण की बात तो बहुत की जाती है लेकिन क्या इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. धनगांव जैसे पिछड़े गांवों को यदि शिक्षा, सड़क और बुनियादी सुविधाओं से जोड़ दिया जाए तो जंगलों के भीतर पिछड़ेपन का दंश झेल रहे इन आदिवासियों का जीवन अपने आप ही सुधर जाएगा.

Intro:यहाँ की हर एक बेटी को पता है की उसे बस आठवीं तक पढ़ना है इसके बाद तो उसके पापा मम्मी उसकी पढ़ाई बंद ही करा देंगे ऐसा नहीं कि बेटियाँ पढ़ना नहीं चाहती वे भी चाहती हैं आगे बढ़े लेकिन पलकों की मनाही और उनकी मजबूरी के चलते बेटियों को ही अपनी ख्वाहिशें कुर्बान करनी होती हैं


Body:धनगांव,इस गाँव की दूरी मण्डला से तो लगभग 45 किलोमीटर दूर है लेकिन यह सामिल है घुघरी ब्लाक में जिसकी दूरी इतनी है कि तहसील से लेकर किसी भी तरह के दस्तावेज बनवाने अगर जाना हो तो मण्डला से ही जाना होगा और दो दिन का समय भी चाहिए,जंगल के बीच मण्डला निवास रोड पर मुख्य सड़क से करीब 8 किलोमीटर भीतर बसा ऐसा गाँव जहाँ आज भी सड़क का साधन गाँव तक इसलिए नहीं बन पाया क्योंकि बीच मे फँसती है किसानों की निजी भूमि जो अपनी जमीन पर रोड बनने नहीं दे रहे यही कारण है कि लगभग एक हज़ार की आबादी वाले इस गाँव से बेटियों को उनके घरवाले आठवीं के बाद पढ़ाने की सोचे भीं तो कहाँ भेजें और किस साधन से भेजें,200 के लगभग बैगा और इतने ही गौंड आदिवाशियों के इस गाँव मे मिडिल तक स्कूल है जिसके बाद यहाँ के बच्चों को पढ़ने बाहर भेजना ही होगा परन्तु साधनों का आभाव,दूरी,गरीबी और मजबूरी बेटीयों के साथ ही बहुत से बेटों के सपनों और उज्ज्वल भविष्य का गला घोंट रही है,स्थानीय लोगों का कहना है कि मिडिल स्कूल भी सिर्फ अतिथि शिक्षक के सहारे रहा है जबकि मण्डला जिले में कारीकोन, अंजनिया जैसे दर्जनों ऐसे स्कूल है जहाँ दो या अधिक शिक्षक हैं और दर्ज संख्या दहाई के आंकड़े तक बीते कई सत्रों में छू ली हो तो बड़ी बात,ऐसे में क्या जिला प्रशासन यह नहीं कर सकता कि उन स्कूलों का कहीं और संविलियन कर शिक्षकों को धनगांव में हाई स्कूल की सौगात के साथ भेज दे और लड़कियों के चकनाचूर हो रहे सपनों को जीवन दे सके



Conclusion:बैगा आदिवाशियों को संरक्षण की बात तो बहुत की जाती है लेकिन क्या इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता कि धनगांव जैसे पिछड़े गाँवो को यदि शिक्षा सड़क और बुनियादी सुविधाओं से जोड़ दिया जाए तो जंगलों के भीतर पिछड़ेपन का दंश झेल रहे इन आदिवाशियों का जीवन अपने आप ही सुधर जाएगा और यहाँ की बेटियों को यह नहीं कहना पड़ेगा कि हम आठवीं के बाद नहीं पढ़ेंगे।

बाईट--पार्वती,छात्रा
बाईट--मुनिया यादव,छात्रा
बाईट--सुन्दर लाल स्थानीय निवासी
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