जबलपुर। मध्यप्रदेश में बेरोजगारी (Unemployment) अपने चरम पर पहुंच गई है. कोरोना वायरस की वजह से कईं उद्योग धंधे बंद हो गए हैं. बाजार में रौनक नहीं है और इसका सीधा असर रोजगार पर पड़ा है.
रेरा ने किया मजदूरों को बेरोजगार
सरकार ने नई कॉलोनियों को बिना रेरा (RERA) के मंजूरी के अनुमति देने से मना कर दिया है. इस कानून की वजह से जबलपुर जैसे शहर में एक दर्जन से ज्यादा कालोनियों का भविष्य अधर में लटक गई हैं. कॉलोनाइजर्स (colonizers) ने नई कॉलोनी काटना बंद कर दिया है, इसकी वजह से निर्माण कार्य प्रभावित हुए हैं. जानकारों का कहना है कि खेती के बाद सबसे ज्यादा रोजगार निर्माण क्षेत्र में ही मजदूरों को मिलता है, लेकिन निर्माण क्षेत्र में आई मंदी की वजह से लाखों श्रमिकों के पास काम नहीं बचा है. इनके पास कोई काम नहीं है.
श्रमिकों को नहीं मिल रहा रोजगार
जबलपुर के दीनदयाल चौक के पास लेबर चौक पर कई मजदूर दोपहर तक इस उम्मीद में बैठे रहते हैं कि कोई जरूरतमंद उन्हें काम कर ले जाएगा और उन्हें दिनभर की मजदूरी मिल जाएगी. यहां रोज मजदूरी करने आने वाले मुन्ना लाल का कहना है कि "वह कई सालों से यहां मजदूरी करने आ रहे हैं, लेकिन बीते 1 साल से काम में भारी कमी आई है. जहां पहले 20-25 मजदूर ही हुआ करते थे. आज वहां दो सौ से ढाई सौ मजदूर इकट्ठा रहते हैं. ऐसे में आधे से कम लोगों को ही रोजगार मिल पाता है और बूढ़े मजदूरों को बिना काम के ही घर लौटना पड़ता है"
ना रजिस्ट्रेशन, ना अन्य सुविधाएं
निर्माण मजदूरों के लिए सरकारी और निजी हर निर्माण कार्य के पहले 1% श्रमिक कल्याण बोर्ड में जमा करना होता है. इस फंड में करोड़ रुपए हर साल इकट्ठा होते है. नियम यह कहता है इस पैसे का उपयोग निर्माण श्रमिकों की भलाई के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं में किया जाना चाहिए, लेकिन आरोप लगते हैं कि सरकार इस पैसे का दुरुपयोग करती है और राजनीति योजनाएं इसी पैसे से संचालित की जाती हैं. लेबर चौक पर काम करने आए राहुल का कहना है कि "उसे जानकारी नहीं है कि श्रमिक कार्ड जैसा भी कोई कार्ड बनता है, बल्कि इस लेबर चौक पर 50 से ज्यादा मजदूर थे और किसी का भी श्रमिक कार्ड नहीं बना हुआ था."
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रोजगार विभाग ज्यादातर पढ़े-लिखे नौजवानों के लिए काम करता है और उनका ही लेखा-जोखा रखा जाता है. जबकि बेरोजगारी की बड़ी मार कम पढ़े लिखे मजदूर वर्ग के सामने ज्यादा बड़ी समस्या के रूप में सामने आई है. इनकी सही संख्या की जानकारी सरकार को भी नहीं है, क्योंकि इन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का कहीं पर भी रजिस्ट्रेशन नहीं है. ऐसे हालात में इनके लिए चलाई जाने वाली योजनाएं इन को दी जाने वाली सुविधाएं कोई जमीन पर नहीं उतर सकती.