भोपाल। सुप्रीम कोर्ट से मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार (Supreme Court has rejected SLP of Shivraj government) को झटका लगा है. शीर्ष कोर्ट ने बुधवार को उस स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) को सुनवाई के बाद खारिज कर दिया है, जिसमें नगर निगम के महापौर व नगर पालिका, नगर पंचायत के अध्यक्ष पद के आरक्षण पर हाई कोर्ट के स्टे को चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में 14 दिसंबर को सुनवाई पूरी कर फैसला रिजर्व रखा था, जिसे 15 दिसंबर को सुनाया है. एक तरह से हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची मध्यप्रदेश सरकार को कोर्ट ने उल्टे पांव लौटा दिया है, राज्य सरकार की एसएलपी खारिज होने के बाद अब फिर से हाईकोर्ट में ही इस मामले की सुनवाई होगी.
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण प्रक्रिया स्थगित, पंचायत चुनाव पर सुप्रीम सुनवाई आज
हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
राज्य शासन ने एसएलपी में कहा था कि नगर पालिका अधिनियम 1999 के नियम छह में रोटेशन की प्रक्रिया निर्धारित है, लेकिन हाई कोर्ट ने नियम छह के पूरे नियमों को नहीं पढ़ा है. संविधान के अनुच्छेद 243 टी के क्लॉज 5 में राज्य विधायिका को शक्तियां दी गई हैं, इस नियम के तहत अपने विवेक से कार्य कर सकते हैं. साथ ही आबादी के आधार पर पदों को (Hearing in High Court on Mayor reservation) आरक्षित किया जाता है, लेकिन कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी.
मार्च 2021 में हाई कोर्ट ने लगाई थी रोक
हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में नगर निगम के महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष व नगर पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण को चुनौती देने के लिए अलग-अलग 9 जनहित याचिकाएं दायर की गई थी. डबल बेंच में सभी जनहित याचिकाओं की एक साथ सुनवाई की जा रही है. कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को अंतरिम आदेश पारित करते हुए नगर निगम, नगर पालिका, नगर परिषद की आरक्षण प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने राज्य शासन से जवाब मांगा था, लेकिन राज्य शासन ने अपने जवाब में आरक्षण की प्रक्रिया को सही बताया था. इसके बाद सभी याचिकाएं जबलपुर की प्रिंसिपल बेंच में ट्रांसफर कर दी गई थी.
SC में सुनवाई के चलते HC ने बढ़ाई तारीख
राज्य शासन ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी है, जिस पर कोर्ट ने रोक बरकरार रखते हुए याचिकाओं की तारीख बढ़ा दी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को राज्य शासन की एसएलपी पर सुनवाई हुई, तब सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी को खारिज कर दिया. इस एसएलपी के खारिज होने से अब हाई कोर्ट में अंतिम फैसला होना है. हाई कोर्ट में सुनवाई होने से नगरीय निकाय के आरक्षण पर भी जल्द फैसला हो सकता है क्योंकि कोर्ट के स्टे के कारण नगरीय निकाय के चुनाव नहीं हो पा रहे हैं.
'आरक्षण के रोस्टर का पालन करना चाहिए'
याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में तर्क दिए थे कि महापौर, नगर पालिका, नगर परिषद के अध्यक्ष पद के आरक्षण में रोटेशन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है, जो नगर निगम व नगर पालिका के अध्यक्ष पद लंबे समय से आरक्षित हैं, इस कारण दूसरों को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल पा रहा है, आरक्षण के रोस्टर का पालन करना चाहिए. रवि शंकर बंसल ने डबरा नगर पालिका के अध्यक्ष पद के आरक्षण को चुनौती दी थी. इस याचिका में स्टे ऑर्डर के बाद 8 याचिकाएं और आ गईं. मनवर्धन सिंह की जनहित याचिका में 2 निगम व 79 नगर पालिका व नगर परिषद के आरक्षण पर रोक लगा दी थी. राज्य शासन ने इन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.