भोपाल: 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली जहरीली गैस ने पूरे भोपाल में तबाही मचाई थी. ऐसा नहीं है कि इस गैस का असर कुछ महीनों या सालों तक था. आपको जानकार हैरानी होगी कि हादसे के करीब 40 साल बाद भी कई परिवार घुट-घुटकर मरने को मजबूर हैं और कई बीमारियां लोगों को पीढ़ी दर पीढी अपने आगोश में लेती जा रही हैं. पहले हम आपको उस रात बचे हुए लोगों की कहानी बताएंगे. इसके बाद भोपाल में उस रात को हुआ क्या था ये भी बताएंगे.
जहरीली गैस की वजह से बिखर गया परिवार
आज 40 साल बाद भी किस प्रकार गैस त्रासदी उनके जीवन को प्रभावित कर रही है. यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम जेपी नगर बस्ती में पहुंची. यहां गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली नसरीन हमें 60 वर्षीय भारती शाक्य के घर लेकर गई. भारती ने बताया, ''गैस कांड के समय उनका परिवार जेपी नगर बस्ती में ही रहता था. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से लगे होने के कारण सबसे अधिक नुकसान इसी क्षेत्र में हुआ. जहरीली गैस की वजह से मेरे सास-ससुर को सांस की बीमारी हो गई थी. इलाज कराने के बाद भी ज्यादा दिन तक नहीं चल सके. 3 साल पहले पति की मृत्यु भी इसी बीमारी से हो गई. अब मेरी 26 साल की बेटी रानी बची है, लेकिन वह भी बीमार रहती है. रानी न चल पाती है और न खुद से अपना कोई काम कर पाती है.'' मां को ही उसे नित्य क्रिया के लिए भी लेकर जाना पड़ता है. दो बेटे हैं, वो भी मजदूरी करते हैं. इसी से घर और बेटी की दवाईयों का खर्च चल रहा है.
तीसरी पीढ़ी में भी आ रहा असर
जेपी नगर में रहने वाली 55 साल की कम्मो ने बताया, ''गैस कांड के समय मैं यहां थी. मैं और मेरे पति भी जहरीली गैस का शिकार हो गए थे, जिसके बाद पति बीमार रहने लगे थे. इसी बीमारी के चलते वह चल बसे. अब मुझे भी सांस लेने में दिक्कत होती है.'' कम्मो के 3 बेटों मे से 2 बेटों पर भी जहरीली गैस का असर है. बड़ा बेटा बचपन से ही कमजोर है और अधिकतर समय बीमार ही रहता है. छोटे बेटे को सांस लेने के साथ एलर्जी की समस्या है. अब उसका एक बेटा हुआ है, जो 11 महीने का है, लेकिन उसका पैर और गला टेड़ा है. जेपी नगर में हमें और भी ऐसे परिवार मिले, जिनकी तीसरी पीढ़ी भी 40 साल पहले हुए भोपाल गैस त्रासदी कांड का दंश झेल रही है.
भोपाल गैस त्रासदी कांड की पूरी कहानी
2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात भोपाल में रोज की तरह लोग अपने घरों में सो रहे थे. अचानक मध्य रात्रि में सोते हुए लोगों को मिर्च के धुएं जैसी तेज गंध बेचैन करने लगी. लोगों ने आंखे खोली तो उनकी आंखों में भयंकर जलन होने लगी. गलियों में लोग भागो-भागो चिल्लाते हुए शहर से दूर चले जाना चाहते थे. पुराने भोपाल में लोगों के सामने खुद को और अपना परिवार बचाने की जद्दोजहद थी. इस एक रात ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा. भोपाल गैस त्रासदी विश्व के बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में शामिल हो गई.
हजारों लोगों ने रास्ते में तोड़ दिया दम
इतिहासकार सैयद खालिद गनी बताते हैं, ''जेपी नगर में स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में 2 दिसंबर की रात जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था. लेकिन कुछ समय तक तो लोगों को पता ही नहीं चला. रात करीब 11 बजे के बाद जेपी नगर के आसपास की हवा जहरीली होने लगी. रात के एक बजे तक पूरे शहर की हवा जहरीली हो गई. फैक्ट्री के पास बनी झुग्गियों में बाहर से आए कुछ मजदूर सो रहे थे. उनकी सोते-सोते ही मृत्यु हो गई. जब गैस लोगों के घरों में घुसी तो लोग घबराकर बाहर निकलने लगे. लेकिन यहां हालात और खराब थे. लोग बस्ती छोड़कर भाग रहे थे, हजारों लोग रास्ते में मृत पड़े थे.''
5,295 लोगों की मौत, करीब 6 लाख हुए प्रभावित
खालिद गनी बताते हैं, ''यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से उस रात करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था. टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस पानी से मिल गई. फिर रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया, जिससे टैंक खुल गया. इसके बाद टैंक से निकली गैस ने देखते-देखते हजारों लोगों को अपने आगोश में ले लिया.'' सरकारी आंकड़ों की मानें तो इस भीषण दुर्घटना में 5,295 लोगों की मृत्यु हुई थी. जबकि गैस पीड़ित संगठनों का आरोप है कि इस दुर्घटना में 22,917 लोगों की मृत्यु हुई है. वहीं इस जहरीली गैस से 5,74,376 लोग गंभीर रुप से प्रभावित हुए थे.
कर्मचारियों को भी नहीं थी जहरीली गैस की जानकारी
गैस कांड की रात पीड़ित मरीजों का हमीदिया अस्पताल में इलाज करने वाले डॉ. एचएच त्रिवेदी ने बताया, ''किसी भी कंपनी को ऐसे केमिकल नहीं बनाना चाहिए, जिसके एंटीडोट और दूरगामी प्रभाव की जानकारी न हो. इस मामले में ऐसा ही हुआ था. जब भोपाल में गैस कांड हुआ, तब तक यूनियन कार्बाइड के कर्मचारियों और अधिकारियों को भी पता नहीं था कि मिथाइल आइसोसाइनेट गैस इतनी जहरीली होगी. साथ ही कर्मचारियों के पास इससे बचने का कोई उपाय भी नहेीं था. फैक्ट्री में किसी दुर्घटना के लिए अलार्म सिस्टम लगा था, लेकिन कई घंटों तक वह भी नहीं बजा.''
नई पीढ़ी में दिख रहा है गैस का कहर
गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली रचना ढींगरा ने बताया, '' यूनियन कार्बाईड हादसे के 40 साल बाद भी यह गैस लोगों की जिंदगियों को बर्बाद कर रही है. गैस पीड़ितों के घरों में इसका कहर आज भी दिखता है. गैस पीड़ितों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी में भी जन्मजात विकृतियां देखने को मिल रही हैं. यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे की वजह से यहां प्रदूषण हो रहा है, जिसकी वजह से 42 बस्तियों का पानी ऐसे रसायनों से प्रभावित है, जो जन्मजात विकृतियां पैदा करते हैं. ये रसायन कैंसर, गुर्दे और मस्तिष्क रोगों का कारण बनते हैं.''
इतना बड़ा हादसा, लेकिन कोई भी नहीं गया जेल
रचना ढींगरा ने आगे बताया, ''अगर हम कानूनी पक्ष देखें तो 25 हजार लोगों को मारने, 5 लाख लोगों को घायल करने और आधे भोपाल के भूजल को दूषित करने वाले जिम्मेदारों के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. आपको जानकार हैरानी होगी कि कोई भी आरोपी एक दिन के लिए भी जेल नहीं गया. आज यदि गैस पीड़ितों को कुछ हासिल हुआ, तो वो उनके संघर्ष के कारण मिला है. आज भी कई हजारों ऐसे लोग हैं जो न्याय और सही इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, लेकिन हमारे देश का सिस्टम ऐसे लोगों की सुनता कहां है.''
40 साल बाद भी फैसले का इंतजार
गैस पीड़ितों के लिए काम रहे संगठनों का कहना है कि इस भीषण हादसे को 40 साल बीत चुके हैं. लेकिन अभी भी मामला कोर्ट में लंबित है. जबकि आधे से ज्यादा आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है. जो बचे हैं, वो भी बीमार हैं. बता दें कि इस हादसे का मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन था. जिसे 6 दिसंबर 1984 को भोपाल में गिरफ्तार किया गया था. लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर को उसे सरकारी विमान से दिल्ली भेजा दिया गया. जहां से वह अमेरिका चला गया. इसके बाद फिर कभी वह भारत लौटकर नहीं आया. कोर्ट ने उसे फरार घोषित कर दिया था. इसके बाद अमेरिका के फ्लोरिडा में एंडरसन की 29 सितंबर 2014 को 93 साल की उम्र में मृत्यु हो गई थी.
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भोपाल में 1934 में हुई थी यूनियन कार्बाइड की स्थापना
भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की स्थापना सन 1934 में की गई थी. इसमें हादसे के समय करीब 9 हजार लोग काम करते थे. इस कंपनी की 50.9 प्रतिशत हिस्सेदारी यूनियन कार्बाइड और कार्बन कार्पोरेशन के पास, जबकि 49.1 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत सरकार और शासकीय बैंकों सहित भारतीय निवेशकों के पास थी. भोपाल स्थित फैक्ट्री में बैटरी, कार्बन उत्पाद, वेल्डिंग उपकरण, प्लास्टिक, औद्योगिक रसायन, कीटनाशक और समुद्री उत्पाद बनाए जाते थे. साल 1984 में यह कंपनी देश की 21 सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल थी.