ETV Bharat / state

खंडवा के सियासी पिच पर सिक्सर लगाएंगे नंद कुमार, या हैट्रिक मारेंगे अरुण यादव

खंडवा लोकसभा सीट मध्य प्रदेश की सबसे हाई प्रोफाइल सीट मानी जा रही है. जहां बीजेपी प्रत्याशी और पांच बार के सांसद नंदकुमार सिंह चौहान का मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता अरुण यादव से है. दोनों प्रत्याशी एक-एक बार एक-दूसरे को हरा चुके हैं. जबकि इस बार दोनों प्रत्याशी सियासी मैदान में हैं.

बीजेपी प्रत्याशी नंदकुमार सिंह चौहान, कांग्रेस प्रत्याशी अरुण यादव
author img

By

Published : May 18, 2019, 12:16 AM IST

खंडवा। निमाड़ अंचल के खंडवा शहर को सूबे का ऐतिहासिक, प्राचीन और साहित्यिक नगर माना जाता है. जिसे संगीत के जादूगर किशोर कुमार उर्फ काका के शहर के नाम से भी जाना जाता है, जबकि ये माखनलाल चतुर्वेदी और रामनारायण उपाध्याय जैसे साहित्यकारों की कर्मस्थली भी है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर भी खंडवा जिले में ही स्थित है, लेकिन सूबे की सियासत में भी इस शहर का रुतबा कम नहीं है. अबकी बार यहां बीजेपी-कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और अरुण यादव के बीच मुकाबला है.

खंडवा लोकसभा सीट

कभी कांग्रेस के दबदबे वाली खंडवा लोकसभा सीट पर पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी ने मजबूत पकड़ बना ली है. इस सीट पर अब तक हुए 15 आम चुनावों में से 9 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है तो 6 बार बीजेपी ने भगवामय किया है, जबकि एक बार लोकदल ने यहां खाता खोला था. 1996 से बीजेपी के नंदकुमार सिंह चौहान इस सीट पर लगातार जीत हासिल कर रहे थे, लेकिन 2009 के चुनाव में कांग्रेस के अरुण यादव ने उनकी जीत पर ब्रेक लगा दिया था. जिसका बदला 2014 में नंदकुमार सिंह ने अरुण यादव को हराकर हिसाब बराबर किया था. अब तीसरी बार ये दोनों दिग्गज सियासी दंगल में एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं.

इस बार खंडवा-बुरहानपुर संसदीय क्षेत्र के 19 लाख 8 हजार 390 वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 9 लाख 82 हजार 451 पुरुष मतदाता हैं तो 9 लाख 25 हजार 862 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 79 है. इस बार यहां कुल 2370 मतदान केंद्र बनाए गए हैं.

खंडवा संसदीय सीट के तहत खंडवा, मांधाता, पंधाना, बुरहानपुर, नेपानगर, बड़वाह, भीकनगांव और बागली विधानसभा सीटें शामिल हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी, जबकि तीन सीटें बीजेपी के खाते में गई थी और एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी.

खंडवा क्षेत्र में राजपूत, ब्राह्मण, मराठा और ओबीसी वर्ग के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं. आदिवासी वर्ग के मतदाता भी इस सीट पर प्रभावी भूमिका निभाते हैं. बीजेपी ने यहां राजपूत प्रत्याशी पर दांव लगाया है तो कांग्रेस ओबीसी प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.

बीजेपी-कांग्रेस के दो पूर्व प्रदेश अध्यक्षों के मैदान में होने से ये सीट सूबे की हाई प्रोफाइल सीट मानी जा रहा है. खास बात ये है कि दोनों दिग्ग्ज एक-एक बार एक-दूसरे को हरा चुके हैं. ऐसे में दूसरी जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. जिसके चलते इस सीट पर मालवा-निमाड़ अंचल का सबसे कड़ा मुकाबला माना जा रहा है. हालांकि, 23 मई को ही इस पर अंतिम मुहर लगेगी कि नंदकुमार चौहान सियासी पिच पर सिक्सर लगाते हैं, या फिर अरुण यादव सियासी हैट्रिक मारते हैं.

खंडवा। निमाड़ अंचल के खंडवा शहर को सूबे का ऐतिहासिक, प्राचीन और साहित्यिक नगर माना जाता है. जिसे संगीत के जादूगर किशोर कुमार उर्फ काका के शहर के नाम से भी जाना जाता है, जबकि ये माखनलाल चतुर्वेदी और रामनारायण उपाध्याय जैसे साहित्यकारों की कर्मस्थली भी है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर भी खंडवा जिले में ही स्थित है, लेकिन सूबे की सियासत में भी इस शहर का रुतबा कम नहीं है. अबकी बार यहां बीजेपी-कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और अरुण यादव के बीच मुकाबला है.

खंडवा लोकसभा सीट

कभी कांग्रेस के दबदबे वाली खंडवा लोकसभा सीट पर पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी ने मजबूत पकड़ बना ली है. इस सीट पर अब तक हुए 15 आम चुनावों में से 9 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है तो 6 बार बीजेपी ने भगवामय किया है, जबकि एक बार लोकदल ने यहां खाता खोला था. 1996 से बीजेपी के नंदकुमार सिंह चौहान इस सीट पर लगातार जीत हासिल कर रहे थे, लेकिन 2009 के चुनाव में कांग्रेस के अरुण यादव ने उनकी जीत पर ब्रेक लगा दिया था. जिसका बदला 2014 में नंदकुमार सिंह ने अरुण यादव को हराकर हिसाब बराबर किया था. अब तीसरी बार ये दोनों दिग्गज सियासी दंगल में एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं.

इस बार खंडवा-बुरहानपुर संसदीय क्षेत्र के 19 लाख 8 हजार 390 वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 9 लाख 82 हजार 451 पुरुष मतदाता हैं तो 9 लाख 25 हजार 862 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 79 है. इस बार यहां कुल 2370 मतदान केंद्र बनाए गए हैं.

खंडवा संसदीय सीट के तहत खंडवा, मांधाता, पंधाना, बुरहानपुर, नेपानगर, बड़वाह, भीकनगांव और बागली विधानसभा सीटें शामिल हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी, जबकि तीन सीटें बीजेपी के खाते में गई थी और एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी.

खंडवा क्षेत्र में राजपूत, ब्राह्मण, मराठा और ओबीसी वर्ग के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं. आदिवासी वर्ग के मतदाता भी इस सीट पर प्रभावी भूमिका निभाते हैं. बीजेपी ने यहां राजपूत प्रत्याशी पर दांव लगाया है तो कांग्रेस ओबीसी प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.

बीजेपी-कांग्रेस के दो पूर्व प्रदेश अध्यक्षों के मैदान में होने से ये सीट सूबे की हाई प्रोफाइल सीट मानी जा रहा है. खास बात ये है कि दोनों दिग्ग्ज एक-एक बार एक-दूसरे को हरा चुके हैं. ऐसे में दूसरी जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. जिसके चलते इस सीट पर मालवा-निमाड़ अंचल का सबसे कड़ा मुकाबला माना जा रहा है. हालांकि, 23 मई को ही इस पर अंतिम मुहर लगेगी कि नंदकुमार चौहान सियासी पिच पर सिक्सर लगाते हैं, या फिर अरुण यादव सियासी हैट्रिक मारते हैं.

Intro:खंडवा - खंडवा संसदीय क्षेत्र जो अपनी कला, साहित्य और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता हैं. बॉलीवुड के मशहूर हरफ़नमौला कलाकार किशोर कुमार जिनका नाता खंडवा से ही रहा हैं. वहीं साहित्य जगत में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और रामनारायण उपाध्याय की कर्मस्थली भी खंडवा ही हैं. धार्मिक लिहाज से बात की जाए तो यहां प्रसिद्ध धूनीवाले दादाजी का धाम भी जहां प्रत्येक वर्ष गुरुपूर्णिमा पर देश प्रदेश ही नही विदेशों से भी भक्त दर्शन के लिए आते हैं.वहीं देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग भी खंडवा जिले में स्थित ही हैं. जहां सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं. अब बात की जाए खंडवा की राजनीति की तो यहां पहली बार साल 1952 में लोकसभा का चुनाव हुआ जिसमें पहले सांसद के रूप में कांग्रेस के बाबूलाल तिवारी चुने गए। अब तक यहां से कांग्रेस के 9 बार सांसद रह चुके हैं. वहीं पहली बार 1989 में भाजपा के अमृतलाल तारवाला यहां से सांसद चुने गए थे. साल 1996 से भाजपा के नंदकुमार चौहान लगातर पांच बार सांसद बने. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अरुण यादव ने उन्हें शिकस्त दी। वहीं अगले ही 2014 के चुनाव में नंदकुमार चौहान ने कांग्रेस के अरुण यादव को 2 लाख 59 हजार 714 वोटों के बड़े अंतर से मात दी. इस बार फिर दोनों ही अपनी अपनी पार्टी से चुनावी मैदान में हैं. भाजपा प्रत्याशी जहां मोदी लहर और अपनी सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से जीत का दावा कर रहे हैं वहीं कांग्रेस प्रत्याशी न्याय योजना और क्षेत्र के लिए विजन डॉक्यूमेंट के माध्यम से चुनावी मैदान में हैं.


Body:खंडवा लोकसभा क्षेत्र में चार जिलों की कुल 8 विधानसभाएं आती हैं जिसमें खंडवा की खंडवा, मांधाता, पंधाना वहीं बुरहानपुर की बुरहानपुर और नेपानगर , तो खरगोन की बड़वाह और भीकनगांव और देवास की एकमात्र बागली विधानसभा शामिल हैं। विधानसभा के आधार पर जातीय समीकरण की बात करें तो इस संसदीय क्षेत्र की खंडवा विधानसभा अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं वहीं पंधाना भीकनगांव बागली और नेपानगर विधानसभा अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. तो मांधाता बड़वाह और बुरहानपुर सामान्य सीट के लिए आरक्षित हैं. साल 2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो यहां पर खंडवा संसदीय क्षेत्र की कुल 8 विधानसभा में से चार पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था. वही भाजपा सिर्फ तीन विधानसभा खंडवा,पंधाना और बागली तक सिमटकर रह गई एक बुरहानपुर की सीट निर्दलीयों के खाते में चली गई। वही क्षेत्र के जातिगत समीकरण पर नजर डाली जाए तो इस संसदीय क्षेत्र में राजपूत,ब्राह्मण, गुर्जर, मराठा, आदिवासी बारेला, आदिवासी कोरकू, मुस्लिम और दलित समाज के मुख्य मतदाता है. यहां कुल मतदाता 1908390 जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 982451 वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 925862 हैं.तो 79 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. खंडवा लोकसभा में कुल 2370 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. खंडवा लोकसभा सीट पर इस बार कड़ा मुकाबला माना जा रहा हैं. भाजपा से जहां पांच बार के सांसद नंदकुमार चौहान चुनावी मैदान हैं वहीं कांग्रेस से चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे अरुण यादव हैं. अरुण यादव खरगोन से आते हैं पहला चुनाव भी उन्होंने अपने गृहनगर नगर खरगोन से लड़ा था जिसमें उन्हें जीत मिली थी. जिसके बाद साल 2009 में उन्हें खंडवा लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में उतारा यहां भी उन्होंने भाजपा के नंदकुमार चौहान को अच्छे अंतर से पराजित किया। लेकिन साल 2014 के मोदी लहर वाले चुनाव में यादव के जीत का रथ रुक गया. और वे नंदकुमार चौहान के हाथों लगभग ढाई लाख के अंतर से हार मिली। नंदकुमार चौहान क्षेत्र में अपनी उपलब्धि के रूप में मेडिकल कालेज और सिंचाई परियोजनाओं को गिनाते हैं हालांकि पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने लोकसभा में क्षेत्र के लिए एक भी सवाल नही पूछा। वही अरुण यादव नंदकुमार चौहान की 5 साल की नाकामी अपने विजन डॉक्यूमेंट पर चुनाव लड़ रहे हैं.


Conclusion: 19 मई को होने वाले मतदान के लिए जिला निर्वाचन की टीम ने सभी तैयारियां पूर्ण कर ली हैं. वहीं स्वीप की टीम भी लगातार मतदाता जागरूकता की गतिविधियां चला रहा हैं. गांव-गांव, शहर- शहर नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जनता को मतदान करने के लिए जागरूक किया जा रहा हैं. बहरहाल दोनों ही प्रत्यशियों में मुकाबला कड़ा माना जा रहा हैं दोनों ही दलों के शीर्ष नेतृत्व चुनावी सभाएं कर चुके हैं. अब देखना होगा इस बार यहां मोदी लहर का जादू चलता है या कांग्रेस अपनी बात जनता तक पहुंचाने में कामयाब होती हैं.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.