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सड़क से गांव दूर, जोखिम उठाकर नाव से नर्मदा पार करने को मजबूर

जबलपुर में नर्मदा तट ग्वारीघाट में बीते कई वर्षों से लोग अपनी जरूरतों को लेकर नर्मदा नदी पार कर रहे हैं. लोग नाव में बाइक तक रख कर ले जाते हैं. ऐसे में यह हादसों को दावत देने जैसा है. वहीं जिला प्रशासन इस काम का रोकने के बजाए ठेका दे रहा है.

risk in jabalpur
जबलपुर में जोखिम
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Published : Jun 23, 2021, 11:01 PM IST

जबलपुर। नर्मदा नदी पर कई वर्षों से सैकड़ों लोग अपनी जान जोखिम में डालकर बोट के माध्यम से नदी पार कर रहे हैं. आलम यह है कि लोगों के लिए अब यह खेल जैसा हो गया है. लोग कभी मोटरसाइकिल को बोट में रखकर, तो कभी बोट में बैठकर ग्वारीघाट स्थित तट से रोजाना नदी पार करते हैं. हैरान करने वाली बात यह है कि जिला प्रशासन ने इसे रोकने के बजाए इसका ठेका दे दिया.

ग्रामीण सड़क के बजाए अपनाते हैं नदी का रास्ता.

बोट में बाइक तक रखकर लाते हैं ग्रामीण
नर्मदा तट ग्वारीघाट में बीते कई वर्षों से लोग अपनी जरूरतों को लेकर नर्मदा नदी पार कर रहे हैं. किसी को गांव से सब्जी बेचने शहर आना होता है, तो वह बोट से आता है. दूध वाला सुबह-शाम नदी पार कर शहर आता-जाता है. इस दौरान एक बड़ी नाव में दर्जनों लोग सवार होते हैं. नाव के सहारे नदी पार करने वाले लोग बताते हैं कि वह कई वर्षों से नर्मदा नदी को पार कर रहे हैं. यह अब उनका रोज का काम हो गया है. हालांकि बरसात के समय नदी पार करने में विराम लग जाता है. स्थानीय लोगों की मानें तो नदी पार करते समय डर तो लगता है, पर गांव से शहर आकर व्यवसाय करने के चलते नाव में मजबूरन बैठना पड़ता है.

सड़क मार्ग से लगता है समय
नर्मदा नदी के उस पार दर्जनों गांव हैं, जहां रहने वाले ग्रामीण रोजाना अपने व्यवसाय के लिए नदी से आते हैं. हालांकि गांवों से शहर आने के लिए सड़क मार्ग भी है, पर जल्दी आने और कम खर्च होने के चलते अधिकतर लोग नाव से शहर आना पसन्द करते हैं.

दो नावें जोड़कर बनाई बड़ी नाव
नर्मदा के ग्वारीघाट तट में इस पार से उस पार लोगों को भेजने के लिए नाव ठेकेदार ने दो बड़ी नावों को जोड़कर एक कर दिया है. इसी नाव में एक साथ 30 से 40 लोग बैठकर नदी पार करते हैं. नाव ठेकेदार का कहना है कि बड़ी नाव में हादसा नहीं होता है. बहुत साल पहले एक हादसा हुआ था, पर वह एक नाव होने के चलते और लापरवाही के कारण हुआ था. इधर घाट पर होमगार्ड के जवान भी तैनात रहते हैं जो कि समय-समय पर नाव चालकों को समझाइश भी देते हैं.

जिला प्रशासन बेखबर
जबलपुर के नर्मदा घाट में कई वर्षों से खतरों के ये खेल चल रहा है. अभी तक जिला प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है. शायद जिला प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है. तहसीलदार ने बताया कि प्रशासन समय-समय पर पुलिस के माध्यम से घाट की निगरानी करता है. इसके साथ ही लोगों को समझाइश भी दी जाती है. नर्मदा ग्वारीघाट में करीब 60 से 70 नावों का संचालन होता है. नावों को घाट में चलाने के लिए नगर निगम ने ठेका किया है. हर वर्ष नाव संचालक नगर निगम को करीब 6 लाख रुपये से ज्यादा देते हैं.

अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती मां नर्मदा, योजना को ठेंगा दिखाती सिमटती जलधारा

जबलपुर के ग्वारीघाट तट पर कई बड़े दिग्गज नेताओं ने आकर मां नर्मदा की पूजा अर्चना की और पुल बनाने के लिए जनता को आश्वासन भी दिया. नेताओं का आश्वासन उनकी पद तक ही रहता है. जब मंत्री या विधायक अपने पद से हटता है, तो फिर पुल बनाने का उनका दावा इसी नर्मदा नदी में बह जाता है. बहरहाल, यह तस्वीर बीते कई सालों से सामने आ रही है.

जबलपुर। नर्मदा नदी पर कई वर्षों से सैकड़ों लोग अपनी जान जोखिम में डालकर बोट के माध्यम से नदी पार कर रहे हैं. आलम यह है कि लोगों के लिए अब यह खेल जैसा हो गया है. लोग कभी मोटरसाइकिल को बोट में रखकर, तो कभी बोट में बैठकर ग्वारीघाट स्थित तट से रोजाना नदी पार करते हैं. हैरान करने वाली बात यह है कि जिला प्रशासन ने इसे रोकने के बजाए इसका ठेका दे दिया.

ग्रामीण सड़क के बजाए अपनाते हैं नदी का रास्ता.

बोट में बाइक तक रखकर लाते हैं ग्रामीण
नर्मदा तट ग्वारीघाट में बीते कई वर्षों से लोग अपनी जरूरतों को लेकर नर्मदा नदी पार कर रहे हैं. किसी को गांव से सब्जी बेचने शहर आना होता है, तो वह बोट से आता है. दूध वाला सुबह-शाम नदी पार कर शहर आता-जाता है. इस दौरान एक बड़ी नाव में दर्जनों लोग सवार होते हैं. नाव के सहारे नदी पार करने वाले लोग बताते हैं कि वह कई वर्षों से नर्मदा नदी को पार कर रहे हैं. यह अब उनका रोज का काम हो गया है. हालांकि बरसात के समय नदी पार करने में विराम लग जाता है. स्थानीय लोगों की मानें तो नदी पार करते समय डर तो लगता है, पर गांव से शहर आकर व्यवसाय करने के चलते नाव में मजबूरन बैठना पड़ता है.

सड़क मार्ग से लगता है समय
नर्मदा नदी के उस पार दर्जनों गांव हैं, जहां रहने वाले ग्रामीण रोजाना अपने व्यवसाय के लिए नदी से आते हैं. हालांकि गांवों से शहर आने के लिए सड़क मार्ग भी है, पर जल्दी आने और कम खर्च होने के चलते अधिकतर लोग नाव से शहर आना पसन्द करते हैं.

दो नावें जोड़कर बनाई बड़ी नाव
नर्मदा के ग्वारीघाट तट में इस पार से उस पार लोगों को भेजने के लिए नाव ठेकेदार ने दो बड़ी नावों को जोड़कर एक कर दिया है. इसी नाव में एक साथ 30 से 40 लोग बैठकर नदी पार करते हैं. नाव ठेकेदार का कहना है कि बड़ी नाव में हादसा नहीं होता है. बहुत साल पहले एक हादसा हुआ था, पर वह एक नाव होने के चलते और लापरवाही के कारण हुआ था. इधर घाट पर होमगार्ड के जवान भी तैनात रहते हैं जो कि समय-समय पर नाव चालकों को समझाइश भी देते हैं.

जिला प्रशासन बेखबर
जबलपुर के नर्मदा घाट में कई वर्षों से खतरों के ये खेल चल रहा है. अभी तक जिला प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है. शायद जिला प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है. तहसीलदार ने बताया कि प्रशासन समय-समय पर पुलिस के माध्यम से घाट की निगरानी करता है. इसके साथ ही लोगों को समझाइश भी दी जाती है. नर्मदा ग्वारीघाट में करीब 60 से 70 नावों का संचालन होता है. नावों को घाट में चलाने के लिए नगर निगम ने ठेका किया है. हर वर्ष नाव संचालक नगर निगम को करीब 6 लाख रुपये से ज्यादा देते हैं.

अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती मां नर्मदा, योजना को ठेंगा दिखाती सिमटती जलधारा

जबलपुर के ग्वारीघाट तट पर कई बड़े दिग्गज नेताओं ने आकर मां नर्मदा की पूजा अर्चना की और पुल बनाने के लिए जनता को आश्वासन भी दिया. नेताओं का आश्वासन उनकी पद तक ही रहता है. जब मंत्री या विधायक अपने पद से हटता है, तो फिर पुल बनाने का उनका दावा इसी नर्मदा नदी में बह जाता है. बहरहाल, यह तस्वीर बीते कई सालों से सामने आ रही है.

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