झाबुआ। जिले की 3 सीटों में से एक पेटलावद विधानसभा में रहने वाले मतदाताओं में ज्यादातर आदिवासी हैं. यह सीट आदिवासियों के लिए शुरू से ही रिजर्व है. यहां टमाटर और मिर्ची की खेती अधिक होती है और पूरा आदिवासी बाहुल्य इलाका इसी टमाटर और मिर्ची की खेती पर निर्भर है, लेकिन यहां का राजनीतिक तीखापन भी कम नहीं है. अभी पेटलावद सीट से वालसिंह मेड़ा विधायक हैं. 2018 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की निर्मला भूरिया को 5 हजार वोटों के अंतर से हराया था. अब बात करते हैं, इस बार की तो बीजेपी ने अपने प्रत्याशी के रूप में पिछली हार के बाद भी निर्मला भूरिया को एक बार फिर टिकट दिया है.
कांग्रेस ने वालसिंह मेड़ा पर जताया भरोसा: पेटलावद में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है. भाजपा ने निर्मला दिलीप सिंह भूरिया को चुनावी मैदान में उतार है वहीं कांग्रेस ने वालसिंह मेड़ा को प्रत्याशी बनाया है. बता दें कि वर्तमान में वालसिंह मेड़ा विधायक हैं.
पेटलावद सीट का इतिहास: दरअसल पेटलावद विधानसभा पहली बार 1967 में अस्तित्व में आई. पहली बार जीत का खाता कांग्रेस ने खोला और अभी भी दबदबा कायम है, लेकिन भूरिया परिवार ने यहां ऐसा वर्चस्व बनाया कि बीजेपी को भी इसी परिवार का दामन थामना पड़ा. इसीलिए हारने के बाद भी इसी परिवार को बीजेपी टिकट देती है. हालांकि पिछले चुनाव से जयस का यहां असर दिखाई दे रहा है. जयस के कार्यकर्ता किसानों के बीच जाकर 2023 की चुनावी चर्चा करने में जुटे हुए हैं और इसका लाभ कांग्रेस को मिलेगा.
पेटलावद विधानसभा के यह हैं मुद्दे: पेटलावद विधानसभा अब तक 12 विधायक देख चुकी है. जिस प्रत्याशी को जिताया, अधिकतर उनकी ही सरकार रही. इसके बाद भी इस विधानसभा में युवाओं के लिए कोई बड़ा रोजगार लाने का प्रयास नहीं किया गया है. यहां के युवा अब भी पलायन करने के लिए मजबूर हैं और राजस्थान या फिर गुजरात में जाकर नौकरी करते हैं. कमाल की बात यह है कि यह स्थिति तब है, जबकि यहां का टमाटर दिल्ली, मुंबई और पाकिस्तान तक जाता है, लेकिन यहां कोई बड़ी फैक्ट्री नहीं लग पा रही है. यहां सरकारी अस्पताल तो है, लेकिन मरीजों का इलाज करने के लिए कोई सीनियर डॉक्टर नहीं है. ज्यादातर गंभीर मामलों में मरीजों को इंदौर के लिए रेफर करना पड़ता है या फिर गुजरात भेजा जाता है. पूरे क्षेत्र में पेयजल एक बड़ी समस्या है. मतदाताओं की संख्या की बात करें तो पेटलावद विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख 81 हजार 589 है. इसमें से पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 40 हजार 187 और महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 41 हजार 392 है. जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 10 है.
पेटलावद के पहले 7 चुनाव में से 6 पर कांग्रेस हावी रही: 1967 में इस सीट से कुल तीन प्रत्याशी मैदान में थे. इनमें एक सेक्यूलर सोशलिस्ट पार्टी और दूसरे निर्दलीय. लेकिन जीत मिली कांग्रेस के वी सिंह को, जिन्होंने एसएसपी के पी सिंह को 1557 वोट चुनाव हराया. 1972 में पेटलावद कांग्रेस ने दिलीप सिंह को टिकट दिया और उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी/सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार प्रताप सिंह को कुल 3282 वोटों से हराया. 1977 में कांग्रेस ने टिकट बदला तो जनता पार्टी (अब बीजेपी) के उम्मीदवार प्रताप सिंह जीते और विधायक बने. प्रताप सिंह ने कांग्रेस के उम्मीदवार अमरसिंह दाओदर को कुल 11082 वोटों से हराया.
1980 में फिर से पेटलावद विधानसभा में कांग्रेस ने जीत दर्ज की. इस बार कांग्रेस की उम्मीदवार गंगाबाई ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार देवेन्द्र सिंह को कुल 12395 वोटों से हराया. 1985 में भी कांग्रेस जीती. इस बार कांग्रेस की उम्मीदवार गंगाबाई फिर से जीतकर विधायक बन गईं. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी बाबूलाल से अधिक 468 वोटों से जीत दर्ज की. 1990 में पेटलावद से कांग्रेस ने वीर सिंह को उम्मीदवार बनाया और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार बाबूलाल को कुल 19107 वोटों से हराया. 1993 में कांग्रेस की उम्मीदवार निर्मला भूरिया जीतीं और विधायक बनीं. उन्होंने बीजेपी की उम्मीदवार गंगाबाई को कुल 32292 वोटों से हराया.
बीजेपी ने जीतने के लिए कांग्रेसी को लाया अपने साथ, बदल गए परिणाम: 1998 में पहली बार बीजेपी इस सीट को तब जीत पाई, जब भारतीय जनता पार्टी ने निर्मला भूरिया काे टिकट दिया. निर्मला भूरिया पहले कांग्रेस में थी, लेकिन इस चुनाव तक वे बीजेपी में आ गई और विजयी होकर विधायक बनी. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार जामसिंह अमलियार को 8392 वोटों से हराया. 2003 में फिर से बीजेपी ने निर्मला भूरिया को उम्मीदवार बनाया और वे जीतीं. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार रूप सिंह को 18668 वोटों से हराया. हालांकि 2008 में पेटलावद विधानसभा को कांग्रेस के उम्मीदवार वालसिंह मेड़ा ने जीतकर वापस छीन लिया. मेड़ा ने बीजेपी की उम्मीदवार निर्मला भूरिया को 8584 वोटों से हराया. 2013 में बीजेपी ने फिर बाजी मारी. इस बार भी भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार निर्मला दिलीप सिंह भूरिया बनी और जीतकर विधायक बनी. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार वालसिंह मेड़ा को कुल 17016 वोटों से हराया, लेकिन 2018 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार वालसिंह मेड़ा ने सीट फिर से वापस ले ली. मेड़ा ने बीजेपी की उम्मीदवार निर्मला दिलीपसिंह भूरिया को कुल 5000 वोटों से मात दी.